CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Monday, February 5, 2018

नौजवानों में खदबदाता असंतोष

नौजवानों में खदबदाता असंतोष
याद होगा कि अब से कोई 8 साल पहले रामलीला मैदान में अरविंद केजरीवाल ने "भ्रष्टाचार मुक्त भारत" का बिगुल फूंका था और उसमें समर्थन दिखाने के लिए मिस्ड कॉल देने की व्यवस्था गई थी। उपलब्ध आंकड़े बताते हैं तीन करोड़ लोगों ने मिस्ड कॉल दिया था। यानी, तीन करोड़ लोगों ने इस आंदोलन में भागीदार बन कर व्यवस्था के विरोध में अपना आक्रोश जताया था। यही कारण था कि राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में मोदी जी कांग्रेस को धूल चटा कर सत्ता में आए। उन्होंने देश के नौजवानों से वादा किया था कि भ्रष्टाचार  मुक्त शासन होगा और रोजगार का सृजन होगा। देश का नौजवान उनकी तरफ बहुत बड़ी आशा  के साथ देख रहा था। लेकिन शायद ऐसा नहीं हुआ। आंकड़े बताते हैं कि लगभग 5 करोड़ नौजवानों ने रोजगार कार्यालय में नौकरी के लिए पंजीकरण करवाया है। रोजाना 30 हजार नए नौजवान नौकरी की तलाश में आते हैं और काम मिलता है महज पांच सौ को। यानी रोजाना महज 500 नौकरियां पैदा हो रही है।  एक निजी सर्वेक्षण के मुताबिक आज हमारे नौजवानों में बेरोजगारी पहला मुद्दा है। आंकड़े बताते हैं कि 70% भारतीय परिवारों में कोई नियमित कमाने वाला नहीं है।  90%  औपचारिक क्षेत्रों में  15हजार रुपए महीने से कम वेतन मिलता है। नरेगा के तहत एक आदमी को एक महीने में औसतन 6 हजार रुपए दिए जाते हैं। या नहीं ग्रामीण भारत में  हमारे देश में औसयन  छह हजार रुपये से 15 हजार रुपए प्रतिमाह की आमदनी है  जो एक परिवार के जीवन यापन के लिये नाकाफी है। इनके अलावा कुछ परिवार ऐसे भी हैं जो 6हजार रुपए से 10हजार महीने पर चलते हैं। सरकार जब आई थी तो उम्मीद थी कि आय बढ़ेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं । इससे जनता में भारी निराशा है । कोढ़ में खाज की तरह ग्रामीण संकट दिनोंदिन गहराता जा रहा है। कुछ साल पहले तक गांव के नौजवान रोजगार की तलाश में शहर की ओर भागते थे लेकिन अब वहां की कहानी निराशाजनक है। निवेश में कमी तथा मंदी के कारण निजी क्षेत्र में नौकरियां कम हो गई हैं। रियल स्टेट में सबसे ज्यादा काम मिलता था नोटबंदी और जीएसटी के जाल में फंस कर यह भी बंद हो गया है।  इसका सामाजिक प्रभाव यह हुआ कि पिछले कुछ सालों से आरक्षण की मांग बढ़ती जा रही है। लेकिन यह इस समस्या का समाधान नहीं है। अगर शत प्रतिशत आरक्षण कर दिया जाए तब भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। क्योंकि, सरकारी नौकरियां कम है और लोग ज्यादा हैं, नौकरियों की मांग ज्यादा है। ग्रामीण नौजवानों का भविष्य अंधकार में है। उनके पास यही रास्ता  है कि गांव में रहकर छोटा-मोटा काम करके अपना जीवन यापन करें या फिर इस सपने में डूबे रहें कि सरकार और नई तकनीक इस स्थिति में बदलाव लायेगी ।  शिक्षा प्रणाली दिनों दिन असफल होती जा रही है। किसी भी देश में उसके नौजवान उसकी पूंजी हैं किंतु हमारा देश अपने नौजवानों का लाभ उठाने में सक्षम नहीं हो पा रहा है। शिक्षा प्रणाली में दोष या उसकी असफलता के कारण नौजवानों ने नई तरह की कुंठा पैदा हो रही है।  हमारी शिक्षा प्रणाली अयोग्य शिक्षितों को जन्म दे रही है जिससे उनका उपयोग नहीं हो पाता है और शिक्षित नौजवान बेकार होकर कुंठित हो रहे हैं। उनका मोह भंग होता जा रहा है। सरकार रोजी रोजगार पैदा करने के लिए आवश्यक संरचनात्मक सुधारों में असफल रही है। वस्त्र उद्योग क्षेत्र की बात करें तो चीन में इस क्षेत्र में रोजगार के कई अवसर थे लेकिन यह अवसर भारत में न आकर बांग्लादेश जैसे देश में चले गए। यही नहीं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन के कारण भी रोजगार घट रहे हैं। कंपनियां सॉफ्टवेयर में निवेश कर रही हैं और उस से काम ले रही हैं। जो काम आदमी करता था वह मशीनें कर रही हैं ,कंप्यूटर कर रहे हैं। आने वाले समय में इसका उपयोग और बढ़ेगा। यदि भारत सरकार ने नौजवानों को बेहतर रचनात्मक गुणों से परिपूर्ण शिक्षा देने की व्यवस्था नहीं की गई तो आने वाले समय में कठिनाइयां बढ़  सकती हैं। यहां दोबारा यह कहना पड़ रहा है कि भ्रष्टाचार मुक्त भारत का नारा सरकार  बदलने में सक्षम था तो बेरोजगारी का गुस्सा भी बहुत कुछ कर सकता है। बशर्ते नौजवान उस ओर ध्यान दें। देश में राजनीतिक जागरूकता बढ़ी है। पिछले  कुछ दिनों से लोगों को यह एहसास हो रहा है कि आंदोलन या प्रदर्शन करने से सरकारी कार्य प्रणाली में बदलाव नहीं आ सकता ना सरकार चेत सकती है, बल्कि जरूरी है निर्वाचन में सक्रियता से भाग लिया जाए ।  व्यवस्था ने इस ओर से ध्यान भटकाने के कई उपाय कर लिए हैं । राजनीति में हमें कई बार हैरतअंगेज नतीजे देखने को मिलते हैं। देश के हर गांव और शहरों में अचानक उभरे इस गुस्से या कहें असंतोष ने अगर ठोस रूप ले लिया तो आश्चर्यजनक नतीजे एक बार फिर देखने को मिल सकते हैं।

0 comments: