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Thursday, December 1, 2016

मानवीयता से दूर है नोट बंदी का निर्णय

मानवीयता से दूर है नोटबंदी का निर्णय 

अब से इक्कीस दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक रात देश के नाम यह संदेश दिया कि रात 12 बजे से हजार और पांच सौ के नोट रद्द कर दिये जायेंगे और वे कागज के टुकड़े में बदल जायेंगे। तबसे इस कारण होने वाली कठिनाइयों के बारे में लगभग कई कोणों तथा दृष्टिकोणों से बहुत बातें कहीं गयीं। इन बातों को दोदीभक्तों की टीम नेखारिज कर दिया लेकि साथ ही साथ सरकार ने इस फैसले में बार बार संशोधन किया । यही नहीं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी कई सर्कुलर जारी कर संशोधन किया। इस मामले सबसे मार्मिक टिप्पणी विख्यात अर्थ शास्त्री अमर्प्य सेन की थी। अमर्त्य सेन कहा था कि ‘‘इस फैसले में ना मानवीयता है और ना व्यवहारिकता। इसमें लाभ कम और परेशानियां ज्यादा हैं।’’ कई अन्य अर्थशा​िस्त्रयों ने भी कहा है कि सरकार ने मच्छर मारने के लिये तोप चला दिया। इस मामले सबसे ताजा प्रस्ताव सरकार की ओर आयकर कानून में संशोधन के सम्बंध में आया है। वह भी उतना सही नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसका विरोध करते हुये कहा कि ‘‘यह कालाधन रखने वालों को बचाने की कोशिश है। ’’ इधर सरकार के बार के फैसलों को देखें तो यह साफ जाहिर हो जाता है कि नोटबंदी का फैसला अपनी मौज में लिया गया है, इसपर ज्यादा सोचा विचारा नहीं गया। लोग अभी यह समझ नहीं पा रहे हैं कि जो रुपया बषैंक में गया वह बंद हो गया, क्योंकि एक सीमा के उपर निकालना वर्जित है। अभी लोगों का ध्यान इधर नहीं है , क्योंकि सब ताजा कठिनायी से उबरने में लगे हैं। जिस दिन इससे निजात मिलेगी उसके बाद से लोग इसे महसूस करना शुरू करेंगे। तब मोदी जी के समर्थकों को अहसास होगा कि क्या हुआ। सोमवार वित्तमंत्री ने आयकर संशोदान का प्रस्ताव किया। यह नया कानून अघोषित आय यानी काले दान के साथ नया बर्ताव करता महसूस होता है। क्योंकि इसमें जो सबसे महतवपूर्ण दो पहलू हैं वे यह हैं कि काले धन का पता स्वैच्छिक घोषणा से चल है या आयकर विभाग की जांच से। स्वैच्छिक घोषणा करने वालों को केवल 50 प्रतिशत टैक्स देना होगा और बाकी के 50 प्रतिशत रकम का आधा किसी बिना व्याज वाली योजना में चार वर्ष के लिये चला जायेगा। इस मामले में यह नहीं पूछा जायेगा कि यह धन कहां से आया। दूसरा जो पहलू है वह आयकर की तफ्तीश के दौरान पाया गया धन। इसपर 85 प्रतिशत तक टैक्स देका पड़ सकता है। अब गौर करें कि कालेधन को निकालने और स्वैच्छिक घोषणा की बात है वह है कि इसमें स्रोत नहीं पूच जायेगा। अब अगर आपने र्बैक को लूट कर वह दौलत खड़ी है तब आपसे इस मामले कैफियत नहीं पूछी जायेगी। सरकार ने कहा है कि एक खास अवधि तक ही यह छूट मिलेगी और उसके बाद 90 प्रतिशत तक टैक्स लगेगा। वित्तमंत्रालय ने यह संकेत दिया कि ढाई लाख रुपयों तक की जमा की जांच नहीं होगी पर यह साफ नहीं है कि यह छूट अभी जारी है अथवा नहीं। यह भी साफ नहीं है कि आय कर विभाग कितनी रकम तक जांच नहीं करेगा। वह 2.5 लाख से नीचे की रकम की जांच भी कर सकता है। बेशक इससे पता चलता है कि सरकार कालेदान को बाहर करने तें सचेष्ट हैऔर उससे प्राप्त धन को देश के विकास में लगाना भी चाहती है। लेकिन इससे कुछ सवाल भी सामने आते हैं। एक तरह से सरकार ने यह मान लिया कि प्रशासन कानून को मनवाने में विफल रहा है साथ ही ब्लैक मनी बनाने और बढ़ाने की प्रक्रिया में मददगार रही है। ब कालाधन इतना बड़ा आकार ले चुका है कि उसे रोकना संभ्टाव नहीं है ऐसे में टैक्स कानून में सुधार जरूरी था न कि कानून में नये प्रवधान जोड़ना। यही नहीं , इतनी तेजी से हो रही घोषणाओं और संशोधनों से लगता है कि सरकार ने अपनी मर्जी से किया, इसमें चिंतन और तैयारी नहीं थी। इस फैसले से समाज की साइकी में एक विशेष परिवर्तन दिख रहा है वह कि समाज का हर फर्द एक खास किस्म की अनिश्चयता और बेचैनी में है कि कब क्या फैसला आ जाय। यही नहीं बेईमानों के भीतर एक उम्मीद पनप रही र्है कि टैक्स और चोरी की जाय, सरकार इस तरह की छूट और देगी। इससे संकेत मिल रहे हैं कि ये योजनाएं उतनी सफल नहीं होंगी जितनी प्रचारित की जा रहीं हैं।  इससे एक मौन क्रांति सुगबुगाती दिख रही है। एक बार सोचें कि देश में एक आदमी को अपनी मर्जी से इस तरह के फैसले लेने की आजादी है जिससे आबादी के हर पांचवें आदमी का जीवन कष्टमय हो जाय और इसी आदमी के हाथ में परमाणु बम का बटन भी है। ऐसा भी महसूस हो रहा है कि मोदी जी में स्थाई तौर पर महिमावान होनी की अदम्य ललक है और इसकी पूर्ति के लिये वे हो सकता है भविष्य में आपातकाल की घोषणा कर दें। क्योंकि मोदी जी के कदमों से साफ समझा जा सकता है कि वे ज्यादा से ज्यादा दमनकारी उपाय की तरफ बढ़ रहे हैं और लोगों को सुरक्षात्मक उपायों को अपनाने से वंचित कर रहे हैं। एक लोकतांत्रिक देश धीरे धीरे ‘पुलिस राज ’ में बदलता जा रहा है।

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