अहम् ब्रह्मास्मि: आज से विश्व हिन्दू सम्मेलन
आज से शिकागो में तीन दिवसीय विश्व हिंदू धर्म सम्मेलन का आयोजन है । यह आयोजन 1893 में स्वामी विवेकानंद द्वारा शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में दिए गए भाषण की 125वीं वर्षगांठ मनाने के लिए आयोजित किया गया है । "शिकागो रिकॉर्ड" की 11 सितंबर 1893 के रिपोर्ट के अनुसार "एक चमकदार चेहरे वाला गेरुआ धारी शिकागो में आया। बेहतरीन अंग्रेजी जानने वाला और कुशाग्र बुद्धि का वह आदमी और कोई नहीं स्वामी विवेकानंद थे।" धर्म संसद में हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए 31 मई 1893 को भारत से रवाना हुए और लंबी यात्रा करके अमरीका पहुंचे। जब वह अमरीका पहुंचे उस समय भारत एक उपनिवेश था, वंचित और पीड़ित। एक जमाने में वैज्ञानिक मेधा वाला यह देश अपने वेदों, पाणिनि, आर्यभट्ट और पतंजलि के लिए विख्यात था। पीड़ित और वंचित भारत दुनिया के सामने खुद को अभिव्यक्त करने के लिए छटपटा रहा था और स्वामी जी ने धर्म संसद में अपने भाषण से इस छटपटाहट का शमन किया। अपने भाषण के माध्यम से स्वामी जी ने दुनिया का हिंदुत्व और सनातन धर्म के असली स्वरूप का परिचय कराया।
विवेकानंद ने दुनिया को योग से परिचित कराया और आज भी पश्चिम की जनता उन्हें योग से ही जानती है। योग वेदांत के पाठ उत्तर अमेरिका और यूरोप में बहुत तेजी से फैले और आधुनिक युग के व्यावहारिक आध्यात्मिकता आधार बने। उन्होंने चेतना और आत्मबोध को योग से जोड़ा और बताया कि प्राणायाम ,मंत्र तथा समाधि क्या है और यौगिक उपचार की विधि क्या है।
जो कार्य आइंस्टीन ने सापेक्षता के सिद्धांत का प्रतिपादन कर आधुनिक भौतिक विज्ञान के लिए किया वही कार्य स्वामी जी ने चेतना के आंतरिक विज्ञान के संबंध में किया। उन्होंने योग और हिंदुत्व के बारे एक नई दृष्टि विकसित की। उनके इस कार्य से भारत में योग और वेदांत की परंपरा को पुनर्जीवित करने में मदद मिली साथ ही उन्होंने तंत्र और मूर्ति पूजा को भी प्रोत्साहित किया। उन्होंने एक वैश्विक परंपरा पर बल दिया और बताया कि कैसे दुनिया के सभी धर्म और विज्ञान का मूल भारत में है। औपनिवेशिक विद्वानों ने हिंदू धर्म को अंधविश्वास और पिछड़ापन बताया था उन्होंने इस धारणा को खंडित किया। विवेकानंद में भारत की प्राचीन छवि को आध्यात्मिक दार्शनिक और सांस्कृतिक स्तर पर पुनर्जीवित किया। धर्म परिवर्तन के प्रतिकार के मुकाबले के लिए वैचारिक बल दिया।
वैश्विक हिंदुत्व विवेकानंद से ही शुरू होता है ।कई हिंदू गुरुओं ने उनकी राह पर चलना आरंभ किया । जब भी हिंदू दुनिया के किसी कोने में जाते हैं विवेकानंद के योग और वेदांत उनका दुनिया में परिचय देते हैं । आज भी सभी संस्कृतियों में विवेकानंद के सबक को आदर की दृष्टि से देखा जाता है। आज जरूरत है कि उनकी बातों पर गंभीर विचार हो।
इस विशाल आयोजन पर एक सवाल उठता है और कई लोग यह पूछते पाए भी जा रहे हैं कि क्या 5000 वर्ष पहले शुरू हुए हिंदू धर्म को आज कोई खतरा है। हिंदू समाज अक्सर एकजुट नहीं होता इसलिए उन्हें डर है कि क्या दूसरे धर्मों की तरह हिंदू भी संगठित होने की कोशिश कर रहे हैं ? लेकिन, उनका डर बेकार है। हिंदू संस्कृति और समाज के इतिहास को अगर देखें तो हिंदू कई बार छोटे-छोटे लक्ष्यों के लिए एकजुट हुए हैं ।
3 दिनों के इस आयोजन में लगभग ढाई सौ शिक्षाविद,बड़ी संख्या में लेखक, कलाकार अर्थशास्त्रीय चिंतक और राजनीतिज्ञ भाग लेंगे। लगभग 2200 लोगों को 50 देशों से आमंत्रित किया गया है और इसे आज तक के सबसे बड़े हिंदू सम्मेलन के रूप में गिना जा रहा है । इसमें सबसे बड़ा प्रश्न होगा कि " हम कौन हैं और आज हमारे धर्म के सामने कौन सी चुनौतियां हैं।" उसका जीवन दर्शन ही हिंदू ही है "अहम ब्रह्मास्मि" यह आत्म केंद्रीयता, मुक्ति और सशक्तिकरण की राह दिखाती है खासकर जब कोई आध्यात्मिक संधान के बारे में बातें करता है। यद्यपि रोजमर्रा के जीवन में यह अत्यंत विकेंद्रित होता है। एक सभ्यता वाले राष्ट्र चेतना के बावजूद आम हिंदू दूसरों की चपेट में आ जाता है और यह क्रिया ही उसे विदेशी हमलों का शिकार बनाती है तथा बनाती रही है। यह सम्मेलन हिंदुओं में संगठित होने की चेतना पैदा करने की कोशिश करेगा कि हिंदू अपने सामने आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकें। यह अपनी पहचान को भी कायम रखने में मदद करेगा। इस सम्मेलन का उद्देश्य ही है सामूहिक चिंतन ।क्या यह हिंदू समाज में अपेक्षित चेतना जागृत कर सकेगा? यह तो आने वाला कल बताएगा।
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