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Thursday, March 22, 2018

लोकसभा चुनाव की भविष्यवाणी  अभी से ना करें

लोकसभा चुनाव की भविष्यवाणी  अभी से ना करें

 उत्तर प्रदेश के उपचुनाव के नतीजों के आधार पर आकलन करके कई विश्लेषक यह कहते सुना जा रहे हैं कि 2019  के लोकसभा चुनाव के नतीजे सबको मालूम हैं या परिणाम स्पष्ट हैं।  लेकिन ये महानुभाव यह नहीं देख पाते कुछ दिन पहले ही कुछ अलग  कहानी थी।  ये लोग भाजपा के चुनाव अभियानों को और उसकी शातिर   चालों को समझ नहीं पा रहे। वह यह भी नहीं समझ पा रहे हैं की भाजपा की राजनीतिक  समरनीति क्या है या  वह समाज में कितनी गहराई तक पहुंच सकती है। ना ही उन्हें भाजपा के टारगेटेड सोशल मीडिया की पहुंच  के बारे में भी ज्यादा इल्म है। ऐसा लगता है भाजपा 14 मार्च के पहले से ही या यूं कहें कि पूर्वोत्तर के चुनाव के पहले से ही 2019 के चुनाव के लिए कमर कस चुकी है। यही कारण है ​ ​कि  विपक्षी दल गुजरात , राजस्थान और मध्यप्रदेश में  एकजुट हो गए। आपको ऐसा लगने लगा कि भाजपा हार जाएगी। पिछले कुछ महीने भारतीय राजनीति में  राजनीतिक दलों के बीच  रस्साकशी के वक्त कहे जाएंगे। हर चुनाव  उसके परिणामों  के प्रति अवधारणा और विश्लेषण को बदल देता था, चाहे वह चुनाव स्थानीय हो, प्रांतीय हो ,या राष्ट्रीय।इसी चश्मे से हमारे विश्लेषक 2019 के चुनाव को देख रहे हैं। यह समझना बड़ा मुश्किल हो गया है कि आगे क्या होगा और समय कैसा रहेगा। 2019 क्या 2014  की तरह नहीं दिख रहा है और क्या विपक्षी दल जातियों के समीकरण को संतुलित कर पाएंगे, क्या भाजपा हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में तैयार कर  सकेगी?  बात यह नहीं है कि कोई सवाल नहीं पूछ सकता। सवाल तो तब भी पूछे जा सकते हैं जब उसका कोई उत्तर नहीं होता। जो बातें समस्या को जटिल बना रही है वह है चुनाव के बारे में लगातार प्रयास। चुनाव के परिणामों के बारे में लगातार भविष्यवाणियां। हमें यह कयास बंद करने  चाहिए और 2019 का इंतजार करना चाहिए। ध्यान दीजिए चुनाव में अभी 1 साल का वक्त है  बशर्ते   तारीखें नहीं बदली गईं। अभी यह दूर की बात है और सरकार से   प्रेम या उसके प्रति नापसंदगी  पर निर्भर करती है। जिन्हें राजनीति का अनुभव है वे जानते हैं सब कुछ उलट-पुलट होने में 1 सप्ताह का समय ही बहुत ज्यादा है। इसके पहले बहुत कुछ हो सकता है। अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत आने लगे हैं, औद्योगिक उत्पादन बढ़ने लगा है, ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुधरने लगी है।   नीतियों की असफलता और घोटाले तो हो चुके हैं तथा अगले साल तक भाजपा के लिए जो बहुत बुरा होना था वह भी शायद हो चुका है। अगले साल तक मतदाता दूसरे तरह का महसूस करने लगेंगे। कई राजनीतिक पंडित तो यह मानते हैं कि भाजपा का बुरा समय अब आने वाला है। यह सही भी हो सकता है। लेकिन सोचें अगर इसका उल्टा हुआ तो क्या होगा? 

    पिछले चुनावों से बहुत कुछ पता नहीं चलता। बसपा सपा गठबंधन की उत्तर प्रदेश में  और राजद  की बिहार में विजय   अंकगणितीय आकलन का नतीजा है। राजस्थान में भाजपा की पराजय का कारण स्पष्ट रूप से व्यवस्था विरोधी रुख है  या पद्मावत को लेकर राजपूतों का गुस्सा। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की विजय  का श्रेय उसके नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया हो जाता है। लेकिन,  पूर्वोत्तर भारत के  3 राज्यों पर कब्जा कर भाजपा ज्यादा स्मार्ट  दिख रही है। 

  इन नतीजों से हमारे राजनीतिक विश्लेषक कैसे अंतिम परिणाम निकाल सकते हैं। इसे अटकलबाजी कहा जा सकता है। इसे कोई अचूक सांख्यिकी  विश्लेषण नहीं कहा जा सकता है।  अगर स्कॉट एडम के शब्दों में कहें तो यह पागलपन भरा सिद्धांत  है। भारत में चुनाव में विजय या पराजय के पूरी तरह भिन्न कारण हैं। इसलिए, इसे एक दूसरे से जोड़ना और उस आधार पर चुनाव के नतीजे घोषित करना अक्लमंदी नहीं है। हां, इस पर विचार करना दिलचस्प होगा कि  2019 की सरकार कैसी होगी? लेकिन हमें 2014 पर ध्यान देना चाहिए। ऐसे कई वास्तविक मुद्दे हैं और कई राजनीतिक समाधान है जिन पर बहस की जा सकती है। इसलिए सही तो यह होगा शांत रहें और वर्तमान पर ध्यान दें भविष्य को अभी छोड़ दें।

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