भय का शस्त्र और सत्ता का शास्त्र
भारत मेरे सम्मान का
सबसे महान शब्द है
जहां कहीं भी इस्तेमाल होता है
बाकी सभी शब्द अर्थहीन हो जाते हैं
लेकिन वर्तमान में हालात बदल रहे हैं ।इन दिनों हमारे देश में एक अजीब किस्म के भय का माहौल बनाया जा रहा है। ऐसा नहीं कि यह सब पहले नहीं था, लेकिन इन दिनों कुछ ज्यादा ही है। पिछले कुछ वर्षों से गौरक्षा के नाम पर, राष्ट्र के नाम पर तो हिंदू संस्कृति के नाम पर या फिर राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर भय का खास किस्म का वातावरण तैयार किया जा रहा है। इसके मूल में है कि सत्ता से असहमत लोगों को भयभीत कर दिया जाए । देश में इन दिनों एक नए किस्म का कथानक तैयार किया जा रहा है कि देश की सुरक्षा को लेकर अब तक की सरकारें लापरवाह थीं इसीलिए हमारी सुरक्षा को खतरा है और वर्तमान सरकार उस खतरे से लोहा लेने की तैयारी में है। राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे को सच बनाने के लिए तरह-तरह के दुश्मन गढ़े जा रहे हैं। कहीं आतंकवादी हैं तो कहीं शहरी नक्सली। इसके साथ ही उदार लोग भी दुश्मनों में शुमार किए जा रहे हैं। जो मानवाधिकार का बात कर रहा है वह दुश्मन है या दुश्मनों के साथ उसकी मिलीभगत है।
यह नई बात नहीं है कम्युनिस्ट शासन भी पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के नाम पर किस्म - किस्म के खतरे का भय खड़ा कर रहा था। असहमत लोगों को पूंजीवाद या प्रतिक्रियावाद समर्थक बता कर कुचल दिया जाता था। सत्ता सदा से ही अपने विरोधियों से खतरे को राष्ट्र के प्रति खतरे से जोड़कर लोगों के सामने पेश करती रही है। इमरजेंसी सबको याद होगी उस समय लोकतांत्रिक संस्थानों को खतरा बता कर उन्हें कुचल दिया गया था।
हम तो देश को समझे थे
घर जैसी पवित्र चीज
जिसमें उमस नहीं होती
आदमी बरसते मेह की
गूंज की तरह गलियों में बहता है
गेहूं की बालियों की तरह
खेतों में झूमता है
और आसमान की विशालता
को अर्थ देता है
हम तो देश को समझे थे
आलिंगन जैसे एक एहसास का नाम
ऐसा केवल भारत में है यह सही नहीं है।यह सार्वदैशिक है। पाकिस्तान एक नेशनल सिक्योरिटी स्टेट बन गया है। उस देश में जनता को यह बताया जा रहा है और विश्वास दिलाया जा रहा है कि सेना और कट्टरपंथी तत्वों ने मिलकर देश की सुरक्षा को कायम रखा है। पाकिस्तान के वजूद में आने के तुरंत बाद से जनता को यह समझाया जाता रहा है कि इसकी सुरक्षा खतरे में है। इसलिए जरूरी है सब काम छोड़ कर मुल्क की हिफाजत की जाए। वहां खतरे का माहौल बनाया गया है और दुश्मन के रूप में भारत को चित्रित किया गया । हालांकि इसमें सच्चाई कम और कल्पना ज्यादा है । इस बहाने वहां की अब तक की सरकारें और वर्तमान सरकार भी गरीबी ,महंगाई ,बेरोजगारी और अशिक्षा की समस्या को पर्दे के पीछे डाल दिया, क्योंकि देश को बचाना सबसे महत्वपूर्ण है।
वर्तमान समय में कई सरकारें ऐसी हैं जिन्हें अपनी निरंकुश आजादी ही पसंद है। खुद के सिद्धांतों से या विचारों से अलग सोचने वाले विद्रोही हैं और सरकारें उनको कुचल देना अपना अधिकार मांनती है ।
वैसे तो आरंभ से ही सत्ता असहमति को बर्दाश्त नहीं कर पाती थी इधर कुछ वर्षों से असहमति को देशद्रोह के स्वरुप में ढालने का चलन चल पड़ा है । कभी मीडिया लोकतंत्र का पहरुआ था आज उस का अधिकांश भाग सत्ता का डमरु बजा रहा है।
कुछ इस तरह कि
चीजों की शालीनता बनी रहे
कुछ इस तरह कि कांख भी ढकी रहे
और विरोध में उठे हुए हाथ
की मुट्ठी भी तनी रहे
और यही वजह है कि
बात फैलने की हद तक
आते आते रुक जाती है
क्योंकि हर बार
चंद टुच्ची सुविधाओं के लालच के सामने अभियोग की भाषा चुक जाती है
लोकतंत्र की हिफाजत का काम अब न्यायालय कर रहा है। सरकार यह दिखाती है कि विकास दर बढ़ रहा है लेकिन उस बढ़ने की दर से ज्यादा तेजी से असमानताएं और अन्याय भी बढ़ रहे हैं। सरकारें इसका भी फायदा उठा रही हैं। उनका मानना है कि अगर आगे बढ़ना है तो विरोध को दबाना जरूरी है। सर्वोच्च न्यायालय ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ जबरदस्त हिदायत दी लेकिन गोरक्षा के नाम पर आज भी लोगों को पीट पीट कर मारा जा रहा है। स्त्रियों और दलितों के साथ लगातार अन्याय हो रहे हैं। सिविल सेवा, पुलिस और इस तरह की कई संस्थाएं अपनी नैतिक जिम्मेदारी का पूरी तन्मयता से पालन नहीं कर पा रही हैं। यह संकट व्यापक भारतीय समाज का भी है। भारत प्राचीन काल से विश्वासों आस्थाओं और विभिन्न मतों से अपनी उर्जा प्राप्त करता रहा है। उसकी यह चमकीली विविधता धीरे धीरे धूसर रंगों में बदलती जा रही है ,जो भविष्य में नजरों से ओझल हो जा सकती है। ऐसे समय में संपूर्ण भारतीय समाज को सजग होना पड़ेगा और सत्ता द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे भय के उस शस्त्र को कुंद करना पड़ेगा।
यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना जमीर होना
जिंदगी के लिए शर्त बन जाए
और मन बदकार पलों के सामने
दंडवत झुका रहे तो
हमारे देश की सुरक्षा से खतरा है।
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