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Wednesday, February 21, 2018

अगली बार क्या गठबंधन सरकार

अगली बार क्या गठबंधन सरकार

इन दिनों फुसफुसाहट सुनने में आ रही है कि अगली बार नरेंद्र मोदी नहीं तो कौन? " विशेषज्ञों" ने चेतावनी भी देनी शुरू कर दी है अगर हम नरेंद्र मोदी को दोबारा बहुमत से नहीं ला सके तो  अस्थिर राजनीति का दौर शुरू होगा। क्या यह चेतावनी हमें चौंकाती नहीं है? उल्टे अगर नरेंद्र मोदी 2019 में दोबारा नहीं आ सके तो भारतीय लोकतंत्र के लिए महान घड़ी होगी। क्योंकि एक सरकार जो कोई  काम कर ही ना पाये उसे दोबारा क्यों लाया जाए?  कोई भविष्यवाणी नहीं है बल्कि एक तर्क है। हमें मोदी जी और उनकी सरकार के बारे में एक बार फिर से सोचना चाहिए।  उनको उनके चुने जाने में भारतीय समाज से  कहां गलती हुई इसकी समीक्षा होनी चाहिये। मोदी जी दरअसल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की देन हैं। जिसमें संघ के उत्साही स्वयं सेवकों की बड़ी भूमिका है। यही नहीं पार्टी के कार्यकर्ताओं का सोशल मीडिया पर अथक परिश्रम ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अगर ध्यान से देखें कि नरेंद्र मोदी ने भारत को क्या दिया तो पता चलेगा कि मोदी जी ने देश को एक ऐसी दृष्टि प्रदान की जिसमें विदेशी का खौफ है और विकास के प्रतीक हैं। 2014 में मोदी जी के चुनाव के आसपास जो कुछ चल रहा था वह एक तरह से पैदा की हुई बहस थी।   या कहें कि तुलना थी सरकार के नेतृत्व वाली वाले विकास बनाम निजी नेतृत्व वाले तेज गति के विकास की।  सबसे पहले तो कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां सरकार का होना जरूरी है मसलन सामाजिक सुरक्षा, बुनियादी स्वास्थ्य और प्राथमिक शिक्षा। इन क्षेत्रों में  सरकार ने अबतक ना कोई नीति बनायी और ना पुरानी नीतियों को सही ढंग से लागू किया।  जिसका नतीजा बहुत खराब हुआ। इस बीच सरकार ने आधार कार्ड के माध्यम से अपनी मौजूदगी सब जगह बना ली।  इंसानी  आजादी खतरे में पड़ गई है। "कम से कम शासन( मिनीमम गवर्नमेंट ) " तो एक मजाक बनकर रह गया। इधर राफेल, जीएसपीसी और व्यापम- इसे लेकर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए कि मोदी जी के शासन में भ्रष्टचार नहीं है।दूसरी तरफ गुजरात मॉडल के नाम से निजी विकास को बढ़ावा मिल रहा है।य नहीं देखा जा रहा है कि इंसानी हक और पर्यावरण दांव पर चढ़ रहे हैं।झूठे प्रचार के लिए सोशल मीडिया का जमकर उपयोग हो रहा है और ऐसा वातावरण तैयार करने की कोशिश की जा रही है कि आर्थिक और सामाजिक तौर पर सब कुछ ठीक-ठाक है।मोदी जी सुशासन के तरफदार हैं और  विगत चार साल से समाज और समुदाय पिछड़ते जा रहे हैं और  सत्ता का लाभ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा उससे जुड़ी संस्थाओं को मिल रहा है।पिछले 4 वर्षों में अर्थव्यवस्था मुंह के बल गिरी है हाला

इतने खराब फकत इसलिए नहीं लग रहे हैं कि तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत गिरी हुई है इन सबके बावजूद अब वातावरण में एक खास किस्म का प्रचार  चल रहा है कि भारत  गठबंधन की सरकार की योग्य नहीं है।यहां एक बहुमत वाली सरकार आवश्यक है।लेकिन पिछले 4 साल में सभी दिशाओं में हालात इतने खराब हो गया कि मोदी जी के कट्टर समर्थक भी शंकित नजर आने लगे हैं और  इनसे पहले की  अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को वे ज्यादा सफल बताने लगे हैं। अभी  संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कीएक टिप्पणी में  उनका गुस्सा स्पष्ट झलक रहा था। ये संकेत हैं सत्तारूढृ दल की बेचैनी के।  चलो मान लेते हैं किअर्थ व्यवस्था  में उतार चढ़ाव होता रहता है लेकिन पिछले 4 वर्षों में नफरत पैदा करने की कोशिश है।जो भी है अगर उसके आंकड़े देखें उन लोगों का माथा घूम जायेगा। यह तो सही है कि जब तक सरकार ऐसे कामों में शामिल नहीं होगी यह काम नहीं हो सकते। सरकार के इस कार्यकाल में  सबसे खराब जो हुआ वह है संप्रदायवाद की भावना का विकास।   कई ऐसी घटनाएं हुई जो आतंकवाद के दर्जे की थी।क्या यही बहुमत का फल मिला भारत को।गठबंधन की सरकारइस मामले में अच्छा किया होता क्योंकि घटक दलों का दबाव सरकार को कुछ गलत नहीं करने देता।  जो लोकसे खेल नहीं सके  अच्छी लोकतांत्रिक सरकार उसे ही

 कहा जाता है।जो सरकार बहुत बड़े जनमत को स्वीकार हो और जिसमें आबादी के लगभग सभी धागों का प्रतिनिधित्व हो उसे ही अच्छी सरकार कहते हैं।

 2019 का चुनाव जवाबदेही की मांग करने वाला होगा।भारत को एक अच्छी और काम करने वाली सरकार की जरूरत है।हमें प्रचारकों और चेतावनी देने वालों से घबराना नहीं होगा। सोचनाहोगा क्या देश और जनता के हित में है। गठबंधन सरकार कीकमियों से डराने वालों के झांसे में नहीं आना है।

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