ये हंसने वाली तीन महिलाएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ना केवल अक्रामक बोलते हैं बल्कि कोई उसमें टोका टाकी करता है या फब्ती कसता है तो उसकी खिल्ली उड़ाने में भी सिद्धहस्त हैं। लेकिन पिछले हफ्ते जो लोकसभा में हुआ वह एक चिढ़े हुये आदमी की बात थी जिसने चिढ़ाने वाली महिला की बोलती बंद करानें की कोशिश की। मोदी जी ने उस हंसने वाली महिला को रामायण सीरीयल की शूर्पनखा से परोक्षल तुलना कर दी। उनकी इस बात से सत्ता पक्ष में ठहके लगने लगे और सदस्यों ने मेजें थपथपा कर हर्ष जाहिर किया। इसके बाद , गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू की वीडियो क्लिप ने इस मामले में रही सही कमी पूरी कर दी। उन्होंने सदन की सदस्य श्रीमती रेणुका चौधरी की हंसी की पृष्ठभूमि में उसी टी वी सिरीयल की शूर्पनखा की हंसी की वीडियो क्लिप वायरल कर प्रधानमंत्री के " मंतव्य " को स्पष्ट कर दिया। इस टिप्पणी के बारे में जो भी कहा जाय पर इसका मनोविज्ञान कुछ लगता है जैसे एक भड़का हुया आदमी हंसने वाली एक महिला को सबक सिखाना चाहता हो। आखिर विपक्ष और सदस्य तो आपत्ति कर रहे थे और अध्यक्ष से गुजारिश कर रहे थे कि उन्हें व्यवस्थित करें लेकिन प्रधानमंत्री अड़े हुये थे उस महिला की बोलती बंद कराने में। मनोविज्ञान की शब्दावलि में इसे एक आत्मविश्वाी महिला की हंसी से नारीद्वेषी आतंक कहा जा सकता है। पितृसत्तात्मक समाज में नारीद्वेष एक स्वाभाविक मनोस्थिति है जो केवल पुरूषों तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि समाज की महिलाओं में व्याप जाती है। इसीलिये भाजपा की महिला सदस्य भी मोदी जी की टिप्पणी पर हंस रहीं थीं। पौराणिक कथाएं सांस्कृतिक स्मृतियों का भंडार होती हैं और सामाजिक प्रवृतियों एवं आचणों को विशिष्ट रूप से प्रभावित करती हैं। इस अर्थ में कहा जा सकता है कि पौराणिक कथाएं और आख्यान सच से भी अधिक हुआ करते हैं। ये कथाएं और आख्यान नारीद्वेष के विरुद्ध संघर्ष में एक महत्च्पूर्ण मैदान तैयार करते हैं। इन्हें इनके समस्त गूढ़ार्थों सहित समझने की जरूरत है और इसकी संवेदनशील व्याख्या की आवश्यकता है। शूर्पनखा हकीकत से कुछ ज्यादा ही आवरण में आवृत है। कुछ लोगों के लिये वह सीमा को लांघने वाली महिला है और उस पर हमला एक तरह से उसे दंडित करने की प्रक्रिया है।स्मरण होगा कि राजस्थान की करणी सेना ने भी धमकी दी थी कि पद्मावती की भूमिका करने वाली की नाक काट लेंगे। इस धमकी में कहीं निर्देशक या नायक या यहां तक कि खिलजी का अभिनय करने वाले को ऐसी धमकी नहीं दी गयी। चाहे वह परदे में ही कही गयी हो पर सदन शूर्पनखा के संदर्भ में मानसिक धरातल पर विचार करें तो हैरत होगी।
अब इस संदर्भ में द्रौपदी की हंसी पर विचार करें। क्या सचमुच द्रौपदी दुर्योधन पर इस लिये हंसी थी कि वह अंधे राजा की औलाद था? अगर ऐसा है तो द्रौपदी एक निष्ठुर महिला के रूप में दिखायी पड़ती है। अगर आप महाभारत का प्रणयन करें तो पायेंगे कि महर्षि व्यास ने "सभा पर्व " में दो परिच्छेदों में इस घटना का वर्णन किया है खैर उसमें दुर्योधन पर हंसनेवालों में भीम , अर्जुन , नकुल और सहदेव हैं, उनके सेवक हैं ना कि युधिष्ठिर और द्रौपदी। लेकिन दुर्योधन अपने पिता से इस घटना का वर्णन करता है तो बात बदल गयी होती है क्याोंकि इसके पहले वह मामा शकुनी से परामर्श कर चुका होता है। अतएव द्रौपदी की हंसी की बात " राजा को दी गयी एक गलत रिपोंर्ट है। " इस रिपोर्ट का उद्देश्य राजा को भड़काना है। यह आख्यान भी यही बताता है कि एक अहंकारी आदमी अगवानी में खड़े लोगों से अपमानित महसूस करता है ना कि किसी महिला की हंसी से। सच्चाई अगर धोखे में बिंधी हो तो सच्चाई नहीं कही जा सकती।
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