CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Friday, August 4, 2017

जाना अरविंद का

जाना अरविंद का
प्रधानमंत्री की विशिष्ट रूपांतरणकारी परियोजना नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनागरिया ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।देश के नीति निर्माण की प्रक्रिया पर नज़र रखने वाले इस खबर से चौंक गए। क्योंकि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने देश का काया पलट करने के लिए अरविंद पनागरिया को बड़े जतन से खोज कर निकाला था। पनागरिया का इस्तीफा मोदी सरकार के ऐसे मौके पर आया है जब केंद्र सरकार आर्थिक नीतियों के बदलाव के मझधार में है। संक्षेप में कहें तो कह सकते हैं कि ऐसे " हाई प्रोफाइल " इस्तीफे का यह उचित समय नहीं था। यह सब औचक में नहीं हुआ। दो महीने पहले अरविंद मानागरिया ने मोदी जी मुलाकात की थी और , कहते हैं कि, उन्होंने उनसे कहा था कि अगस्त  तक नहीं रह सकेंगे। पिछले हफ्ते , पनागरिया की प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रिंसिपल सेक्रेटरी से लंबी वार्ता हुई थी और उस वार्ता में भी उन्होंने पद छोड़ने की बाद कही थी। अब सरकार कहती चल रही है कि " उन्होंने व्यक्तिगत कारणों से यह कदम उठाया है। वे कोलंबिया विश्वविद्यालय से ' उधार ' में आये थे। अब विश्वविद्यालय ने उन्हें खबर दी कि अब उनकी छुट्टी बधाई नही जा सकती है। अतएव , अरविंद विद्वतजनों की दुनिया में लौट गए। "  
  लेकिन, ऐसे मोड़ पर एकेडेमिक्स के प्रति उनका झुकाव कुछ सवाल खड़े करता है। पनागरिया यह जानते थे कि जिस पड़ के लिए वे अनुबंध हस्ताक्षरित कर रहे हैं वह पड़ कैबिनेट मंत्री के पद के समतुल्य है, यह अत्यंत महत्वपूर्ण सरकारी पद है और   इसके लिए स्वयं प्रधान मंत्री ने आमंत्रित किया है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि पनागरिया की जगह लेने वाले कि तलाश कर ली गई है और जब वे 31 अगस्त को रुखसत होंगे उसके पहले नाम की घोहना कर दी जाएगी। 
दिलचस्प बात यह है कि सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमनियम का कार्य काल भी सितंबर में पूरा हो जाएगा। वे बेहद खुश मिजाज इंसान हैं। पनागरिया के मामले में उनका कहना है कि " उनका रिप्लेसमेंट खोजने में भारी दिक्कत हो रही है।" जब प्रधान मोदी सत्ता में आये तो " बौद्धिक घाटे" को पूरा करने के लिए दोनों अरविंदों को लाया गया था। रघुराम राजन के जाने से घाटे की यह बात खुल गयी । पनागरिया को रघुराम राजन की जगह लेने को कहा गया पर उन्होंने इनकार कर दिया। 2014 में जब मोदी सत्ता में आये और पुरानी सरकार के महत्वपूर्ण लोगों को हटाया गया  तब से पानागरिया " मोदी के पहले आदमी" थे जिसने पद छोड़ा। विगत ढाई वर्षों में सरकार और पनागरिया में किसी प्रकार का मतभेद सामने नहीं आया था। कुछ जानकार लोगों का कहना है कि उन्होंने अफसरशाही के काम काज के ढंग से नाराज हो कर इस्तीफा दिया है। लेकिन जरा पीछे लौटें, रघुराम राजन ने भी इसी तरह इस्तीफा दिया था। इस ढंग को देख कर ऐसा लगता है कि जो शुद्ध अर्थशास्त्री हैं वे राजनीति की दुनिया में टिक नही पाते हैं बेशक बॉस उनके मन लायक ही क्यों है हो। 
राजन की तरह पनागरिया भी राजनीतिक संगठनों के निशाने पर थे। स्वदेशी जागरण मंच नेट के बार खुल्लम खुल्ला नीयी आयोग की आलोचना की है। उसका कहना था कि नीति आयोग ऐसे लोगों द्वारा चलाया जाता जिनके दिमाग में विदेशी  दर्शन है और वह सत्तारूढ़ भा ज पा के सैद्धांतिक मूल्यों से पूरी तरह विपरीत है। पनागरिया के खिलाफ पिछले साल से ही अभियान शुरू हो गया था। जनवरी में स्वदेशी जागरण मंच ने एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया था इसमें नीति आयोग से लोगों को आमंत्रित किया गया था। इसके मंच से जमकर नीति आयोग की आलोचना हुई। यहां तक कि पनागरिया पर खुल कर हैमल हुए। दूसरी बार मई में अनिवार्य दवाओं के मूल्य निर्धारण के समय भी मंच नीति आयोग की आलोचना की। उसने यहां तक कह दिया कि आयोग का स्वास्थ्य मंत्रालय के औषधि मूल्य नियंत्रण विभाग से सांठ गांठ है। सोशल मीडिया के प्लेटफार्म से भी नीति आयोग की आलोचना की गई। अगर विगत ढाई वर्षों के आयोग के काम पर नज़र डालें तो पता चलेगा कि इस बीच कोई रूपांतरण नहीं हो सका। आयोग अनिर्णय, भ्रष्टाचार और तदर्थवाद से ग्रस्त रहा। आयोग को दो काम करने चाहिए थे पहला कि सुधार की राह बताना और दूसरा कि राजनीति के व्यूह में जिनमें आर्थिक एजेंडे की सृजनात्मक आलोचना करना। पर नीति आयोग ने कृषि और डिजिटिलाइजेशन तथा सामाजिक क्षेत्र में व्यय के सिवा किसी भी क्षेत्र में कुछ नहीं किया। नीति आयोग नेहरू के दौर के योजना आयोग की जगह बनाया गया था। जब यह बना था तो बड़ी बड़ी  बातें कही गईं थीं। पर नीति आयोग जिससे बहुत उम्मीदें थीं कुछ नहीं कर पाया। उसे धन वित्त मंत्रालय सत मिलता था और निर्देशन प्रधान मंत्री कार्यालय से। इसके पहले योजना आयोग के जो प्रमुख हुआ करते थे वे आर्थिक पृष्ठभूमि के लोग थे पर उनके पोलिटिकल कनेक्शन्स थे। 
  विगत कुछ महीने पनागरिया परिवर्तन को स्वरूप देने के बदले अराजक आर्थिक  स्थितियों के समाधान सुझा रहे थे।  
पनागरिया का जाना नीति निर्माण के क्षेत्र में एक विशेष क्षति कही जाएगी। एक बेहतरीन दिमाग ओछी राजनीति की भेंट चढ़ गया।

0 comments: