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Sunday, February 25, 2018

मोदी जी चुप क्यों हैं

मोदी जी चुप क्यों हैं

हीरों के शानदार व्यापारी और बड़े शहरों में ऊंचे तबके के साथ हंसते - मुस्कुराते देखे जाने वाले नीरव मोदी हाल में खबर बन गए। जब से पंजाब नेशनल बैंक  की धोखाधड़ी का मसला उभरा है नीरव मोदी "घर-घर मोदी" की तर्ज पर घर - घर में छा गए। ठीक मैगी और नूडल्स की तरह। शुरु - शुरु में जब पता चला तो वह 11,400 करोड़ के घोटाले का मामला था, जिसे नीरव मोदी ने दिनदहाड़े मार लिया। शानदार कारोबारी के साथ बाद में उसके मामा मेहुल चौकसी और रोटोमैक कलम बनाने वाली कम्पनी के मालिक विक्रम कोठारी का नाम भी जुड़ गया। जो नए आंकड़े सामने आए हैं वह लगभग30,000 करोड़ के और यह राशि दिनों दिन बढ़ती जा रही है। यह एक भयंकर आर्थिक आपदा है इसे ' ग्रेट इंडियन बैंक रॉबरी' कहा जाय तो गलत नहीं  है। एक बैंक खरीदने से बढ़िया है एक बैंक को लूट लेना।
  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी किसी भी बात पर टिप्पणी करने से चूकते नहीं है। लेकिन इस पर चुप क्यों है ? यह सवाल पूरा देश उनसे पूछ रहा है। हम देखते हैं रोजाना पी एन बी के मामूली अफसरों से पूछताछ हो रही है और मोदी जी के भगत कीर्तन गा -गा कर यह बता रहे हैं इस सरकार ने इस विशाल धोखाधड़ी की जांच शुरू कर दी है और कार्रवाई शुरू हो चुकी है । इसे सिस्टम की गलती यह संज्ञा दी जा रही है। यह एक शातिर चाल है। किसी बड़े भ्रष्टाचार से नजर हटाने की। यह सही नहीं है यह जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं। देश का हर आदमी जानता है कि भारतीय बैंकिंग प्रणाली बहुत मजबूत और अचूक है । इसमें सुरक्षा के कई चरण है। अंत में भीतरी और बाहरी ऑडिट भी है । इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक इन पर नजर रखे रहता है । हमारे देश की बैंकिंग प्रणाली कितनी अचूक है इसका उदाहरण 2008 में अमरीकी बैंकों के फेल होने के बाद के समय से दिया जा सकता है। कई अमरीका  बैंक फैल गया थे लेकिन भारतीय बैंक यथावत रहे। उनके सिस्टम में कहीं छेद नहीं हो सका। पंजाब नेशनल बैंक की मौजूदा धोखाधड़ी इसलिए नहीं हुई उसमें इसे रोकने के उपाय कम थे। यह घटना इंसानी लालच का करिश्मा है। बैंकों की तिजोरियों से रुपया खुद-ब-खुद नहीं उड़ जाता बल्कि लचीली नैतिकता के लोग इस दौलत को उड़ाते हैं। विजय माल्या आराम से निकल गया। मोदी अपने परिवार को लेकर जनवरी के पहले हफ्ते में भारतीय इमीग्रेशन काउंटर से बाहर निकला उसका कुछ नहीं हुआ । 
    2014 से ही बैंकों का एन पी ए बढ़ता जा रहा था । 2018 में 2.36 लाख करोड़ से बढ़कर यह 9.5 लाख करोड़ हो गया, यानी 4 वर्षों में बैंकों का एनपीए 400% बढ़ गया।   सरकार की ओर से बैंक में पूंजी डाली गई, लेकिन वह बहुत देर गई और बहुत कम थी। नीरव मोदी  के बारे में आगे चर्चा करने से पहले एक बार चुनाव बांड योजना पर विचार कर लेना जरूरी है। इससे बात समझने में आसानी होगी। इस योजना के मुताबिक कारपोरेट क्षेत्र से राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे का सार्वजनिक उल्लेख नहीं किया जाएगा। बाकी सबका किया जाएगा। राजनीतिक पार्टियों के प्रचार में पारदर्शिता की बात का यहखुल्लम-खुल्ला मखौल है।  मुंह पर हथेली रखकर धीरे-धीरे बोलने वाली नरेंद्र मोदी सरकार की एक खतरनाक अदा है। सुनकर हैरत होगी कुछ वर्षों में राजनीतिक पार्टियों को जो.चंदे मिले हैं उनका 80% केवल भाजपा को मिला है। सरकार के दरबारी पूंजीपति भारी लाभ उठा रहे हैं। उन्हें सरकार से लाभ मिलता रहा है और वह चुनावी चंदे के रुप में सरकार को उसका थोड़ा भाग देते रहे हैं। इसलिए घपलेबाजों को पकड़े जाने के आसार बहुत कम दिखाई पड़ रहे हैं।  उन्हें राजनीतिक छत्रछाया हासिल है। वे मज़े से विदेशों में रह रहे हैं और मस्ती कर रहे हैं। कभी यह.भी सोचें कि एक आम आदमी अगर अपने घर के कर्जे की माहवारी किस्त नहीं दे पाता है तो उसके पास बैंक से पहले लगातार फोन आते हैं और बोलने वाले का स्वर लगातार बिगड़ता जाता है। उसके बाद घर पर आकर गाली गलौज शुरू हो जाती है। लेकिन यह धन्ना सेठ कैसे देश का माल समेट कर विदेश भाग जाते हैं। सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। क्यों?

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