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Thursday, February 8, 2018

समय से पहले हो सकती है चुनाव की घोषणा

समय से पहले हो सकती है चुनाव की घोषणा

देश में बदलती राजनीतिक परिस्थितियां प्रबल संकेत दे रहीं हैं कि सरकार नयित समय से पहले आम चुनाव की घोषणा कर सकती है। मोदी सरकार के आखिरी बजट के दिन शेयर बाजार धड़ाम से नीचे गिरा और नीचे ही बंद हुआ। विगत चार वर्षों में ऐसा कभी नहीं हुआ था कि बजट के दिन शेयर बाजार लाल निशान के नीचे बंद हों। जब वित्त मंत्री बजट भाषण दे रहे थे और लगभग उसी समय राजस्थान उपचुनाव के नतीजों की घोषणा हुई। इसमें भाजपा का गड़ समझे जाने वाले राजपूताना में ही वह पिट गयी। राजस्थान में विगत तीस वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ जब वहां सत्तारूढ़ दल लोकसभा उपचुनाव में पराजित हो गयी वह भी एक नहीं दो - दो सीटों- अजमेर और अलवर - पर। एक तरह से यहां इतिहास रचा गया। 2014 में इन सीटों पर कांग्रेस के बड़े नेता भाजपा के उममीदवारों से हारे थे। अजमेर की सीट पर सचिन पायलट 1 लाख 72 हजार और अलवर में भंवर जितेंद्र सिंह 2 लाख 84 हजार वोटों से पराजित हुये थे। केवल चार वर्षों में ही बाजी पलट गयी। अजमेर में भाजपा 84 हजार सीटों से हाली और अलवर में 1 लाख 96 हजार वोटों से हारी। यानी इस बार कांग्रेस को अलवर में  यानी इस बार कांग्रेस को अलवर में पिछली बार के मुकाबले 4.80 लाख ज्यादा वोट मिले। 11 विधानसभा सीटों वाले इस संसदीय क्षेत्र में इस बार 11लाख 12 हजार 761 वोट डाले गये थे जिसका 57.43 प्रतिशत वोट कांग्रेस को मिले। इसमें एक बड़ा दिलचस्प पहलू यह है कि इस बार वहां 11 लाख12 हजार 761 वोट डाले गये और जबकि 2014 में 10 लाख 62 हजार 3.5 लोगों ने वोट डाले थे। इसका अर्थ है कि इसबार ज्यादा लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। यही हाल अजमेर में भी था। आठ विधान सभा सीटों वाली इस सीट पर  11 लाख56हजार314 लोगों ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था जिसमें से 50.98 प्रतिशत वोट कांग्रेस के उम्मीदवार रघु शर्मा को मिले। इस बार भी पिछली बार से ज्यादा लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। राज्य में विधानसभा की 200 सीटें हैं और उसमें भाजपा के पास 163 सीटें हैं। अगर 20 प्रतिशत के इस स्विंग का सिलसिला जारी रहा तो कांग्रेस 200 में से 140 सीटें आराम से मिल जायेंगीं। यही नहीं 2014 के बाद देश के 29 राज्यों में से 15 राज्यों में चुनाव हुये । इन राज्यों में वोटिंग के आधार पर भाजपा के प्रदर्शन का अंदाजा लगाया जा सकता है। 2014 के चुनाव में भाजपा को लोकसभा की 543 सीटों में 282 सीटें मिली थीं लेकिन इस बार उसका ग्राफ नीचे गिर रहा है। 2014 में इन 15 राज्यों में भाजपा को 1171 विधानसभा सीटों पर 39 प्रतिशत वोट मिले थे जो इसबार घटकर 29 प्रतिशत हो गये। अगर यही ट्रेंड जारी रहा तो हालात खतरनाक हैं। 2014 जेसे प्रदशंन दोहरा पाना बेहद मुश्किल है। भाजपा अपने वायदों को पूरा नहीं कर पायी है। समय के साथ असंतोष बढ़ रहा है। समय से पहले चुनाव विरोधी दलों के लिये झटका साबित होगा। यही नहीं हाल में एक टी वी चैनल के सर्वेक्षण में एन डी ए को 335 सीटें दिखायीं गयीं हैं कही यह संकेत तो नहीं है कि "अभी हालात अच्छे हैं चुनाव कारा लें।" गस्त सितंबर 2018 में होंगे। एक प्रवक्ता के तौर पर मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं। यह पार्टी का आधिकारिक रूख नहीं है। इधर राष्ट्रपति ने एक साथ चुनाव कराने के फायदे गिनाये हैं। लग रहा है कि संसद के अगले सत्र में या उसके बाद आने वाले सत्र में, लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ साथ कराने संबंधी विधेयक पारित हो जाएगा।’’   कानून सुनिश्चित करेगा कि दो दौर होंगे। अगले साल और वर्ष 2019 में होने वाले विधानसभा चुनाव को एक साथ तथा अगस्त सितंबर 2018 में आम चुनाव के साथ कराए जाने की उम्मीद है। शेष राज्यों में दो साल बाद चुनाव साथ साथ कराए जाएंगे।  जब लोकसभा चुनाव होंगे तब पूरा देश एक बार में (लोकसभा और विधानसभा दोनों के लिए) मतदान करेगा। इस (गुजरात) चुनाव के बाद (प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी का प्रमुख एजेंडा एक साथ चुनाव कराने संबंधी कानून होगा। इस बात को उन्होंने छिपाया नहीं है कि साथ साथ चुनाव कराने की बात उनके एजेंडा में है। भाजपा कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु पर ध्यान केंद्रित कर रही है क्योंकि मतदाता के लिहाज से ये चार राज्य पार्टी के लिए महत्वपूर्ण हैं। 

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