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Wednesday, August 30, 2017

बात निकली है तो दूर तलक जायेगी

बात निकली है तो दूर तलक जायेगी

देश की सबसे बड़ी अदालत नेआधार कार्ड और 12 अंकों के बायो मीट्रिक पहचान के बारे में निर्णय देते हुए कहा कि निजता का अधिकार हर नागरिक का भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार है. इस ऐतिहासिक फैसले न जहां आधार कार्ड की अनिवार्यता की हवा निकाल दी वहीँ भविष्य के लिए कई और विवादों के लिए ज़मीन तैयार कर दी. भारत जहां तरह तरह की संस्कृति , पहचान , रहन सहन, खानपान के लोग रहते हैं और अद्दलती विवाद के आधार पर सामाजिक विपर्यय पैदा करने राजनितिक स्वार्थी लोग हैं वहाँ तो नए मसलों का उभरना लाजिमी है. जिन मुद्दों को लेकर लोग आने वाले दिनों में अदालतों के दरवाज़े खटखटाएंगे वे हैं यौन अभिविन्यास , जो इच्छा हो खाने की आज़ादी , चिकित्सकीय गर्भपात की आज़ादी, भौतिक और आभासी दुनिया में व्यक्तिगत सूचनाओं के प्रसार पर नियंत्रण जैसे मसायल इस फैसले के हवाले से उठेंगे. प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता में 5 जजों की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि संविधान की धारा 21 के तहत निजता का अधिकार  जीने के अधिकार और व्यक्तिगत आज़ादी के अधिकार का हिस्सा है जिसकी संविधान के खंड 3 के तहत गारंटी दी गयी है. अदालत के सामने सवाल था कि क्या भारतीय जनता को निजता के बुनियादी अधिकार  को मानना चाहिए? फैसले में जजों की पीठ ने टेलेफोन टैपिंग एच आई वी की स्थिति की घोषणा, खाने की प्राथमिकता, आपराधिक गवेषणा के अंतर्गत वैज्ञानिक परीक्षण इत्यादि कई मामलों पर दिए गए फैसलों का हवाला दिया. अदालत ने कहा कि टेलेफोन टैपिंग और इन्टरनेट से व्यक्तिगत सूचनाओं को हैक करना निजता के अधिकार के हनन के दायरे में आता है. इसी सन्दर्भ अदालत में आधार और सरकार द्वारा बायोमेट्रिक आंकड़े  एकत्र करने  का हवाला उठा. अदालत का मानना था कि इस देश का कोई भी व्यक्ति नहीं चाहेगा की कोई सरकारी आदमी जब चाहे उसके घर में घुस जाए या बिना अनुमाती के किसी आदमी के व्यक्तिगत परिसर में सैनिक खेमा गाद दें. इस फैसले के सन्दर्भ में केंद्र सरकार ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि मौलिक अधिकार के तहत व्यक्तिगत  हित और सरकार की वैधानिक चिंता में संवेदनशील और सावधानीपूर्ण संतुलन होना ज़रूरी है. सरकार ने कहा की जो  कोर्ट द्वारा कहा  गया है उसमें शामिल है राष्ट्रीय  सुरक्षा को बनाए रखना, सामाजिक कल्याण की सुविधाएं मुहैया कराना , नवाचार को प्रोत्साहन तथा ज्ञान का प्रसार इत्यादि. सरकार ने कहा की वह इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है. अदालत में यह मामला आधार विधेयक को चुनौती देने वाले कई लंबित आवेदनों  को निपटाने के दौरान उठा. इन आवेदनों में आधार की वैधता को चुनौती दी गयी थी.

    इन सारे मामलात में दिलचस्प यह है की विधि मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने इस फैसले का स्वागत किया है और कहा है की सरकार जनता के निजता के अधिकार का साम्विध्निक अधिकार के तौर पर समर्थन करती है.  कैसी विडंबना है कि सरकार ने चार साल पहले निजता और उसके वजूद पर सवाल उठाया था और यहाँ तक कहा था की आम जनता को अपने शारीर तक पर अधिकार नहीं है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ही कहा था कि भारत जैसे गरीब देश में निजता के अधिका को ख़त्म कर दिया जाना  चाहिए . लेकिन अब यह तथ्य सार्वजनिक हो गया कि देश की जनता को सरकार और खुद को खुदा समझने वाली बहुराष्ट्रीय  कंपनियों से ज्यादा अधिकार है.

अब केवल फैसला ही नहीं फैसले मेरिन जजों ने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया है वह भी आम जनता को आह्लादित करने वाले हैं. जज ने कहा कि “मुझे नहीं लगता, कोई यह पसंद करेगा कि  सरकार कहे कि क्या खाना है , क्या पहनना है और किसके साथ प्रेम करना है.” अब आधार के सम्बन्ध में आंकड़े एकत्र करना सरकार के लिए कठिन हो सकता है. हालाँकि सरका ने इस फैसले का स्वागत किया है पर जब आधार का मामला उठेगा तो इसके कई प्रावधान परीक्षाधीन होंगे और यकीनन डेटा सुरक्षा के सन्दर्भ में  अदालत का मापदंड काफी कठोर होगा. भारत में सूचना टेक्नोलोजी क़ानून अभी एक तरह से शैशव काल में है. यह डिजिटल युग है और ऐसे में जब अधिकाँश लोग अपने जीवन की गतिविधियों को वाट्सएप , ट्वीटर या ई मेल पर साझा करते हैं वैसे में डेटा की सुरक्षा ज़रूरी है. अगर क़ानून की भाषा में कहें तो यह मौलिक अधिकार की तरह एकदम बुनियादी है. इस कानून के तहत फेस बुक, वाट्सएप और यहाँ तक की गूगल को भी अपने गोपनीयता के नियमों की समीक्षा करनी होगी. इस निर्णय से यह तय हो गया कि सबको अपने शरीर पर अधिकार है. यह फैसला सरकार की ताकत के मुकाबले  आम आदमी के अधिका की रक्षा के लिए इतिहास में याद किया जाएगा. अब बात यहीं ख़त्म नहीं होगी दूर तक जायेगी.

   

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