गोरखपुर के बाद के सवाल
हम कौन थे ,क्या हो गए हैं,क्या होंगे अभी
आओ मिल कर विचारें यह समस्याएँ सभी
हमारा देश महान है , महान था और इस महान बनाने के चक्कर में हम इतिहास को तथा वर्तमान के सच के मायने को भी बदलने लगे हैं. इस महानता के इंद्रजाल को डालने के लिए इंसानियत और संवेदनशीलता को त्यागते जा रहे हैं. गोरखपुर के बाबा राघवदास अस्पताल में विगत 5 दिनों मरीं लगभग 100 बच्चे मर गए. बच्चो का मरना भविष्य की मौत कही जा सकती है, फिर भी हम इसपर सियासत कर रहे हैं. हम क्या थे इसे बताने के लिए ज़मीनोआसमान एक किये जा रहे हैं और ये मौतें बता रहीं हैं कि हम क्या हो गए हैं. हम साधारण या कहें सामान शिष्टता , व्यावहारिकता और सहानुभूति को भूल चुके हैं. इन बच्चों कि मौतों पर सियासत हमारे इसी बदलाव का आइना है. सरकार क्या कर रही है इसे छोड़ दीजिये यह देखिये कि एक समाज के तौर पर एक समुदाय के तौर पर हम क्या हो गए हैं. लोगों में यह चुप्पी बताती है कि हमारे प्यारे वतन में गरीब बच्चे मरने के लिए अभिशप्त हैं. अभिशप्त इस लिए हैं कि हमारे लोकतंत्र की प्राथमिकताएं विपथगामी हो गयीं हैं. भारतीय स्वास्थ्य प्राणाली कि दुर्दशा कोई गोपनीय तथ्य नहीं है. उत्तर प्रदेश जो हमारे सभी अवतारों की भूमि है और जहां लोहा को विश्वकर्मा, काठ को वसुदेओ और पत्थर को महादेव माना जाता है उसी उत्तर प्रदेश में “घुटरुनी चलत रेणु तन मंडित ” एक साल से कम उम्र में प्रति हज़ार में 64 बच्चे और “खेलत खात फिरे अंगना ” 5 वर्ष से कम उम्र में प्रति हज़ार में 78 बच्चे मारे जाते हैं. यहाँ 13 प्रतिशत बच्चे पैदा लेने के 24 के भीतर मर जाते हैं, 54 प्रतिशत बच्चे 4 हफ़्तों के भीतर तथा 33 प्रतिशत बच्चे 1 से 11 साल कि उम्र के बीच मर जाते हैं. यह दर दुनिया के निर्धनतम देश अफ्रिका के बुर्किना फासो के शिशु मृत्यु दर से भी ज्यादा है. उत्तर प्रदेश में एक डॉक्टर औसतन 3812 रोगियों का रोजाना इलाज़ करता है और यहाँ स्त्री रोग तथा प्रसूति के महज 14.4 % है और सरकार वहाँ स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति मात्र 452 रूपए खर्च करती है जो राष्ट्रीय औसत से 70 प्रतिशत कम है. ऊपर के आंकड़े बता रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में बच्चे मरने के लिय क्यों अभिशप्त हैं लेकिन इसका जो सबसे बड़ा कारण है वह है कि वहाँ इस तरह की मौतों पर मातम नहीं सियासत होती है. हम इसका मूल्यांकन नहीं करते कि हमने क्या खो दिया , हम एक क्षण रुक कर यह नहीं सोचते कि चूक कहाँ हुई है , हालांकि रुकते ज़रूर हैं ताकि उस क्षण राजनीति के औजारों को निकाल कर मोर्चाबंदी कर सकें. उत्तरप्रदेश ही क्यों हमारे देश के बच्चे मरने के लिए अभिशप्त हैं. क्योंकि हम और हमारी सरकार मध्ययुगीन झगड़ों को निपटाने में लगी है. हम अपनी भावुकता और संवेदनशीलता खोते जा रहे हैं. हमारे नागरिकों का वास्तविक व्यक्तित्व , बच्चों का भविष्य और माँ – बाप की उम्मीदें जाति और सम्प्रदाय के खूनी झगड़ों में व्यर्थ हो गयीं हैं. गायों को बचाने के लिए आन्दोलन हो रहे हैं और बच्चो को बचाने के लिए दो बूँद आंसू तक नहीं हैं हमारे पास. हमारे देश में बच्चे मरने के किये इसलिए अभिशप्त हैं कि हकीक़त का बयान करने वाले हामारे ढाँचे खंड – खंड हो चुके हैं. हालातों की समग्रता तक पहुँचने के सारे रास्ते बंद किये जा रहे हैं और सच पर अवान्टर सच का गिलाफ चढ़ाया जा रहा है. वे शोर और रोष से लबालब छद्म युद्ध कि हमारी पिपासा को बढ़ा रहे हैं जिसका एक मात्र नतीजा होगा कि हम एक दूसरे से विभाजित हो जायेंगे. बच्चों कि मौतों के पीछे हमारा समाज नहीं है बल्कि उन लाशों के पीछे लगे हैं ठेकेदार , अफसर और नेताओं जैसे बड़े – बड़े गिद्ध. राम मंदिर बनाने के लिए राजनितिक और न्यायिक दौड़धूप चल रही है जबकि जबकि राम कि करुना के बारे सोचने का वक्त किसी के पास नहीं है.
देखोगे तो हर मोड़ पर मिल जायेंगी लाशें
खोजोगे तो इस शहर में कातिल न मिलेगा
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