तेल - पानी ठीक रहा तो अगली बार भी मोदी सरकार
पूर्वोत्तर भारत में भाजपा की विजय से दो अत्यंत महत्वपूर्ण संकेत प्रापत होते हैं। एक संकेत को तो बहुतों ने समझा कि यह विजय भाजपा के अत्यंत उन्नत सांगठनिक हुनर और पार्टी के प्रमुख एवं सरकार के प्रमुख में बेहतरीन तालमेल का परिणाम है। लेकिन जो बात बहुत कम लोग समझे और यह संकेत मतदाताओं की रफ से था वह थ कि वोटरों ने मोदी की अच्छे आर्थिक भविष्य के वायदे पर विश्वास किया। पार्टी ने छोटे से राज्य त्रिपुरा में जो आर्थिक वायदे किये ओर जो आर्थिक दलीलें दीं वह वास्तव में विशाल भारत में आने वाले चुनाव को आर्थिक - राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में समझने में मदद करेगा।सरकार के वतंमान दौर के आर्थिक विकास की दर पिछली सरकारों से ज्यादा रही तो यह मान कर चलें कि मोदी सरकार के दुबारा सत्ता में आने की साठ प्रतिशत उम्मीद है। इसे अन्य गुणक भी प्रभावित करते हैं। पर चुनाव जैसे - जैसे नजदीक आता हे तो मैक्रोइकॉनोमिक गुणक भी दबाव डालने लगते हैं ओर वे दबाव कारगर होते से लगते हैं। अर्थशािस्त्र्यों का मानना हे कि आर्थिक विकास तेज हो रहा है। वैश्विक अर्थ व्यवस्था में भी ताजगी आ रही है। लेकिन अर्थव्यवस्था पर बीच बीच में नोट बंदी तथा जी एस टी की तरह आघात और सुधार अबसे ओर चुनाव के बीच ना हो तो अच्छा है।
अतएव भारत 2017 की तरह वैश्विक आर्थिक विकास का लाभ नहीं उठा सकता है। अतएव चुनाव के पहले पिछली सरकार के आर्थिक विकास की तुलना में बेहतर आर्थिक विकास ही गणना का मानक बनेगा। कुछ अर्थशािस्त्रयों ने विश्व बैंक के आंकड़ों के हवाले से अनुमान लगाया है कि यू पी ए- 2 के शासन काल में औसत विकास दर 7.44 प्रतिशत थी जबकि इस सरकार के 2017 तक यानी साढ़े तीन वर्ष में औसत विकास दर 7.45 प्रतिशत रही है। यह कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं है। या, जैसा कि आर्थिक सर्वेक्षण में उम्मीद की गयी है कि औसत विकास दर 7.5 प्रतिशत रहेगा तब भी सकल घरेलू उत्पाद की दृष्टि से मोदी जी का शासन काल विगत यू पी ए - 2 के शासन काल से पीछे रहेगा। क्या इसका अर्थ यह हुआ कि मोदी अगर दुबारा चुनाव जीतते हैं तो समष्टिअर्थव्यवस्था (मैक्रो इकॉनोमिक्स) बिगड़ी नहीं है। यही नहीं मतदाता भी 2014 के मुकाबले 2019 आर्थिक वातावरण को खुशनुमा भी नहीं पायेंगे। जरूरी नहीं कि ऐसा ही हो। क्योंकि चुनाव और अर्थ व्यवस्था में महत्वपूर्ण संयोग हे। पांच साल में कितना विकास हुआ यह मायने रखता है लेकिन जब चुनाव होते हैं तो उस समय विकास ज्यादा अर्थ रखता है।
अगले चुनाव में यानी 2019 के चुनाव में भाजपा के लिये नोटबंदी ओर जी एस टी ज्यादा असर डाल सकता है क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था की गति का ह्रास हुआ है लेकिन आने वो दिनों उसमें विकास होता दिख रहा है। यहां एक ओर बात काबिले गौर है कि इस विकास से किसे लाभ मिला है। यह तथ्य भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। यहां एक बड़ी बात यह है कि आम आदमी के जीवन में विकास का अर्थ होता है कृषि, उत्पादन ओर निर्माण। उत्पादन ओर निर्माण तेल की कीमतों से नियंत्रित होते हैं ओर कृषि पानी से यानी वर्षा से। व्याफक अर्थ में सोचें तो कह सकते हैं कि ग्लोबल स्तर पर कच्चे तेल की कीमत और देश में वर्षा। दोनों में से कोई एक या दोनो चुनाव पूर्व मैक्रोइकॉनोमिक परिदृश्य को बिगाड़ सकते हैं। ग्लोबल कच्चे तेल की कीमत 2016 से अबतक 60 डालर पति बैरेल रही है लेकिन क्या यह दर कायम रहेगी? अगर यह दर कायम रही तो सरकार के लिये खास चिंता की बात नहीं है लेकिन अगले लगभग 12-14 महीने तक ऐसा ही रहेगा यह नहीं कहा जा सकता है। अगर तेल की कीमत बड़ती है तो यह भाजपा के लिये बुरी खबर है। अब रही बारिश की बात। मौसम विज्ञाानियों का मानना है कि मानसून सामान्य रहेगा। लेकिन जून से सितम्बर तक की बारिश बहुत महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि अगले साल मार्च अप्रैल में क्या होता है इस पर चुनाव निर्भर करेगा। अगर जम कर बरिश हुई और खेतों में खड़ी फसल मारी गयी जैसा 2015 में हुआा तो मुश्किल बढ़ेगी। इसलियफे 2018 ही नहीं 2019 में भी बारिश का परिमाण सही होना जरूरी है। यानी तेल और पानी दोनों सही रहे तो मोदी जी की जय जयकार, वरना.....।
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