इस बार भाजपा बनाम क्षेत्रीय दल ?
इस महीने गोरखपुर और फूलपुर तथा कैंब्रिज एनालिटिका और संसद में शोर शराबा जैसे मसाइल भाजपा के नुकसान के सबूत बने रहे और देश का ध्यान उसी पर लगा रहा। उधर भाजपा के एक बड़े नेता ने एक दक्षिण भारतीय राज्य की राजधानी में एक दक्षिण भारतीय नेता से मुलाकात की। इरादा था दोनों के बीच यानी दोनों पार्टियों के बीच जमी बर्फ को तोड़ना और 2019 के चुनाव में समर्थन के लिए पथ प्रशस्त करना। क्षत्रिय नेता हैरत में था कि भाजपा का इतना बड़ा नेता विभिन्न प्रांतों के चुनाव में पार्टी की भरी विजय के बाद मोदी और अमित शाह से अलग इस काम के लिए यहां आयाहै। भाजपा नेता की बातचीत से ऐसा लग रहाथा कि वह भीतर से हिला हुआ है तथा उसे यकीन नहीं आ रहा है कि पार्टी 2014 की तरह इस बार बहुमत पा सकेगी। यहीनहीं, भाजपा का एक वरिष्ठ सदस्य जो इस समय पार्टी नेतृत्व से उखडा हुआ है वह भी इस काम में लगा हुआ था कि क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गहरा तालमेल बनाए जा सके और मीडिया को इस की हवा ना लगे। साथ ही , एक वैकल्पिक फार्मूला तैयार हो जाय । एक और दक्षिण भारतीय नेता जिनके भाजपा के साथ रिश्ते में थोड़ी खटासआ गई है वह निजी बातचीत में लगातार वैकल्पिक भाजपा नेता के नाम का सुझाव दे रहा है जो उसे ज्यादा स्वीकार्य है। लेकिन इससे यह समझना गलत होगा 2019 में कुछ चुनावी चमत्कार होगा। अभी जो कुछ दिख रहा है हवाई किला बनाने जैसा है। क्योंकि मोदी और शाह के अंतर्गत भाजपा ने खुद को एक ऐसी चुनावी मशीन बना रखा है जोसबसे आगे चलती है। उत्तर प्रदेश की पराजय एक गंभीर झटका है लेकिन उम्मीद की जातीहै कि दोनों नेता मिलकर इसे 2019 तक ठीक कर लेंगे। अधिकांश क्षेत्रीय दल इसके साथ ही यह भी सोच रहे हैं कि बहुत कुछ बदल देंगे। क्षेत्रीय दलों के कई नेता तो यह समझने लगे हैं कि यदि आमना – सामना ऐकिक हुआ या कहा जा सकता है कि भाजपा के खिलाफ यदि विपक्ष का एक ही कैंडिडेट खड़ा हुआ तो 1996 का समीकरण दोहराया जा सकता है । उस समय व्याकुल राजनीतिक दलों को एक साथ जोड़ा गया था। दक्षिण भारतीय नेता के चंद्रशेखर राव तो देवगौडा वाले समीकरण को दोहराने का ख्वाब देखने लगे हैं। राव मांनने लगे हैं कि वह सत्ता के शीर्ष के लिए हैं। इसके पीछे दलील यह है की उन्हेंसरकार चलाने का तजुर्बा है तथा हिंदी, इंग्लिश, उर्दू और तेलुगु में पारंगत हैं। पिछली बार यानी 2014 में तेलंगाना में सत्ता पर आने के बाद, इस बार, उन्होंने तेलंगाना कार्ड को दोबारा खेलने की तैयारी कर ली है। नरसिंह राव के बाद तेलंगाना से दूसरे नेता होंगे। चंद्रशेखर राव ही एकमात्र ऐसे नेता नहीं है जो यह सोच रहे हैं कि “ अब दिल्ली दूर नहीं । ” बंगाल से ममता बनर्जी खुद भाजपा विरोधी मोर्चे केंद्र में हैं और नेतृत्व के लिए योग्यतम हैं। ममता जी की तृणमूल कांग्रेस इसबार 42 लोकसभा सीटों में से अधिकांश पर विजय हासिल करना चाहती है और 2019 में तीसरी सबसे बड़ी संसदीय पार्टी के रूप में उभरना चाहती है और अगर ऐसा होता है तो ममता जी प्रधानमंत्री पद के लिए दावा पेश कर सकती हैं? वही नहीं चंद्रबाबू नायडू अगले महीने के पहले हफ्ते में दिल्ली आ रहे हैं।यह उनकी पहली यात्रा है जब से तेलुगू देशम ने “ एन डी ए “ से पल्ला झाड़ा। वह खुद को भी प्रधानमंत्री के लिए पेश कर सकते हैं और उनका अनुभव इसमें उन्हें समर्थन देगा। वही नहीं शरद पवार 25 वर्षों से लाल किले पर से स्वतंत्रता दिवस समारोह को संबोधित करने का सपना देख रहे हैं। लेकिन महाराष्ट्र में कांग्रेस के जूनियर दल के रूप में चुनाव लड़ने के कारण संभावनाएं खत्म हो जा रहीं थीं । अगर 2019 में स्पष्ट बहुमत आता है तो पवार अपने संपर्कों के जरिए शीर्ष पद के लिए जोड़-तोड़ करेंगे।
लेकिन , अगर कर्नाटक में कांग्रेस अपना दुर्ग बचा लेती है तो किसी भी क्षेत्रीय पार्टी कि संभावना ख़त्म हो जाती है। क्योंकि , 12 मई के चुनाव में यदि कांग्रेस को कर्नाटक में बहुमत प्राप्त हो गया तो यह समझा जायेगा कि पार्टीसत्ता की दौड़ से बाहर नहीं है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाएगा के चंद्रशेखर राव , चंद्रबाबू नायडू जिन्हें कांग्रेस से नहीं पटती वह यकीनन दूसरी जगह खेमा गाड़ेंगे। यहां यह कहना महत्त्वपूर्ण है कि अगला चुनाव भाजपा बनाम एकजुट विपक्षी दलों के बीच हो यह जरूरी नहीं है।
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