राष्ट्र के आदर्श को खतरा
शुक्रवार का दिन दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में होहल्ले का दिवस कहा जा सकता है. दक्षिण कोरिया मे सैमसंग के प्रमुख को जेल हो गयी, थाईलैंड में पूर्व प्रधान मंत्री युन्गुलुक शिनावात्रा अपने खिलाफ अदालती फैसले के डर फैसला सुनाये जाने के पहले ही देश से भाग निकले. लेकिन इस भारत भू पर सबसे बड़ी घटना घटी जिसका देश के शिष्टाचार और विवेक पर भरी प्रभाव पडेगा. संतों की पूजा करने वाले इस देश में एक संत को बलात्कार के अपराध में जेल जाना पडा. हालाँकि यह पहली घटना नहीं है इसके पहले भी अपने को कद से बड़ा दिखाने वाले आशाराम भी जेल गए. पहले इसके कि बाबा राम रहीम इतिहास कूड़े वाले ड्रम में फ़ेंक दिए जाएँ उनके चेले देश कि न्याय व्यवस्था का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर आये. आम जनता के जानोमाल कि हानि हुई , 30 से ज्यादा लोग मारे गए, कई वहां फूँक डाले गए और भरी पैमाने पर तो०द फोड़ हुई. पुलिस तमाशबीन बनी रही. खुद को प्रभु का दूत बताने वाले बाबा राम रहीम को अपने बारे में कई खुशफहमियाँ थीं. वे स्वयं को करिश्माई बताते थे, दार्शनिक कहते थे गायक, और न जाने क्या क्या कहते थे. इसके बावजूद उनका अपराध जघन्य था. एक कमज़ोर लड़की को यौनक्रिया के लिए मजबूर करने का अमानवीय कृत्य उस कथित संत ने किया था. यह अपराध अदालत में साबित हो गया और अदालत ने इसके लिए सज़ा सुनायी. जिसदिन उन्हें सज़ा सुनायी जाने वाली थी वे लगभग 200 वाहनों के काफिले के साथ 250 कि मी दूर अदालत गए. इनके साथ टीवी के वाहनों और रिपोर्टरों कि गाड़ियों का हुजूम अलग से. सुबह से फौज ने फ्लैग मार्च किया और किसी भी बिगड़ी परिस्थिति से निपटने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया. यहाँ तक कि व्यवस्था बनाये रखने के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया. लेकिन भक्तों ( गुंडों पढ़ें ) को काबू नहीं किया जा सका. पहले सड़कों पर शुरू हुई अव्यवस्था अचानक मार पीट और पुलिस पर हमले में बदल गयी जो कुछ ही देर में शहर कि विभिन्न स्थानों में भयानक अराजकता में ख़त्म हुई. चारोतरफ भीड़ का पागलपन दिख रहा था. घर फूंके जा रहे थे . लोगों को मारा जा रहा था , पत्रकारों को पीटा जा रहा था वहां जलाए जा रहे थे – यह सब इसलिए हो रहा था कि क़ानून ने अपना किया था. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है , आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर बढ़ रहा है , दुनिया कि विशालतम सैन्य शक्ति है इसके पास और इस देश का भविष्य ऐसे दंगाई नागरिकों पर निर्भर कर रहा है जो एक अपराधी को अदालत द्वारा सज़ा दिए जाने के विरोध में 30 – 30 लोगों को मार डालते हैं सैकड़ों को घायल कर देते हैं, घर वाहन फूँक डालते हैं. ये क़ानून कर रहे हैं जिसकी इज्ज़त करने पर देश महान बनता है. सैकड़ों वर्षों कि गुलामी के बाद आज़ादी के सात दशक समाज को शिष्ट नहीं बना सके. यह सोच कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि भारत की प्रगति की वल्गाएँ इन गुंडों के हाथों में है. इनके पास असीम और बेलगाम ताकत है इसलिए नहीं कि ये विध्वंस करते हैं या खून खराबा करते हैं बल्कि इस ये उन लोगों के लिए वोट का जुगाड़ करते हैं जो इन्हें और इनके “गुरुओं ” को इस देश को अंध विश्वास और दुर्गति में झोंक देने इजाज़त देते हैं. यह बात केवल एक राम रहीम और उनके जैसे कथित संतों के लाखों भक्तों की नहीं है बल्कि ऐसे हज़ारों लोगों कि भी है जो तरह तरह के बहानों के माध्यम से इस भारत राष्ट्र के आदर्श को नेस्तनाबूद करने पर लगा है. इनका निशाना उस भारत पर नहीं है जिसकी अपनी धार्मिक पहचान है , उसकी भी नहीं है जिसकी सामाजिक पहचान है, उसकी भी नहीं जिसके अतीत का एक गौरव है बल्कि यहाँ उस भारत के अस्तित्व का प्रश्न है जो 1947 में जन्मा था. यही एक भारत है जिसका सबसे ज्यादा महत्व है.
गौर करें, इस तरह के समुदायों का उभार आज कि सबसे परेशान करनेवाला फिनोमिना है. सतयुगी कथाओं के आधार पर ये कथित बाबा पिछड़े और वंचित लोगों के समुदाय में सपने , अपेक्षाएं और नाटकीयता का आरोपण करते हैं जिसमे भविष्य बड़ा लुभावना लगता है. वे एक तरह की आभासी दुनिया में जीते हैं और किसी भी मामले में शासन का हस्तक्षेप नागवार लगता है और वे चाहते हैं कि उनके मामलों का निपटारा उनके ही प्रभु के दूत करें. बाबा राम रहीम को सजा सुनाये जाने के बाद जो गड़बड़ी हुई उसका मुख्य कारण यही था. ऐसे बाबाओं का विकास देश कि व्यवस्था तथा विवेक के लिए खतरनाक हो सकता है.
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