अगला प्रधानमंत्री कौन?
2019 धीरे-धीरे नजदीक आ रहा है और आम चुनाव की हवा गर्म होती जा रही है। यह सवाल भी पूछा जाने लगा है कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा ? आप में से बहुतों ने एक फिल्म देखी होगी " थ्री ईडियट्स।" इस फिल्म में एक इंजीनियरिंग कॉलेज के निदेशक ने छात्रों से कहता है कि" जिंदगी में नंबर दो को कोई याद नहीं करता। जो कुछ मिलता है नंबर 1 को ही मिलता है।" आज जब राजनीति पर बात चल रही है तो यह जुमला बड़ी तेजी से जेहन में आ रहा है। क्योंकि राजनीति में भी नंबर दो का कोई महत्व नहीं है, सिवा अगला 5 साल का इंतजार और मजाक के। खासकर ऐसी स्थिति में जब आप सत्ता में हो और चुनाव के बाद सत्ता से बाहर आ गए हों। बड़ा निराशाजनक समां होता है। इसलिए चुनाव भी अव्वल आने की एक जंग है। अव्वल आने के लिए हर नेता हर तरह की चाल ,कुछ रणनीति और कुछ कूटनीति अपनाता है, बनाता है। इस बार के चुनाव में लगता है कुछ नया होने वाला है। क्योंकि इसके भीतर कई जटिल समीकरण नजर आ रहे हैं। इन्हीं को सामने रख कर कूटनीतिओं पर काम चल रहा है, रणनीतियां बनाई जा रही हैं।
पहले संख्या पर बात करते हैं। लोकसभा की 543 सीटों को कांग्रेस और भाजपा जीत सकती है बाकी की सीटें उन क्षेत्रीय पार्टियों के खाते में आ जातीं हैं जो राष्ट्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन में है या नहीं हैं। नरेंद्र मोदी को भारत का प्रधानमंत्री बने रहने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी 282 सीटों की संख्या 230 से कम ना हो। यानी, कांग्रेस को सौ से कम सीटें मिलें। इधर राहुल गांधी को देश का अगला प्रधानमंत्री बनने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि कांग्रेस अपनी वर्तमान की 44 सीटों से आगे बढ़कर 130 पहुंच जाए। इसका मतलब होता है भाजपा को 200 से कम सीटें मिलें। इस तरह भाजपा और कांग्रेस को मिलाकर 330 सीटें हुई यहां भाजपा का लक्ष्य 230 से अधिक सीटें जीतना होगा जबकि कांग्रेस चाहेगी 130 से अधिक सीटें हासिल करना।
यह तो सब जानते हैं सीटें वोटों से मिलती हैं और वोट मतदाता देते हैं। देश में 10 करोड़ अपंजीकृत मतदाता है इनमें 7.5 करोड़ 18-24 वर्ष के युवक हैं। बाकी का ढाई करोड़ ऐसे पुराने मतदाता हैं जिन्होंने विभिन्न कारणों से वोट देने के लिए खुद को पंजीकृत नहीं कराया। भारत में 18-24 वर्ष के नौजवानों में से आधे के नाम मतदाता सूची में पंजीकृत नहीं है। यानी 7.5 करोड़ युवा मतदाता सूची में नहीं है। देश में लगभग 10 करोड़ लापता मतदाता हैं। यह उन 33 करोड़ मतदाताओं का हिस्सा हैं जो किसी कारणों से वोट नहीं डालते इनके अलावा 34 करोड़ मतदाता अनिश्चित हैं जिनका वोट किसी भी मुख्य पार्टी को जाना मुश्किल है। कुल मिलाकर इनकी संख्या 67 करोड़ है। 67 करोड़ की संख्या कुल मतदाताओं का दो तिहाई भाग है जिन्हें कोई भी सरकार लपक सकती है। जो पार्टी ऐसा कर सकती है वही सरकार बनाएगी। यह संख्या भाजपा के कुल समर्थकों के 4 गुना और कांग्रेस के कुल समर्थकों के 8 गुना है।
देश के 2 बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जिसमें कुल सीटों की संख्या क्रमशः 80 और 48 है यानी इन दो राज्यों से 128 सांसद चुन कर आते हैं। इनमें भाजपा के 94 और उसके सहयोगी पार्टियों की 20 है मतलब भाजपा को इन दो राज्यों में कुल 128 में से 114 सीटों पर विजय मिली है। भाजपा के खिलाफ कितने उम्मीदवार खड़े होते हैं अगले चुनाव में उनकी सफलता पर का निर्धारण करेगी। जितने ज्यादा उम्मीदवार किसी मुख्य पार्टी के होंगे उतने ही उनके जीतने की संभावना होगी इसलिए अगला चुनाव विपक्षी एकता के स्तर पर निर्भर करता है।
2014 की तरह चुनावी लहर किसी भी राष्ट्रीय जनादेश के लिए जरूरी है। अगर इस तरह की लहर नहीं होगी तो सदन में मजबूत जनादेश नहीं होगा। भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में केवल 3 बार चुनावी लहर देखने को मिली है। पहली बार 1977 में आपातकाल के बाद ,दूसरी बार 1984 में इंदिरा जी की हत्या के बाद और तीसरी बार 2014 में । चुनावी लहर मतदाताओं को जमा करती है और उन्हें मतदान केंद्रों तक जाने के लिए प्रोत्साहित करती है। अब अगले चुनाव में चुनावी लहर देखने को मिलेगी या नहीं इसका फैसला विभिन्न राज्यों के नतीजों पर निर्भर होगा। यह तो समय बताएगा
किसी भी पार्टी द्वारा चुनावी लहर पैदा करने के लिए 2-1 विचार जरूरी हैं। वास्तव में घोषणा पत्रों को न कोई पढ़ता है ना कोई इस पर ध्यान देता है । अब अगले चुनाव में कौन से बड़े विचार हैं यह तो समय बताएगा । सामने है कांग्रेस के 7 साल का रिकॉर्ड और आम जनता को 'अच्छे दिन" देने वाली भाजपा का रिकॉर्ड । भ्रष्टाचार, शासन व्यवस्था और खुद नरेंद्र मोदी। किसी बड़े विचार को बाजार में डालने के लिए सियासी दल किसी समूह विशेष के मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित करती है जिससे उसे वोट मिलने की उम्मीद होती है। इसलिए यह देश के सभी मतदाताओं के लिए नहीं बल्कि मतदाताओं के खास समूह के लिए होता है। 2014 में भाजपा के समक्ष देश का मध्य वर्ग था एक विशेष समूह। लेकिन अब एक भयानक परिवर्तन के बाद चार वर्ष में वह मध्यवर्ग गरीब मजदूर वर्ग में बदल गया है। इसलिए वह जादू शायद काम ना करें
देश में लगभग 10 लाख मतदान केंद्र हैं जिनमें प्रत्येक में औसतन एक हजार मतदाता वोट डाले जाते हैं, जो औसतन क्षेत्र के 250 परिवारों से आते हैं। मतदान के दिन उन विशेष मतदाताओं को पहचान कर उन्हें मतदान केंद्रों पर आने के लिए प्रोत्साहित करना किसी पार्टी के अंतिम विजय को निर्धारित करता है। ऐसा करने के लिए पार्टियों को कुछ ऐसे कर कार्यकर्ता तैयार करने होते हैं जो बूथ स्तर तक नए मतदाताओं के वोट सुनिश्चित करें और उन्हें वोट डालने के लिए घर से बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित करें।
2014 के बाद देश में स्मार्टफोन और डाटा कनेक्टिविटी का अद्भुत विकास हुआ है । नतीजतन सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से विचार साझा हो रहे हैं। कुल मतदाताओं में से आधे से ज्यादा लोगों के पास स्मार्टफोन हैं और वे इंटरनेट का प्रयोग करते हैं । विचार सोशल मीडिया के माध्यम से घर - घर पहुंचेंगे और पार्टियों के बारे में बताएंगे।
आने वाले चुनाव में जो कुछ भी होगा वह हमारे व्यक्तिगत और सामूहिक भविष्य को निर्धारित करेगा। जिसका अतीत के नतीजों से कहीं ज्यादा असर होगा । यह चुनाव एक नया बदलाव ला सकता है। इसलिए जरूरी है कि हम राजनेताओं के और उनके दलों के खेल के बारे में सचेत रहें । अपनी सूझबूझ से देश को प्रधानमंत्री प्रदान करें।
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