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Friday, March 30, 2018

बंगाल में रामनवमी में हिंसा

बंगाल में रामनवमी में हिंसा

 बंगाल में रामनवमी को लेकर हिंसा जारी है,  या कह सकते हैं कि भगवा हमला चल रहा है। अगर इसका समाज वैज्ञानिक  विश्लेषण करें तो ऐसा लगेगा कि यह बंगाल के सांस्कृतिक ताने-बाने को दोबारा बुने जाने की कोशिश है। पिछले दो- तीन सालों से बंगाल में रामनवमी और उसे लेकर तनाव एक तरह से नियमित हो गया है और उसका मुख्य कारण है यहां की सामाजिक सांस्कृतिक पुनर्गठन का मिशन। इस मिशन को  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और  भाजपा ने तैयार  किया है। ये लोग बंगाली हिंदुओं को हिंदी भाषा के हिंदुत्व वाले हिंदू समुदाय में बदल देना चाहते हैं। ऐसा भी कहा जा सकता है की तेजी से फैलते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी शाखाओं के बल पर पूरे बंगाल को "उपनिवेश" में बदल देना चाहते हैं।  बंगाल पर दक्षिणपंथी प्रभुत्व कभी नहीं रहा अब  वहां इस्लामी खतरा और हिंदू पहचान जैसी मायावी  सांप्रदायिक दुर्भावना फैलाकर  चुनाव जीतना चाहते हैं।

  संघ और भाजपा को बंगाल के इतिहास तथा संस्कृति को लेकर ग़लतफ़हमियां है। वे नहीं समझ पा रहे हैं कि एक बंगाली पहले बंगाली है बाद में हिंदू है या मुसलमान है, या ब्रह्म समाजी  है , वैष्णव है, बौद्ध है अथवा ईसाई है।  दूसरी बात सब के सब यहां बांग्ला बोलते हैं और बांग्ला संस्कृति को मानते हैं। यही कारण था बांग्लादेश में भाषा को लेकर पाकिस्तान से जंग छिड़  गई थी। संघ और भाजपा शायद यह नहीं समझ पा रही है सभी  बंगाली हिंदू नहीं हैं और  सभी मुसलमान बांग्लादेशी जिहादी नहीं हैं। पिछले साल जब यहां रामनवमी का जुलूस निकला था तो उसमें तलवारों और  त्रिशूलों के प्रदर्शन से चारों तरफ सनसनी फैल गयी थी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगालियों के भीतर की भावना व्यक्त किया उन्होंने कहा " भगवा ब्रिगेड नहीं जानता बांग्ला संस्कृति क्या है वह सिर्फ तलवार भागना जानते हैं। " पिछले साल हिंसा नहीं हुई लेकिन हालात साल-दर-साल बिगड़ते जा रहे हैं इस साल रामनवमी के जुलूस में हिंसा हुई। दो आदमी मरे भी। पुलिस पर भी हमले  हुए और एक अफसर बुरी तरह घायल हो गया। इस पूरे परिदृश्य मैं एक ही रणनीति नजर आती है वह है राम के नाम पर वोट लेकिन  इस रणनीति में शांति तथा व्यवस्था बनाए रखने की चुनौती भी है। बंगाल की संस्कृति को देश के विभिन्न भागों से आयातित हिंदुत्व के माध्यम से तहस-नहस करने की कोशिश शुरू हो गई है।

 बंगाल की संस्कृति में राम की पूजा नहीं होती जैसा कि पश्चिमी और उत्तर उत्तर भारत में होता है। बंगाल में रामनवमी में अन्नपूर्णा पूजा होती है और यह एक तरह से शक्ति पूजा है।  इस परंपरा का लाखों बंगाली पालन करते हैं। बंगाल में पर्वों का बाहुल्य है, यहां तो कहावत ही है कि " बारो  माशे तेरो पूजा "  यानी साल के 12 महीनों में बंगाल में 13 पूजा होती है। बंगाल में त्यौहार और  और मेला का यहां के आर्थिक- सांस्कृतिक प्रणाली से गहरा संबंध है। बंगाल की पूजा में सभी संप्रदाय के लोग शामिल होते हैं। 

   बंगाल शक्ति  पूजक है और  सदियों  से ऐसा ही है। बांग्ला भाषा और संस्कृति  का विकास पाल वंश के शासनकाल  (सन 750 से सन 1174 ईस्वी ) में हुआ था। इस वंश का बंग  पर लगभग 424 वर्षों तक शासन था । यह अवधि मुगलों तथा अंग्रेजी के शासन  से बहुत पहले की है। बंगाल में गुप्त काल में संस्कृत बोली जाती थी और बंगाल संस्कृत का केंद्र था। बांग्ला भाषा का विकास ( सन1000 से 1206 ईस्वी) के मध्य संस्कृत और मागधी प्राकृत से हुआ। 

 बौद्ध तारा पूजा करते थे। मां काली के मंदिर बनने से पहले तारापीठ में मां तारा का मंदिर  बना था।  बौद्ध धर्म के महायान तंत्र   का विकास बंगाल में ही हुआ था। विख्यात बौद्ध संत और दार्शनिक असित  (सन 982 से 1054 ईसवी) बंगाली थे।  उनका पहला नाम  दीपंकर था।   अनुतारा योग तंत्र  का विकास (सन 988 से 1069  ईस्वी) के बीच तिलपा ने किया था। बाद में " गंगा महामुद्रा" की भी रचना की। बांग्ला में तिलपा के शिष्य नेरुपा जो नालंदा विश्वविद्यालय के स्नातक थे, बंगाली थे।  बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय पर बंगीय दार्शनिकों बहुत प्रभाव था। पाल वंश के समय से ही बंगाल में शक्ति पूजा आरंभ हुई। बंगाल में बौद्ध शासन  के बाद बंगाल की बौद्ध संस्कृति और शाक्त संस्कृति की शक्तियों को मिलाकर दस महाविद्या की परंपरा शुरू हुई। इस समय बंगाल में  मां काली  और मां दुर्गा सबसे ज्यादा पूजनीय हैं, लेकिन साथ नहीं सरस्वती और लक्ष्मी जी की भी पूजा की जाती है। शक्ति पूजक  बंगाल में दो अत्यंत महत्वपूर्ण सुधार भी हुये।  इससे महिलाओं को लाभ मिला।  यह दोनों सुधार महत्वपूर्ण समाज सुधार थे। इसमें पहला राममोहन राय द्वारा किया गया सती प्रथा के विरोध में आंदोलन और दूसरा ईश्वर चंद्र विद्यासागर द्वारा विधवा विवाह के हक के लिए किया गया   आंदोलन। यह दोनों बंगाल पुनर्जागरण के अवसर पर के दौरान हुये थे। बंगाल की साहित्य, संस्कृति,  धर्म, कला और आध्यात्मिकता पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा।

  बंगाल का इतिहास और संस्कृति जानने के बाद जब यहां रामनवमी का हिंसक आयोजन होता है पो एक ही बात मन में आती है कि कहीं यह संस्कृति को बदलने की साजिश तो नहीं है। अभी जो चल रहा है उसे "गाय पट्टी" वाले हिंदुत्व का बंगाल में आरोपण कहा जा सकता है। बंगाल को भगवा ब्रिगेड से  नहीं सीखना है। राष्ट्रीयता या हिंदुत्व क्या है यह बंगाल जानता है। विवेकानंद ,महर्षि अरविंद सुभाष चंद्र बोस, मौलाना आजाद इत्यादि बंगाल के कई ऐसे व्यक्तित्व  हैं जिन्होंने राष्ट्रीयता और हिंदुत्व के लिए खुद को बलिदान कर दिया। बंगाल को अगर बंगाल बने रहना है उसे भगवा ब्रिगेड के इस हमले को रोकना होगा लेकिन यह एक बहुत बड़ी चुनौती है। ऐसा लग रहा है कि रामायण के छद्म में महाभारत के बल पर बंगाल को भंग करने की कोशिश हो रही है।  चुनाव की घड़ी जैसे जैसे नजदीक आएगी यह हमने और तीखे होते जाएंगे तथा इनकी व्यूह रचना भी बदलती जाएगी। भारत का भविष्य,  कई बार पहले भी हुआ है , बंगाल के भविष्य पर निर्भर है या कहिए दांव अब इससे बड़ा नहीं हो सकता। 

  

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