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Tuesday, August 1, 2017

जो कभी नही हुआ था वह हुआ 

जो कभी नही हुआ था वह हुआ 
जो असंभव था वह मोदी जी के राज में हो गया। जिन फौजियों ने अपना पूरा जीवन देश की रक्षा और  संविधान की गरिमा बनाये रखने के लिए संगीनों की नोक पर रखा और उसके बाद रिटायर कर गए, उन्ही फौजियों में से कुछ ने सरकार के खिलाफ खुल्लम खुल्ला बगावत का झंडा उठा लिया है।सेना, जल सेना और वायु सेना के 114 अवकाश प्राप्त अफसरों ने प्रधान मंत्री को लिखा है कि " संविधान में विहित सेकुलर और लोकतान्तरिक मूल्यों के खिलाफ ना जाएं। इस पत्र पर अवकाशप्राप्त सेनाधिकारियों हस्ताक्षर किया है। पत्र में कहा गया है कि इन दिनों देश में वही सब कुछ हो रहा है जिसके खिलाफ उन्होंने जंग लड़ी है। यह सब उस संविधान के लिए अभिशाप है जिसकी रक्षा के लिए वे कर्तव्यबद्ध हैं। पत्र में लिखा गया है कि " हम भारतीय सेना के अवकाश प्राप्त लोगों का समूह हैं उर हाने अपना जीवन देश की सुरक्षा के लिए काम करते हुए गुजारा। सामूहिक रूप में हम किसी पार्टी के साथ नहीं हैं। हमारी समान प्रतिबद्धता भारत के संविधान के प्रति है।
इस पत्र को लिखते हुए हमें दुख होता है पर भारत में घट रही अलगाववाद की  ताज़ा घटनाएं हमें लिखने पर मजबूर कर रहीं हैं। सेना अनेकता में एकता की तरफदार है। भाषा जाती, संस्कृति या अन्य कोई पहचान सेना की एकता में मायने नही रखती।" इसके अलावा भी इस लंबे  पत्र में बहुत सी बातें लिखीं हैं। इन अवकाशप्राप्त फौजियों ने ठीक उसी जगह पर उंगली रखी है जहां गड़बड़ी है। मोदी जी के कीर्तनिये अब उन्हें भी राष्ट्रद्रोही का तमगा देंगे? क्या भा ज पा की सरकार उनके खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा करेगी?  वे देश के भविष्य के लिए चिंतित हैं। अब देखना यह है  कि  एन डी ए के उप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार वैकैया नायडू इस पर क्या कहते हैं। यह भी देखना है सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल, गृह मंत्री राजनाथ सिंह , वित्त मंत्री अरुण जेटली और पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर क्या कहते हैं। वस्तुतः " मतभेद द्रोह नहीं है यह लोकतंत्र का गुण है।"  वैसे हमारे देश में ले. जनरल एच एस पनाग जैसे भी अफसर हैं जिन्होंने कश्मीर में मानव कवच के लिए मेजर गोगोई को फटकारा था। हमारे पास ऐसे भी सेनाधिकारी हैं जो चीन को भाव नहीं देने की सलाह देते हैं और उन टी वी चैनल्स को दुखी कर देते हैं जिन्हें इस समय एन डी ए के सांसद चलाते  हैं और युद्ध का माहौल बनाना उनके व्यवसाय के लिए लाभ दायक है। अब अवकाशप्राप्त फौजियों की इस चिट्ठी को ये चैनल कैसे पेश करेंगे यह तो बाद कि बात है लेकिन उस पत्र में बेहद शालीन तरीके से यह बात कही गयी है। यह भी देखना हैरतअंगेज होगा कि पार्टी के तेजतर्रार प्रवक्ता इसे लेकर क्या कहते हैं। हालांकि फौजियों ने उदार और सेकुलर मूल्यों  की बात की है। यह अलग तथ्य है कि इन दिनों सेकुलर शब्द का अर्थ राजनीतिक अवसरवाद हो गया है। नीतीश कुमार जैसे राजनीतिज्ञ या योगी आदित्य नाथ क्या कहते हैं यह देखना होगा। फौजियों ने कहा है कि " वे मुस्लिमों और दलितों पर हमले की निंदा करते हैं।" कट्टर हिंदूवाद का सबसे ज्यादा लाभ उठाने वाले योगी आदित्य नाथ उन फौजियों की इस बात पर कैसे रिएक्ट करते हैं यह भी देखना है।
लेकिन ऐसे समय में जब गढ़ी हुई खबरों की बाढ़ आ रही है और साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने की गरज से गलत मुहावरे गढ़े जा रहे हैं  तब वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष होना ज़रूरी है। जवाहर लाल नेहरू निश्वविद्यालय में जो बात छात्रों कही थी और उनपर देश द्रोह का मुकदमा हुआ लगभग वैसी ही बात इन रिटायर्ड फौजियों ने भी कही है। इनमें से कुछ ने तो 1971 की जंग लड़ी है और कुछ ने कारगिल युद्ध में भाग लिया है, जिसका सबसे ज्यादा लाभ भा ज पा ने लिया है, देखना है कि मोदी जी की सरकार इनके खिलाफ क्या कार्रवाई करती है?

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