राहुल गांधी को नई रणनीति अपनानी होगी
पिछले हफ्ते कांग्रेस का पूर्णांग अधिवेशन समाप्त हुआ । समापन पर नारे लगे कि 2019 में राहुल गांधी लाल किले पर तिरंगा फहराएंगे। इसके पूर्व राहुल गांधी ने काफी गरमा-गरम भाषण दिये। भाषण में भाजपा पर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमले किए। सोशल मीडिया में खबर चली कि यह राहुल गांधी का सबसे अच्छा भाषण था। वह बड़े रूप में वापस आ रहे हैं। बुनियादी रुप में यह अधिवेशन राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपने के लिए आयोजित किया गया था। यही नहीं इस अधिवेशन में पार्टी के कार्यकर्ताओं कि थोड़ी हौसलाअफजाई भी की गई ताकि अगले चुनाव में भाजपा के मुक़ाबिल खड़ा रह सकें। राहुल ने महाभारत का उदाहरण देते हुए कहा कि अगले चुनाव में भाजपा को धूल चटा देंगे।
यह सब बड़ी-बड़ी बातें बहुत अच्छी हैं। सुनने में अच्छी लगती हैं। कहने में अच्छी लगती हैं। एक सवाल है कि राहुल मोदी को गद्दी से हटाएंगे , पूरे अधिवेशन में इस सवाल का जवाब नहीं मिला। कांग्रेस सिर्फ मोदी का विरोध करके चुनाव नहीं जीत सकती। कांग्रेस को जनता के समक्ष वह दृष्टि पेश करनी होगी जो देश समझ सके और उस पर यकीन कर सके।
हाल में सोनिया जी ने एक सम्मेलन में कहा था कि मोदी के "अच्छे दिन" का वही हश्र होगा जो वाजपेई जी के "इंडिया शाइनिंग" का हुआ था, यानी कांग्रेस को उम्मीद है इतिहास दोहराया जाएगा और उस के पक्ष में दोहराया जाएगा । कांग्रेस महसूस करती है कि राष्ट्रीय स्तर पर वही एकमात्र पार्टी है जो भाजपा का विरोध कर सकती है या उसका विकल्प बन सकती है। देर सवेर उसे सत्ता में आना ही है। राहुल गांधी जब से अमरीका से लौटे हैं तबसे मीडिया में उनका आकर्षण बढ़ गया है और उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। गुजरात उपचुनाव में भाजपा को झटका देने के बाद और राजस्थान में जीतने के बाद लगता है राहुल आत्मविश्वास बढ़ गया है। पार्टी ने सोशल मीडिया में भी मोर्चा खोल दिया है। यह सब बड़ा अच्छा लगता है सुनने में । लेकिन, हकीकत यह है कि कांग्रेस के पास ऐसे नेताओं की भारी कमी है जो वास्तविक मुद्दों को लेकर जनता के सामने खड़े हो सकें। राहुल ने कांग्रेस कार्यसमिति को भंग कर दिया है और जो स्टीयरिंग कमेटी उन्होंने बनाई है वह नेताओं से भरी है, जो कल कार्यसमिति में थे। उन्होंने प्रतिभाशाली नौजवानों के लिए पार्टी का मंच खोलने को कहा था, इस दिशा में कुछ भी ठोस होता हुआ नहीं दिख रहा है। पार्टी के उच्च पदों पर वही नेता जमे हैं जो परिवार के वफादार हैं और अपना समय बिता चुके हैं। वे आरामदेह कार्यालयों में बैठे रह सकते हैं इसके अलावा कुछ नहीं कर सकते हैं।पार्टी ने न जाने कैसे समझ लिया ये नेता धरने देंगे या घेराव करेंगे या हड़ताल करेंगे या पदयात्राएं करेंगे।
पार्टी ने भाजपा की आर्थिक नीतियों के विरुद्ध एक प्रस्ताव भी पारित किया। जिसमें आरोप लगाया गया इसने अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया। मनमोहन सिंह और चिदंबरम ने भाजपा पर आरोप लगाया कि सरकार युवाओं के लिए रोजगार नहीं पैदा कर सकी। उन्होंने भाजपा की आलोचना करते हुए कहा पार्टी यह यह बताने में नाकामयाब है वह भारत में बढ़ती जनसंख्या का लाभ कैसे उठाएगी । कांग्रेस ने राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन कोश बनाने की बात कही । सब समझते हैं यह कोश या इस तरह के कोश अमीरों पर टैक्स लगा कर उससे हुई आय गरीबों में बांटने के लिए होते हैं। यानी, पार्टी के पास कोई नई योजना नहीं है । वस्तुतः यह भा ज पा की ही पुरानी योजना है। दोनों नेताओं, राहुल गांधी और मनमोहन सिंह ने किसानों की गरीबी के बारे में भी बात उठाई लेकिन इस गरीबी को दूर करने के लिए क्या किया जा सकता है, कोई समाधान उनके पास नहीं था। मनमोहन सिंह ने कहा की अगर किसानों की आमदनी दुगनी करनी है तो 12% वार्षिक विकास दर होनी चाहिए इससे कम मैं सोचा भी नहीं जा सकता है । यह भी एक जुमला है । उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी क्या कहना चाहते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को अगर बढ़ा दिया जाए जिससे किसानों की आमदनी बढ़ जाएगी लेकिन यह संभव नहीं है । कांग्रेस ने फिर वही कृषि ऋण माफी का लॉलीपॉप देने की बात कही। उसे याद नहीं रहा कि 2014 में ऋण माफी के बावजूद कांग्रेस हार गई थी। राहुल ने बड़े जोशोखरोश से कहा की मोदी जी करप्शन से नहीं लड़ रहे हैं बल्कि वह खुद करप्शन हैं। लेकिन, राहुल यह भूल गए कि मोदी जी ने एक अच्छी साख बना ली है और करप्शन के मामले में उनके विरुद्ध अभी तक कोई खबर नहीं आई है। सीएजी की किसी भी रिपोर्ट किसी घोटाले की बात नहीं गई है , जैसा कि यूपीए-2 के जमाने में हुआ था।
मोदी जी को पराजित करने से पहले राहुल को खुद कई प्रश्नों के उत्तर देने होंगे? ये सवाल उन्हें खुद अपने से पूछने होंगे कि मोदी जी के मुकाबले लोग उन्हें क्यों चुनेंगे, वह कैसे मोदी से बढ़िया काम कर सकते हैं, राजनीति में अनुभव की कमी के बावजूद उन पर कैसे भरोसा करें, वह कैसे भ्रष्टाचार मुक्त शासन प्रदान करेंगे जबकि यूपीए-2 के घटक दल उन पर दबाव बनाएंगे।
राहुल गांधी को अविलंब कांग्रेस कार्यकारिणी का गठन करना होगा और उसमें नए चेहरे लाने होंगे । तीन महीने पहले उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था और अब तक उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। उन्हें एक दिखाऊ मंत्रिमंडल का गठन करना होगा जो भाजपा के कार्यक्रम और नीतियों के खिलाफ वातावरण तैयार कर सके। कांग्रेस बैठकर सपने नहीं देख सकती कि 2004 खुद को दोहराएगा । समय बहुत तेजी से बीतता जा रहा है।
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