भारत में भ्रष्टाचार क्यों नहीं खत्म होता है
भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे भारतीय शासन प्रणाली को भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ करने की इच्छा शक्ति ही नहीं है। अभी हाल के नीरव मोदी, चौकसी और कार्ति चिदंबरम की घटनाओं के प्रति दो तरह की राजनीतिक प्रतिक्रिया हुईं हैं। कांग्रेस और भाजपा ने एक- दूसरे पर कीचड़ उछाल कर चुनाव में बढ़त पाने का निर्णय किया है।बोफोर्स के बाद राजीव गांधी चुनाव हार गए थे। क्योंकि उन पर और कई अन्य लोगों पर घोटाले के आरोप थे। उन्होंने टालने की भरसक कोशिश की लेकिन कुछ हो नहीं पाया। जनता के पास संदेश गया कि राजा चोर है। 2014 के चुनाव में भाजपा ने घोटाले के आरोपों का जमकर ढोल पीटा। उसके पास मसाला भी बहुत था ,जैसे 2G ,कोयला खनन घोटाला इत्यादि। मौजूदा हालात में नीरव मोदी, चोकसी और कार्ति चिदंबरम के मामले में किसने किसको मदद की इस बात पर कीचड़ उछालना चल रहा है। मोदी को किसने मदद की, कांग्रेस ने या भाजपा ने।
ऐसे आरोप अक्सर हल्के होते हैं या सस्ते होते हैं। सोचिए पी चिदंबरम और उनकी पत्नी नलिनी कार्ति चिदंबरम मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट में उपस्थित क्यों रहेंगे। स्वामी का कहना है यह उन्होंने जजों को धमकाने की नीयत से ऐसा किया। चिदंबरम पूर्ववर्ती सरकार में वित्त मंत्री थे। स्वामी का परोक्ष कथन था कि पी चिदंबरम इस घोटाले में शामिल हैं। कार्ति चिदंबरम के मामले की कुछ फाइलें कई साल पहले वित्त मंत्रालय से हो कर गई थीं इसका अर्थ है कि करप्शन में शामिल हैं। इरादा भ्रष्टाचार को ढूंढने का नहीं है बल्कि कीचड़ उछालने का है। कार्ति चिदंबरम के खिलाफ मामला बहुत कमजोर है और गलत जगह पर है।
टीवी एंकर कुछ इस तरह मामले को पेश कर रहे हैं कि वही जज हैं। टेलीविजन द्वारा मुकदमे की सुनवाई की परिपाटी खोजी पत्रकारिता की सर्वाधिक खराब परंपरा है। इस तरह के टेलीविजन की सुनवाई किसी भी सभ्य देश में बर्दाश्त के काबिल नहीं है। भारतीय टेलीविजन मीडिया सत्य के संधान में दिलचस्पी नहीं रखती बल्कि अपने राजनीतिक पक्षपात को भुनाती है। भ्रष्टाचार तमाशा बन जाता है। वर्तमान में भाजपा सत्ता में है और उसे इसका उत्तर देना होगा।
अन्ना हजारे एक जमाने में हीरो बन गए थे क्योंकि जनता समझती थी भ्रष्टाचार देश के लिये अत्यंत चिंताजनक विषय है। जनता के सहयोग से अन्ना ने संसद को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। जवाहरलाल नेहरू के जमाने में ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने जीप घोटाले पर इस्तीफा नहीं दिया, लेकिन पूर्व वित्त मंत्री टी टी कृष्णामचारी को उद्योगपति डालमिया की मदद करने के कारण इस्तीफा देना पड़ा था। इसी तरह भ्रष्टाचार के मामले में नेहरू ने पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों को इस्तीफा देने के लिए बाध्य कर दिया था। सबसे बड़ा उदाहरण लाल बहादुर शास्त्री का है। जिन्होंने1956 में एक रेल दुर्घटना के कारण रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दियाथा। जबकि वे निर्दोष थे। जवाबदेही की अवधारणा इसी बात पर निर्भर करती है कि कोई जिम्मेदारी स्वीकार करे। वर्तमान मसला वित्त मंत्रालय से संबंधित है और वित्त मंत्रालय अरुण जेटली के अंतर्गत है। संसदीय जवाबदेही की बेहतरीन परंपरा के मुताबिक अरुण जेटली को इस्तीफा दे देना चाहिए।
यह दोष स्वीकृति नहीं है बल्कि जिम्मेदारी की स्वीकृति है। आज के जमाने में शास्त्री जी का उदाहरण नजरअंदाज कर दिया जाता है।
अगले साल चुनाव है और जेटली का इस्तीफा इस चुनाव में काफी आघात पहुंचाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशों में भारत की छवि को चमकाते फिर रहे हैं और भाजपा के लिए बड़ी-बड़ी बातें कह रहे हैं। किसे दोष दिया जाए।
जेटली ने सुझाव दिया एक नया कानून बनाया जाए। उसका नाम होगा भगोड़ा अपराधी अधिनियम2018 । यह जेटली का उस समय से सपना था जब से वह बोफोर्स के धन की तलाश में जुटे थे। विधिवेत्ताओं का मानना है कि यह विधेयक दोषपूर्ण है। इससे सिर्फ यह प्रदर्शित होगा कि सरकार कुछ कर रही है। इसका एकमात्र उपाय है गंभीर जांच। गंभीर घोटालों को तमाशे में बदलने की कोशिश ना की जाए। भ्रष्टाचार निवेश की राह में भी रोड़े अटकता है। जब तक कोई जवाबदेही नहीं स्वीकार करेगा तब तक भ्रष्टाचार को मिटाना संभव नहीं है। भारत की सबसे बड़ी ट्रेजेडी यही है कि कोई अपनी जवाबदेही नहीं स्वीकार करता। जबतक जवाबदेही नहीं स्वीकारेंगे तबतक भ्रष्टाचार नहीं मिटेगा।
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