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Friday, August 4, 2017

हमें तैयार रहना होगा

हमें तैयार रहना होगा
डोकलाम में भारत चीन में तानातानी को एक महीने से ज्यादा वक्त बीत गया और किसी तरह का समाधान होता नहीं दिख रहा है.  इस 4000  किलो मीटर लम्बी सीमा पर दोनों तरफ से भुजाओं का फडकाना और विवाद दोनों बरसों से कायम है. चीनी सेना नेब भारतीय सीमा में कई बार घुसपैठ की है और विवाद किया है पर उसे तत्काल सालता लिया गया. इतना लम्बा कोई विवाद नहीं खिंचा. स्पष्ट रूप से यह स्तिथि पहले से भिन्न है.  भिन्नता यह है कि , जैसा पूर्व विदेश सचिव जयशंकर ने कहा कि, इस बार इन दोनों मुल्कों के विवाद में भूटान भी शामिल है . पहले केवल भारत और चीन ही रहते थे. यह पहला मौक़ा है कि इस विवाद में कोई तीसरा देश शामिल हो गया है. भूटान से भी चीन  का सीमा विवाद है. चीन के चारों तरफ लगभग 14  देशों कि सीमा मिलती है , जिनमे 12  मुल्कों से उसका विवाद मिट चुका है फकत भारत और भूटान के साथ ही उसका विवाद चल रहा है. चीन के साथ भूटान के जितने भी समझौते  हुए वे सब चीन के ही पक्ष में हैं. विगत 33  वर्षों में दोनों देशों में 24 बार वार्ताएं हुईं हैं पर कोई समाधन  नहीं  निकल सका . चीन को भ्रम है कि भारत कि शह में आकर भूटान जिद्दी रुख अप्माये हुए है , जबकि उसकी यह धरना गलत है. दरअसल , जबसे दलाई लामा को तिब्बत से निर्वासित किया गया तबसे ही भूटान चीन को लेकर चिंतित है. यही कारण  है कि चीन और भूटान में कूटनीतिक सम्बन्ध भी नहीं हैं . नयी  दिल्ली में चीनी दूतावास के जरिये दोनों देशों में द्विपक्षीय वार्ताएं होती हैं , अबसे कुछ  महीने पहले शंघाई को ऑपरेशन ओर्गनिजेशन के शिखर सम्मलेन में मोदी जी चीनी प्रधान मंत्री सही जिन पिंग से वार्ता के बाद   विदेश सचिव जय शंकर ने कहा कि दोनों देशों ने तय किया है कि मतभेदों को विवाद नहीं बनाने दिया जाएगा. जब जबकि जून के आखिर में वाशिंगटन में मोदी ट्रंप वार्ता चल रही थी उसी वक्त डोकलम विवाद सुर्ख़ियों में आ गया. यह संयोग नहीं हो सकता है. अब चीन 1890  का एक समझौता दिका रहा है जिसे भारत ने कभी नहीं माना , खास कर ऐसी तीन मुहानी के सम्बन्ध में जह भूटान भी एक पक्ष है. इधर वह अरुणाचल में मैक महोन रेखा मानने को तैयार नहीं है. उसका कहना है कि यह साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा बनाया गया था. जबकि इसी मैकमहोन रेखा के आधार पर उसने बर्मा से सीमा समझौता कर  लिया. यह चीन के दोहरे चरित्र और पाखण्ड का स्पष्ट प्रमाण है. इस मामले में चीन के दावों में कई विसंगतियां है और उन्ही विसंगतियों को वहाँ कि मीडिया अपने देश का दावा  बना कर उछल रहा है. भारत मामले को वार्ता से हल करना चाहता है जबकि चीन कहता है कि भारत इलाका खली कर दे तब बात होगी. चीन धमकियाँ  दे रहा है जबकि भारत बार बार कह रहा है कि वह युद्ध नहीं चाहता. युद्ध नहीं चाहने के उसके कई महत्वपूर्ण कारण हैं, सबसे बड़ा कारण वह अपने लोगों और देश का विकास चाहता है. वह विकास में चीन को महत्वपूर्ण भागीदार मानता है. अमरीका या जापान से भारत के सम्बन्ध चीन के विपरीत नहीं हैं. यह चीन के भड़काऊ रुख के प्रतिक्रया स्वरुप है. चीन भारत का हर जगह विरोध करता है. चाहे वह मसूद को अन्तरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने का मामला हो या   चीन पकिस्तान आर्थिक कोरिडोर सब जगह चीन भारत का विरोध करता दिखता है. जितने भी संकेत मिल रहे हैं उनसे साफ़ जाहिर होता है कि मामला जल्द सुलझने वाला नहीं है. यह लंबा चलेगा.ऐसे में हमें मानसिक और सैनिक तौर पर तैयार रहना होगा .  यही नहीं हमें राष्ट्र रक्षा लम्बी अवधी कि समर नीति भी बनानी होगी.   

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