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Sunday, September 2, 2018

जनधन : खाली खातों का झुनझुना

जनधन : खाली खातों का झुनझुना

लगभग 4 साल पहले सरकार ने बड़ी खूबसूरत योजना शुरू की। उद्देश्य था कि गरीबों का वित्तीय समावेशन किया जाएगा। उस योजना का नाम था जन धन योजना। जब से वह योजना शुरू हुई तब से अब तक लगभग 31 करोड़ लोग इस योजना के तहत बैंकों में खाते खुल चुके हैं। इनमें ग्रामीण इलाकों में 18. 61 करोड़ तथा शहरी इलाके में 12. 99 करोड़ खाते खुले।
इस योजना के तहत काफी फायदा आर्थिक रुप से कमजोर राज्यों को मिला । बीमारू कहे जाने वाले इन राज्यों में बिहार में 3 करोड़ 42 लाख 22 हजार 382 खाते खुले जिनमें 7420.67 करोड़ रुपए जमा हुए। मध्यप्रदेश में 2 करोड़ 74 लाख 99 हजार 980 खाते खुले जिनमें 3,825.76 करोड़ रुपए जमा हुए। वहीं आंध्र प्रदेश में 90 लाख 30 हजार 943 खाते खुले जिनमें 1,549 . 32 करोड़ रुपए जमा हुए ।राजस्थान में 2 करोड़ 44 लाख 51 हजार 952 खाते खुले जिनमें 5,543. 34 करोड़ रुपए जमा किए गये ।उत्तर प्रदेश में 4 करोड़ 78 लाख 87 हजार 511 खाते खुले और उनमें 13,481. 69 करोड रुपए जमा हुए। इन राज्यों में कितने खाते खुले और कितने रुपए जमा हुए उनमें बहुत बड़ा अंतर दिख रहा है। यह अंतर कम आय और कम बचत की ओर भी इशारा करता है। फिर भी इतने खातों का खोला जाना और इतने रुपयों का जमा होना बहुत बड़ी बात है । संख्या के आधार पर यह कमाल ही है लेकिन योजना शुरू होने के पहले और बाद में जो कुछ भी हुआ अगर उसकी समीक्षा करें तो एक दूसरी कहानी सामने आती है। इस योजना के पहले भी बिना पैसों के खाते खोले जा रहे थे।  इस तरह से गरीबों को बैंकों से जोड़ा जा रहा था। वर्ल्ड बैंक इंक्लूजन इनसाइट्स के एक रिसर्च पेपर में बताया गया है कि 2011 में 15 साल से ऊपर की उम्र के  खातेदारों की संख्या 35% थी जो 2014 में बढ़कर 53 प्रतिशत हो गई और अब यह 62 प्रतिशत पर पहुंच गई है। बेशक जनधन योजना के बाद बैंकों में खातेदारों की तादाद बढ़ी है लेकिन इस से 2 साल पहले भी काफी लोगों ने खाता खोले थे। इस योजना से आम जनता का बैंकों से जुड़ाव बढ़ा है। आंकड़े बताते हैं कि 5 करोड़ खाते ऐसे हैं जिनमें कोई रकम जमा नहीं है और करीब 20% खाते ऐसे हैं जिनमें पिछले 2 साल में कुछ भी जमा नहीं हो सका । इसका स्पष्ट अर्थ है कि जहां लोगों की बैंकों में पहुंच बढ़ी है वहीं आम आदमी बैंकों में रुपया जमा करने लायक नहीं रह गया है। जब यह योजना शुरू हुई थी तो वादा किया गया था कि 6 महीने तक खातों के संतोषजनक परिचालन के बाद ₹5000 तक ओवरड्राफ्ट मिलेगा। लेकिन यह सुविधा बहुत कम लोगों को मिली।
जब यह योजना शुरू की गई तो बात थी जमा राशि पर ब्याज के साथ ₹1 लाख तक का दुर्घटना बीमा कवर दिया जाएगा । इस योजना के तहत ₹30 हजार का जीवन बीमा पॉलिसीधारक की मृत्यु के बाद उसके नामनी को दिया जाएगा। लेकिन लगभग 1% लोगों को योजना आरंभ होने के बाद से केवल ₹1875 का बीमा क्लेम निपटाया गया। जब जनधन योजना का ऐलान हुआ था तो यह कहा गया था कि बड़ी  आबादी को बैंकों से जोड़ा जाएगा और वित्तीय समावेश शुरू होगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका। इसका मतलब यह वायदे कागजी थे। रिसर्च पेपर के मुताबिक जनधन योजना के तहत खातेदारों को बैंकों से कर्ज मिलने के संकेत नहीं दिखे। आंकड़ों में बताया गया है 1999 में ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज और जमा अनुपात 41.60 और 2016 में यह बढ़कर 66.9 हो गया। इनमें ज्यादा वृद्धि जनधन योजना के लागू होने के पहले हुई । कर्ज और जमा अनुपात का मतलब है किसी वर्ग के हर सौ रुपय के जमा पर उसमें से कितना पैसा उसे कर्ज देने के लिए उपलब्ध है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात कम होने कम अर्थ है की उन क्षेत्रों में जितना पैसा बैंकों में जमा कराया गया उसका बहुत छोटा हिस्सा उन्हें कर्ज के रूप में उपलब्ध हुआ। जबकि कहा यह गया था कि इस योजना के तहत ग्रामीण जनता को ज्यादा फायदा होगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं । जितने लोगों को बैंक से कर्ज मिला उससे दुगने लोगों को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए महाजनों से ऊंचे ब्याज पर कर्ज लेना पड़ा । नतीजा यह हुआ अत्यंत गरीब लोग अब भी महाजनों के कर्जदार हैं । 20%  गरीब परिवार महाजनों से बहुत ऊंची दर पर कर्ज लेने के लिए बाध्य हैं। इसका मतलब स्पष्ट है की बैंकों में खाते खुलने के बाद भी महाजनी कर्जे का दुष्चक्र खत्म नहीं हो पाया।
     बेशक बैंकिंग सिस्टम में हर किसी को शामिल करना एक अच्छा विचार है लेकिन जब भी ऐसी किसी योजना को लागू किया जाए तो उसके घाटे मुनाफे को भी देखना जरूरी है । लेकिन इस घाटे मुनाफे के मोर्चे पर जन-धन योजना बहुत खरा नहीं उतर पाई । इस योजना से कुछ लोगों को लाभ तो जरूर हुआ लेकिन बहुत बड़ी संख्या में खाता खोले जाने से बैंकों पर बोझ बढ़ गया। खास तौर पर इसका दबाव सरकारी बैंकों पर ज्यादा पड़ा। महज 3% खाते ही इस योजना के तहत निजी बैंकों में खुले । बैंकिंग के विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे खाते खोलने की लागत लगभग ₹300 है और इसके रखरखाव में बैंकों को हर साल 50 से ज्यादा रुपए खर्च करने पड़ते हैं। यानी जनधन योजना के अंतर्गत खोले गए खातों के रखरखाव में बैंक को समन्वित रूप से सोलह सौ करोड़ रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। इस जानकारी के बाद भी कैसे कहा जाए इस योजना से लाभ मिला है या यह योजना सफल रही है। यही नहीं अभी इस बात के आंकड़े नहीं मिले हैं कि सरकारी योजनाओं के पैसे सीधे खाते में भेजने की योजना से लाभार्थियों को कितना लाभ मिला है।
    

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