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Friday, February 23, 2018

भाजपा को राज्यसभा में बहुमत शायद ही मिले

भाजपा को राज्यसभा में बहुमत शायद ही मिले
राज्यसभा में 245 सदस्य हैं जिसमें भाजपा के पास 58 और कांग्रेस के पास 54 सदस्य हैं। अप्रैल में चुनाव के बाद यह समीकरण बदल जाएगा। भाजपा को कुछ और सीटें प्राप्त होंगी और कांग्रेस शायद घाटा लगे। इसके बावजूद यह नहीं लगता है कि भाजपा को इस सदन में बहुमत प्राप्त हो जाएगा ऐसा भी नहीं लगता कि भाजपा अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर बहुमत के जादुई आंकड़े को पार कर जाए या वहां पहुंच जाए 2014 में चुनाव के बाद जब भाजपा भारी बहुमत के साथ सत्ता में आई थी तो राजनीतिक पंडितों ने भविष्यवाणी की थी कि 5 वर्ष गुजरते-गुजरते भाजपा का राज्यसभा में बहुमत हो जाएगा लेकिन नहीं हो सका। यह भी कहा गया था किस सरकार अपना एजेंडा लागू करने के लिए संसद का संयुक्त सत्र ही बुला सकती है पर ऐसा भी नहीं हुआ। अब राज्यसभा में बड़ी संख्या होने के कारण कांग्रेस ने जीएसटी को छोड़कर सरकार से कई प्रस्तावों पर उसके दांत खट्टे कर दिए। अब अप्रैल में 55 सीटों पर चुनाव होने वाला जिनमें 18 सीटों पर भाजपा का कब्जा है और 14 सीटों पर कांग्रेस का बाकी सीटों पर अन्य दलों का कब्जा है चुनाव के बाद यह समीकरण बदलेगा जहां यूपी से नए सदस्य भेजे जाएंगे वह कुछ और प्रांतों से भी आएंगे। भारी बहुमत के साथ यूपी की सत्ता में आई भाजपा वहां से 6-7 सीटें मिलने की उम्मीद है बाकी और प्रांतों से मिलेंगी। कुल मिलाकर आशा है भाजपा को 9 सीटें मिलें। ऐसा होने से भाजपा को यहां 27 सीटों का लाभ मिल सकता है और अगर 27 सीटें मिली तो 55 सीटों में कुछ सदस्यों को अवकाश प्राप्त करने के बाद भाजपा को 67 सीटें हासिल हो जाएंगी। पिछले 4 सालों में कई राज्यों में चुनाव जीतने के बावजूद राज्यसभा में भाजपा के पास महज 24% सीटें हैं और अगर इंडिया की सीटें मिला दी जाए तभी वह बहुमत के करीब नहीं पहुंचती है। फिलहाल राज्यसभा में एनडीए के पास 83 सीटें हैं जिम में भाजपा के पास 58 जदयू के पास 7,तेदेपा के पास 6, शिवसेना के पास तीन, शिरोमणि अकाली दल के पास तीन, पीडीपी के पास दो और अन्य सहयोगी दलों के  4 सदस्य हैं। अप्रैल में चुनाव के बाद भाजपा के पास 27% सीटें हो जाएंगे और सहयोगी दलों का मिला दिया जाए तो यह आंकड़ा 35% तक पहुंच जाएगा फिर भी बहुमत से दूर है। अब अगर कोई विधेयक सरकार लाती है तो उसे पास कराना और नाकों चने चबाना बराबर होगा । लोकसभा से पारित होने के बावजूद राज्यसभा में उसे पारित करवाने में कांग्रेस या अन्य सहयोगी दलों की जरूरत पड़ेगी ही। यही कारण है कि तीन तलाक का मामला लटक गया सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद पारित नहीं हो सकता यही नहीं पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का सरकार का प्रस्ताव अटका पड़ा है। इसके अलावा कई और भी अटके पड़े  हैं। सरकार के पास महज एक साल बचा है और अगर उसे अपने इस कार्यकाल  के लंबित विधेयक पारित करवाने हैं तो उसे विपक्ष की ओर देखना ही पड़ेगा। उधर विपक्ष है कि मोदी जी को रगड़ने तैयारी कर चुका है । खासकर ,आने वाले चुनाव के  संदर्भ में विपक्षी दल मोदी को एक कमजोर इंसान के रूप में  दिखाना चाहते हैं । मोदी जी की बॉडी लैंग्वेज और उनकी बातचीत से झलकते उनके मनोविज्ञान से ऐसा लगता है कि मोदी जी यह महसूस कर रहे हैं कि " कोई समझने की कोशिश नहीं कर रहा है वह इतना कुछ करते हैं , इतना कुछ करना चाहते हैं लेकिन कोई समझना ही नहीं चाहता।" दरअसल बहुमत प्राप्त नेता के साथ यह एक तरह का सिंड्रोम है जो हर काल में हर नेता के साथ होता है और इससे हासिल निराशा को दूर करने के लिए वह नेता अपने चमचों से राय लेने लगता है । वे नेता को वही राय देते हैं जो नेता को सुनने में अच्छा लगे । नेहरू ने भी कुछ ऐसा ही किया था ,नतीजन 1962 का चीन युद्ध हो गया । इमरजेंसी के काल में इंदिरा जी ने भी ऐसा ही किया ।हालात इतने बिगड़े कांग्रेस बुरी तरह से पराजित हो गई।राज्यसभा के विपरीत समीकरण और सिर पर चुनाव को देखते हुए मोदी जी को बहुत सोच समझकर ऊपरी सदन में कोई विधेयक रखना होगा।

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