कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को संसद में 2018 -19 का बजट पेश किया। वित्त मंत्री ने इस बजट को लोकलुभावन बनाने की भरसक कोशिश की है । लेकिन कई ऐसी बातें हैं जो हलांकि स्पष्ट नहीं हैं लेकिन चुनौती देने लायक हैं। मसलन वित्त मंत्री ने अपने भाषण के आरंभ में ही कहा कि गांव में खुशहाली लाने के लिए और किसानों की दशा सुधारने के लिए उनके उत्पादन मूल्य का डेढ़ गुना क न्यूनतम समर्थन मूल्य अदा किया जा रहा है। ध्यान दें उनके उत्पादन मूल्य से डेढ़ गुना ज्यादा! लेकिन सरकार के आंकड़े इसे गलत बताते हैं। उन्होंने जिस रबी की फसल का उल्लेख किया है उसका भारतीय खाद्य निगम के अनुसार उत्पादन मूल्य 2408 रुपए है जबकि वही आंकड़े बताते हैं कि उनका न्यूनतम समर्थन मूल्य 1625 रुपये है। अब किस आधार पर डेढ़ गुना हुआ यह बताना मुश्किल है। यही नहीं , वित्त मंत्री जी किसानों की हालत सुधारने की बात कर रहे हैं। यहां आलम यह है कि नेशनल सैंपल सर्वे के आंकड़े बता रहे हैं कि एक साधारण किसान की वार्षिक औसत आय 36हजार रुपये है जबकि उस पर वार्षिक औसत कर्ज 47हजार रुपए है। सरकार कैसे उनका जीवन स्तर बढ़ाएगी यह तो भविष्य बताएगा। बजट में आश्वासन दिया गया है कि अस्पतालों की संख्या बढ़ेगी। गरीबों को गैस सिलेंडर मुफ्त दिया जाएगा और 5लाख तक का मेडिकल इंश्योरेंस दिया जाएगा। ऐसा लगता है खेती में होने वाले अवसाद को सरकार इन चीजों से पूरा करना चाहती है । आंकड़े उलझाने वाले हैं लेकिन कई जगह उनकी पर्दादारी दिख जा रही है। जैसे सरकार ने आश्वासन दिया है कि 2022 तक किसानों के आय को दुगना करने का लक्ष्य रखा गया है और उन की फसल को भी ज्यादा बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है लेकिन किस तरह से आय दोगुना होगी या फसल बढ़ेगी इसके बारे में कहीं कोई उल्लेख नहीं है। सरकार का कहना है कृषि उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा है। इस वर्ष खरीफ की फसल 275 मिलियन टन हुई है । सरकार के अनुसार पूरा कृषि बाजार 2000 करोड़ रुपए की लागत का है। किसानों के लिए बजट में 11 लाख करोड़ रुपये कर्ज का प्रस्ताव है। इसके साथ ही पशुपालकों को प्रोत्साहित करने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड मुहैया कराने की व्यवस्था की जा रही है। हां , इस बार बजट में आयकर छूट की सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया जबकि महंगाई मुद्रास्फीति को देखते हुए उम्मीद की जाती थी आयकर छूट की सीमा बढ़ेगी। वेतन भोगियों को 40 हजार रुपये का स्टैंडर्ड डिडक्शन दिया गया है। लघु अवधि के कैपिटल गेंस पर 15% का टैक्स जारी रहेगा। नागरिकों के लिए 5लाख के मेडिक्लेम की व्यवस्था की जा रही है । वित्त मंत्री के अनुसार यह दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है इसके तहत अब देश में 50 करोड़ लोगों को 5लाख रुपये तक क्या सुविधा दी जाएगी। नरेंद्र मोदी सरकार के अंतिम बजट की यह अब तक की सबसे बड़ी घोषणा है। लेकिन लेकिन विश्लेषक कहते हैं कि यह चुनावी फंदा भी हो सकता है। वित्त मंत्री ने अपने भाषण की शुरुआत में कहा था कि " पालिसी परालिसिस" को बदल डाला है। उन्होंने कहा कि सरकार ने बुनियादी संरचनात्मक सुधार किए हैं। नोटबंदी की वजह से काला धन घटा है। उन्होंने कहा वित्त वर्ष के दूसरे दौर में 7.30 प्रतिशत विकास दर की उम्मीद है। वित्त मंत्री ने कई तरह की सरकारी योजनाओं का भी जिक्र किया। उन्होंने उज्ज्वला योजना के तहत आठ करोड़ 8 लोगों को मुफ्त गैस कनेक्शन देने, सौभाग्य योजना के तहत गरीबों को मुफ्त बिजली कनेक्शन देने की घोषणा की है। वित्त मंत्री ने बजट भाषण में कहा दूसरी छमाही में 7.2% से 7.5 प्रतिशत की दर से भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि देश दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। भारत आज 2.5 लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था बन चुका है। उन्होंने आशा व्यक्त की दूसरी छमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.2% 7.5% रहेगी। उन्होंने कहा कि भारत पहले ही दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है अब हम पांचवी की ओर बढ़ रहे हैं । यहां यह सोचने की बात है स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए मोदी कहां से धन पाएंगे? यह उनके लिए चुनाव के दौरान सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। अगर अगले 6 महीने में मोदी जी इस योजना को ठीक से लागू कर सके तो निश्चित ही आम जनता के लिए यह बड़ी राहत ला सकता है और मोदी सरकार को चुनावी लाभ दिला सकता है।लेकिन दूसरी तरफ स्वास्थ्य और शिक्षा पर शेष 4% बढ़ा दिया गया है। सरकार के अनुसार मौजूदा वित्तीय वर्ष में वित्तीय घाटा 3.30 प्रतिशत बताया जा रहा है, यही नहीं 2018- 19 में विनिवेश से 80हजार करोड़ जुटाने का लक्ष्य रखा गया है। वैसे बजट की व्याख्या या उसका विश्लेषण निहायत जटिल और लम्बा विषय है लेकिन एक नजर में जो स्पष्ट होता है वह है कि यह बजट 2019 के चुनाव को दृष्टि में रखकर बनाया गया है और खर्चे का बजट है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सरकार विकास और वृद्धि को निगाह में रखकर चुनाव पर निशाना लगा रही है।
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