मालदीव मसले में भारत को सचेत रहना होगा
मालदीव में राजनीतिक उथल -पुथल और तदंतर वहां के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भारत एक अजीब दुविधा में फंस गया है। मालदीव में राजनीतिक उथल- पुथल के बीच सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद सहित विपक्ष के नेताओं को रिहा कर दिया जाए । इससे उत्पन्न नई परिस्थिति से इस निपटने के लिए मालदीव ने भारत से मदद मांगी है। अब भारत यह सोच नहीं पा रहा है कि एक संप्रभु राष्ट्र को कैसे और किस तरह से मदद पहुंचाए। भारत सदा से जरूरत में मालदेव का मददगार रहा है। भारत की सेना ने 2008 में एक बार वहां तख्ता पलट की कोशिश में हस्तक्षेप कर उसे रोका था। नौसेना वहां 2009 तक मौजूद थी। अब वह देश फिर से भारत की तरफ देख रहा है । भारत के लिए एक मौका है कि वह दक्षिण एशियायी क्षेत्रीय सहयोग को पुनर्परिभाषित करे। दक्षिण एशियाई क्षेत्र में चीन अपनी बढ़त बनाने के प्रयास में लगा हुआ है और ऐसे में स्पष्ट है चीन भारत के दखल को रोकना चाहेगा। चूंकि यह मालदीव का अंदरुनी राजनीतिक मामला है और भारत को निर्णायक कदम उठाना चाहिए। इसमें ना केवल मालदीव की जनता का हित है बल्कि उसे अपना भी हित देखना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक किसी भी संप्रभु राष्ट्र के अंदरूनी मामले में दखलंदाजी नहीं होनी चाहिए। राष्ट्र संघ के इस नियम को भारत आजादी के बाद से मानता आया है। राष्ट्र संघ के नियमानुसार कोई भी राष्ट्र या राष्ट्रों का समूह किसी भी देश के अंदरुनी या वैदेशिक मामले में दखल नहीं दे सकता है। किसी भी तरह का दखल चाहे वह राजनीतिक हो, आर्थिक हो या सांस्कृतिक अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना जाएगा । लेकिन ऐसे में जब किसी देश का विधिक शासन और वहां की जनता के अधिकार संकट में हों तो हस्तक्षेप कानून का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। अतः मालदीव में भारत का हस्तक्षेप कानून का उल्लंघन नहीं होगा। दुनिया जानती है कि भारत किसी भी देश के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप नहीं करता है । क्षेत्रीय तथा विश्व स्तर पर किसी भी झगड़े को शांतिपूर्ण तरीके से निपटाने का समर्थक है। संविधान की धारा 51 के अंतर्गत साफ कहा गया है भारत अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा ,दो देशों के बीच सम्मानपूर्ण संबंध को मजबूत करेगा और अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों को बातचीत से सुलझाने की कोशिश करेगा। भारत का किसी भी देश के प्रति यही दृष्टिकोण रहा है । भारत इंसानी चिंताओं और संकट के दौर में भी उस देश में विकास के सकारात्मक सोच के साथ हस्तक्षेप कर इंसानी विपदाओं को दूर करने की कोशिश करता है। इसने कभी भी किसी पड़ोसी देश पर रौब जमाने की कोशिश नहीं की। अगर कोई अन्य देश ऐसा करता हुआ पाया भी जाता है तो भारत उसने उसके प्रति चिंता जाहिर करता है। एशिया में आर्थिक विकास , सुरक्षा और शक्ति संतुलन के लिए भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है। यह बातचीत के जरिए किसी भी देश के भीतर व्याप्त संकट को समाप्त करने की कोशिश करता है।
अब मालदीव के संकट के मद्देनजर भारत को कूटनीतिक कदम उठाना चाहिए ताकि चीन की आर्थिक और राजनीतिक कूटनीति रोक सके। नेपाल का ही उदाहरण लें , भारत ने वहां से पैर खींच लिये लेकिन चीन लगा रहा। नतीजा यह हुआ चीन को भारत नहीं रोक सका। जबकि भारत और नेपाल की आर्थिक तथा सांस्कृतिक संबंध ज्यादा प्रगाढ़ थे। लेकिन अब नेपाल चीन की तरफ झुक गया है। चीन ने उसके लिए अपने बंदरगाहों की राह खोल दी तथा संयुक्त रेल पटरी बिछाने की बात चल रही है। भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज काठमांडू गयीं लेकिन नयी सरकार बनने से पहले , और तब तक देर हो चुकी थी। भारत को चाहिए था कि वह नेपाल और चीन के संबंधों से सावधान रहे और उससे होने वाले खतरे का पहले से अंदाजा लगा ले, लेकिन ऐसा नहीं हो सका ।अगर मोदी सरकार दक्षिण एशिया में तथा हमलावर चीन से संतुलन बनाए रखना चाहती है उसे मालदीव संकट पर चुप नहीं रहना चाहिए और ना ही इस मामले को हाथ से निकलने देना चाहिए ।जैसा कि नेपाल में हुआ नेपाल के साथ हुआ।
0 comments:
Post a Comment