आज विज्ञान दिवस
आज विज्ञान दिवस है। अन्य सभी दिवसों के विपरीत यह दिवस अनुसंधान और खोज के उपलक्ष में मनाया जाता है। आज ही के दिन1928 में सर सी वी रमन किरणों के बिखरने की प्रक्रिया का अध्ययन किया था जो रमन प्रभाव के नाम से विख्यात है। इस खोज के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया था। रमन प्रभाव में एकल तरंग- दैध्र्य प्रकाश (मोनोक्रोमेटिक) किरणें, जब किसी पारदर्शक माध्यम ठोस, द्रव या गैस से गुजरती है तब इसकी छितराई किरणों का अध्ययन करने पर पता चला कि मूल प्रकाश की किरणों के अलावा स्थिर अंतर पर बहुत कमजोर तीव्रता की किरणें भी उपस्थित होती हैं। इन्हीं किरणों को रमन-किरण भी कहते हैं। यह किरणें माध्यम के कणों के कंपन एवं घूर्णन की वजह से मूल प्रकाश की किरणों में ऊर्जा में लाभ या हानि के होने से उत्पन्न होती हैं। इतना ही नहीं इसका अनुसंधान की अन्य शाखाओं, औषधि विज्ञान, जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान, खगोल विज्ञान तथा दूरसंचार के क्षेत्र में भी बहुत महत्व है। हमारे देश में धीरे धीरे विज्ञान दिवस एक रिवाज में बदलता गया। बस कुछ तख्तियां- झंडे लटका दिए जाते हैँ, सर सी वी रमन की तस्वीर पर माला चढ़ा दिया जाता है। लेकिन कभी भी इस पर कोई गंभीर विमर्श नहीं हुआ और ना ही इस संदर्भ में देश में विज्ञान की स्थिति पर। हमारे समाज का कर्तव्य है और उसकी भूमिका भी कि युवा इस पर विचार करें कि हमारे नौजवान वैज्ञानिकों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यह समय हमें पुनरावलोकन के लिए प्रेरित करता है। विज्ञान दिवस का उद्देश्य है विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रति आकर्षित करना तथा विज्ञान और वैज्ञानिक उपलब्धियों के प्रति उन्हें सजग और सचेत बनाना। विज्ञान दिवस देश में विज्ञान की निरंतर उन्नति का आह्वान करता है। इसका उद्देश्य है परमाणु ऊर्जा को लेकर लोगों के मन में कायम भ्रातियों को दूर करना। इसके विकास के द्वारा ही हम समाज के लोगों का जीवन स्तर अधिक से अधिक खुशहाल बना सकते हैं।
विज्ञान और तकनीक में भारत की भूमिका प्रशंसनीय है। भारत ने अनुसंधान और खोज के बेहतरीन ढांचे तैयार किए हैं। इसके लिए शिक्षा का भी महत्वपूर्ण प्रबंध हुआ है। साथ ही शिक्षण के उद्देश्य से ढांचे भी तैयार किए गये हैं। इनमें से कुछ पहल जैसे आई आई टी की तरह संस्थाएं हैं। अनुसंधान के लिए धन का बंदोबस्त भी हुआ है। अनुसंधानों के लिए संस्थानों का विकास भी किया गया है। कम समय में उनके नतीजे भी सामने आए हैं।
भारत ने बड़ी- बड़ी वैज्ञानिक परियोजनाओं में भाग भी लिया है, मसलन लार्ज हार्डन कोलाइडर एंड ग्रेविटेशनल ऑब्जर्वेटरी। इसमें शिरकत से भारत ने दुनिया को यह बता दिया कि विज्ञान और तकनीक के मामले में वह किसी से पीछे नहीं है। लेकिन जहां प्रति लाख प्रतिभाओं पर विज्ञान में निवेश की बात आती है, खासकर अनुसंधान परियोजनाओं में निवेश पर बात आती है तो भारत खुद को पिछड़ा हुआ पाता है। अन्य विकसित मुल्कों के मुकाबले हमारे देश में अनुसंधान और विकास के लिए सकल घरेलू उत्पाद के 0.69 प्रतिशत निवेश किया जाता है। यह बहुत बड़ी रकम नहीं है। खास करके तब जबकि हम दुनिया के 5 बड़े वैज्ञानिक देशों की बराबरी में खड़ा होना चाहते हैं चीन अपने सकल घरेलू उत्पाद के 2.05 प्रतिशत , ब्राजील 1.2 4% और रशिया 1.19 प्रतिशत निवेश करता है। निवेश के अभाव में हमारे देश से प्रतिभाएं बहुत तेजी से पलायन कर रही हैं। अब सरकार ने इन प्रतिभाओं को रोके रखने के लिए एक नई फेलोशिप योजना आरंभ की है ताकि नौजवान वैज्ञानिक अपने अनुसंधान और डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी कर सकें। पर यह सभी योजनाएं अस्थाई हैं। हमें एक ऐसे वातावरण को तैयार करने की जरूरत है जो प्रतिभाओं को ना केवल आकर्षित करें बल्कि उन्हें यहां रहने भी दें। देश में शिक्षा और अनुसंधान की संस्कृति का विकास करना होगा। ऐसा विकास आई आई टी जैसे इलीट संस्थान के अलावा भी करना होगा। 1960 में अमरीकी संस्थान एमआईटी की मदद से आई आई टी कानपुर की स्थापना की गई। 10 वर्षों के बाद जब इसकी समीक्षा की गयी तो समीक्षा समिति ने कहा कि वह चाहते थे एक भारतीय एम आई टी न कि भारत में एम आई टी। टिप्पणी आज भी सही है। क्योंकि हम अपने मुताबिक अपना ढांचा नहीं तैयार कर सके।
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