भ्रम और सच
मोदी- शाह का विजय रथ अपनी रफ़्तार से चलता हुआ असंगठित विपक्ष को मसलता हुआ चल रहा है. ऐसे में सत्ता के कम से कम दो महान वायदों पर सोचना ज़रूरी है .ज़रूरी इस लिए भी कि सरकार के कार्य काल का अधिकांश समय गुजर चुका है और जिस उम्मीदों के आधार पर इसे जनता ने अपना भविष्य सौंपा वे उम्मीदें पूरी हो सकीं या नहीं. सरकार के कीर्तन कीर्तन दल इसपर आपत्ति कर सकते हैं कि पिछली सरकारों ने जो काम 67 वर्षों में पूरा नहीं किया उसे इतनी जल्दी यह सरकार इतने कम समय में कैसे पूरा कर सकती , या ये भी कह सकते हैं कि यह तो उस काल में भी होता था तब तो नहीं बोलते थे. अब उन्हें कौन समझाए कि जनता ने उनके काम काज को नामजूर किया इसीलिए तो उसे हटा कर इन्हें राष्ट्र कि बागडोर सौंपी. 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान इस बात का जैम कर प्रचार किया गया कि सहायता देने कि वह सियासत ख़त्म कि जायेगी और बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित किये जायेंगे. गुजरात के विकास मॉडल कि तर्ज पर देश का विकास होगा. रोजगार के अवसर चाहने वाले नौजवानों को इस वायदे ने मोह लिया. ख़ास कर उत्तर प्रदेश के नौजवान जिनकी बड़ी संख्या नौकरी कि तलाश घूम रही थी. सबको लगा यह नेता जादू कर देगा. लेकिन तीन साल गुजर गए और उन नौजवानों का मोहभंग हो गया जो नौकरी की उम्मीद में मोदी जी का कीर्तन करने में लगे थे. श्रमिक ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि नौकरिया बढ़ने कि बजे घटीं हैं , खासकर औपचारिक क्षेत्र कि नौकरियां जिसके प्रति देश के नौजवानों को शुरू से मोह रहा है. भारतीय रोजगार रिपोर्ट 2016 के अनुसार देश में 5 करोड़ कामगारों का आधिक्य है. विकास पुरुष के वायदे कि चमक ख़त्म हो गयी. 2019 के चुनाव को देखते हुए लोगों का ध्यान रोजगार जैसी ज़रूरतों से हटाने की कोशिश शुरू हो गयी. सत्तारूढ़ दल कि ध्रुवीकरण, बहुलवादी मशीनरी तेज रफ़्तार से काम करने लगी. चलिए हमारे महान नेता हमारे नौजवानों को राजगार नहीं दे सके तो कोई बात नहीं कम से कम करप्शन कि दैत्य के खिलाफ युद्ध तो कर ही सकते थे? क्या हुआ , करप्शन बदस्तूर जारी है. विदेशों में जमा कालाधन लाकर देश के सभी लोगों के झाते में 15 -15 लाख रूपए के वायदे को “ जुमला “ मान कर नज़रंदाज़ भी कर दें तब भी नोटबंदी के ब्रह्मास्त्र तो पटाखा बनकर रह गया. भारतीय राजनीति का यह सबसे बड़ा धोखा है. कहा गया था कि अमीरों कि तिजोरी में में जो कालाधन है वह बाहर आ जाएगा , पर नहीं आया. कहा गया था कि जाली नोट का कारोबार बंद हो जाएगा पर जाली नोट और बढ़ गए. आतंकवाद को धन नहीं मिलेगा पर आतंकवादियों को धन देने के मामले में रोज गिरफ्तारियां हो रहीं हैं. बैंक में कितने नोट लौटे इसका आंकडा फिलहाल रिजर्व बैंक के पास नहीं है. वह केवल नोट गिनने में लगा है अभी. शक तो यह भी है कि रिजर्व बैंक के पास जो नोट लौटे हैं उनकी संख्या जरी किये गए नोटों से ज्यादा है. यानि कुछ रसूखदार लोगों ने जाली नोटों को देकर असली रूपी ले लिए. प्रधान मंत्री जी को यह मालूम होगा कि नोटबंदी के कारन कितने लोगों के रोजगार चले गए और इसके परिणामस्वरूप कई परिवार भुखमरी के शिकार हो गए. प्रधान मंत्री जी ने “ हार्वर्ड “ के विद्वानों का मखौल उड़ाते हुए सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े दिखाये. उनके आर्थिक सलाहकारों को उन्हें यह बताने का सहस नहीं था कि ये औपचारिक क्षेत्र के लघु अवधि के आंकड़े हैं. वास्तविक आंकड़े इससे अलग हैं.
अब यह सियासी तिलिस्म है कि करप्शन से लड़ने और बेईमान अमीरों को दंड देने के लिए छोटी मोटी मुश्किलें तो उठानी ही पड़ेंगी. पर सच तो यह है कि बेईमान आमिर मजे मार रहे हैं और करप्शन अपनी जगह कायम है. चुनाव में धन देने के मामले को सूचना के अधिकार से बाहर कर दिया गया. चुनाव पारदर्शी होने कि बजाय अपारदर्शी हो गया. सारे वायदे फेल हो गए. अब विपक्ष मुक्त भारत यानी बहुलतावादी अधिनायकवाद कि ओर कदम बढाए जा रहे हैं. देखना यह कि इसके लिए कौन सा इंद्रजाल इस्तेमाल किया जाएगा.
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