मोहन भागवत जी स्पष्ट करें ?
अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात है कि सोशल मीडिया पर एक लहूलुहान फौजी की तस्वीर आती थी और लोगों से अपील की जाती थी इसे लाइक करें और सलाम करें। लोग भावुक होकर ऐसा करते थे। इस तरह की तस्वीरें बनाने और लगाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या मोदी जी के कीर्तन ब्रिगेड के लोग थे। इसका उद्देश्य था राष्ट्रीय भावुकता के हथियार से देशवासियों का ध्यान राष्ट्रीय समस्याओं से हटाना। वह समय था नोटबंदी से उपजे गुस्से का।
अचानक एक एक दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत जी का बयान आता है कि संघ 3 दिन में फौज खड़ी कर सकता है जबकि भारतीय सेना को ऐसा करने में 6 महीने लगते हैं। यह एक संयोग ही है कि बयान ठीक उस दिन आया जिस दिन जम्मू के शुंजवान में आतंकी हमलों के बाद भारतीय सेना के जवान अपने मृत साथियों की लाशें गिन रहे थे और आसपास छिपे आतंकियों को ढूंढने का जोखम से दो- दो रहे थे। ऐसे वक्त में संघ प्रमुख का यह संवेदनहीन बयान सीमा के रक्षकों और देश की प्रभुसत्ता को सुरक्षित रखने वाली संस्था को नीचा दिखा रहा है। आखिर मोहन भागवत जी ने ऐसा क्यों कहा? उनसे स्पष्टीकरण मांगा जाना चाहिए।
यह सब जानते हैं कि संघ का दर्शन उसे एक विघटनकारी ताकत बनाता है । उसका नजरिया "हम " और "वह" वाला है। यह जानकर हैरत हो रही है कि सेना अभी उनके "हम" में शामिल नहीं है। बेशक मोहन भागवत जी बहुत बड़े नेता हैं और देश की एक बहुत बड़ी आबादी बड़े ध्यान से उनको सुनती है, उनका बहुत ज्यादा सम्मान करती है। लेकिन अब लगता है कि मोहन भागवत जी को कुछ फौजी प्रशिक्षण केंद्र में भेजा जाना चाहिए ताकि वे समझ सकें कि एक सैनिक को तैयार करने में कितनी मेहनत और कितना समय लगता है। हालांकि उन्होंने कहा था कि हमारी हमारा संगठन सैनिक या अर्धसैनिक बल नहीं है। यहां यह बताना जरूरी है की फकत 4:00 बजे सुबह उठकर लाठी भांजना और खाकी निकर पहनकर शाखा में शामिल होना किसी भी तरह की फौजी ट्रेनिंग नहीं है। ऐसे लोग 3 दिन में इतने प्रशिक्षित नहीं किए जा सकते कि शून्य से कई डिग्री नीचे सियाचिन में 2 मिनट भी खड़े रह सकें या 3 दिन में हठात तापमान 50 डिग्री सेल्सियस जहां पहुंचता है वहां खड़े होकर देश की हिफाजत कर सकें। अब यहां प्रश्न उठता है कि आदरणीय मोहन भागवत जी, जो यकीनन सच्चाई को जानते होंगे , ने ऐसा क्यों कहा?
शायद इसलिए कि हथियार लेकर सड़कों पर बेहिचक घूमने वाले नौजवानों और एक फौजी में वे फर्क नहीं देख पाते हैं। एक दयनीय हालत है। भारत जैसे बहुसंस्कृति वाले देश के लिए बेशक मोहन भागवत जी का यह बयान चिंताजनक है। यहां यह कहा जा सकता है कि क्या संघ ने ब्रिगेड तैयार किए हैं जो युद्ध के लिए प्रशिक्षित हों या फिर उनका यह बयान यह भी बताता है संघ सांस्कृतिक संगठन नहीं निजी सेना है। जिस आत्मविश्वास से मोहन भागवत जी बोल रहे थे , जो उनका बॉडी लैंग्वेज था उसे देख कर पूछा जा सकता है कि क्या सचमुच संघ में फौजी ट्रेनिंग दी जा रही है? आज के युग में संगठित हिंसा सिर्फ सरकार कर सकती है और वह भी बहुत सोच समझकर या बहुत जरूरी होने पर। मोहन भागवत जी का इस तरह से कहना तो बहुत बड़ी विपत्ति का संकेत है। क्योंकि, किसी भी तरह की संगठित हिंसा जो पहले संकेत रूप में ही रहती है आगे चलकर पहचान और आदर्श या सिद्धांत के बड़े युद्ध में बदल सकती है। ऐसे कामों में इस्तेमाल करने के लिए नौजवान उस संगठन के पास उपलब्ध होते हैं। नक्सलियों और बिहार की रणवीर सेना का उदाहरण देश के सामने है। अगर इस तरह के संगठन को पर्दे के पीछे से सत्ता का समर्थन मिलता रहे तो बेरोजगारी और कुंठा से भरे नौजवान समाज के लिए और खतरनाक हो सकते हैं । यही कारण है कि सरकार की तरफ से मोहन भागवत जी के बयान पर लीपापोती शुरू हो गई। गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने ट्वीट किया "भारतीय सेना हमारा गौरव है और हर भारतीय को इसका समर्थन करना चाहिए।"
मोहन भागवत जी के इस बयान के परिप्रेक्ष्य में विजयादशमी और रामनवमी को हथियार लेकर जुलूस निकालने वाले अनुशासनहीन नौजवानों की करतूतों को याद करें। राष्ट्र के बहुलतावादी समाज की मान्यताओं तथा परंपराओं को ताक पर रखकर वे समाज पर नियंत्रण करना चाहते हैं। भागवत जी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उनकी बात का अर्थ क्या है? कितने लोग इस तरह की ट्रेनिंग पा चुके हैं और कितनों को इस तरह की ट्रेनिंग दी जा रही है? भागवत जी को ़यह भी बताना चाहिए कि वह कौन सी जरूरत पड़ गई है कि भारत को संघ की सेना की आवश्यकता हो गई है या फिर संघ किसके खिलाफ युद्ध के लिए तैयार हो रहा है? क्या संघ का फौज पर से विश्वास उठ गया है या उसके पास इतनी ताकत हो गई है कि फौज पर काबू पा सकते हैं ?मोहन भागवत जी से राष्ट्र इन सवालों के जवाब चाहता है, क्योंकि इन सवालों के समानांतर हमारी फौज की क्षमता पर कायम सवाल भी है।
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