कैसे कह दें गांव का मौसम गुलाबी है
सरकार चाहे जिसकी हो ,मोदी जी की हो या इसके पहले वाली हो लेकिन गरीबों के उत्थान और विकास का नारा हमेशा झांसा देने के लिए ही दिया जाता है। हाल के एक सर्वे में पाया गया है किस देश के 2 लाख 92 हजार गांव के लगभग 2 करोड़ 30 लाख घरों में आज भी बिजली नहीं है । इनमें लगभग 7% यानी 43 हजार गांव ऐसे हैं जहां अभी भी मोबाइल नहीं है । 17% गांव में पीने का पानी नहीं है और इन गांव के लगभग आठ करोड़ 80 लाख बच्चे ,जो 14 से 18 वर्ष की उम्र के हैं, वह अपनी भाषा में पढ़ नहीं सकते। यह आंकड़े बताते हैं कि भारत के 70 वर्षों के
विकास के दावे इन तक नहीं पहुंच पाए।
जो उलझ कर रह गई फाइलों के जाल में
गांव तक वो रोशनी आएगी कितने साल में
पिछले 25 वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था 7 गुनी बढ़ गई। सरकार बताती है कि इस वर्ष हमारे देश की अर्थव्यवस्था 121. 9 लाख करोड़ है और हम दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। हमारे देश में प्रति व्यक्ति आय इसी अवधि में 15,766 रुपए से बढ़कर 82,269 रुपए हो गई । यही नहीं भारत के 6 लाख 40 हजार 932 गांव में बिजली पहुंच गई है । यह दावा लेकिन यह दावा सही नहीं है। इन ग्रामों में 2 करोड़ 30 लाख घर ऐसे हैं जहां आज भी बिजली नहीं है । जिन गांव में बिजली नहीं है उनमें सबसे ज्यादा गांव उत्तर प्रदेश के हैं, यहां एक करोड़ 20 लाख घर असम में 19 लाख उड़ीसा में 18 लाख घरों में 22 अगस्त 2018 तक बिजली नहीं थी। 18,374 गांव में 2015 के बाद बिजली लगी है लेकिन सच तो यह है इनमें केवल 1,425 गांव में ही बिजली लगी।
तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है मगर ये आंकड़े झूठे हैं यह दावा किताबी है
हमारे देश में 1995 से यानी 23 वर्ष पहले से मोबाइल फोन है लेकिन आज भी 45 हजार से ज्यादा गांव ऐसे हैं जहां मोबाइल फोन की सेवा नहीं है। यह आंकड़े सरकार के ही हैं। इनमें सबसे ज्यादा गांव उड़ीसा के हैं जहां 9940 गांवों में मोबाइल नहीं है। इसके बाद महाराष्ट्र के 6,117 और मध्य प्रदेश के 5,558 गांवों में मोबाइल नहीं है। हालांकि आंकड़े बताते हैं मोबाइल फोन की संख्या बढ़ रही है लेकिन बहुत से गांव ऐसे हैं यहां आज भी बिजली नहीं है और इन गांवों के लोग मोबाइल को चार्ज करने जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसते है।
8 अगस्त 2018 को लोकसभा में दिए गए एक प्रश्न के उत्तर के अनुसार 1 करोड़ 70 लाख ग्रामीण घरों में से दो लाख 89 हजार घरों में पीने का प्रचुर पानी नहीं है और 62,583 गांव ऐसे हैं जहां का पानी दूषित है। सरकार ने सन 2000 में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना की घोषणा की थी और वादा किया था देश के 1,78,184 गांव में पक्की सड़क बना दी जाएगी लेकिन इनमें से 31,022 गांव ऐसे हैं जहां आज भी सड़क नहीं है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं 24,161 किलोमीटर सड़कें 2012- 13 में बनाई गई जो 2016 -17 में बढ़कर 43,447 किलोमीटर हो गई । प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत 31 मार्च 2016 तक 6,26 ,377 किलोमीटर ग्रामीण सड़कें बनाई गयीं। ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत 99लाख घर बनाए जाने थे जिनमें केवल 45 लाख घर बन पाए हैं। इस योजना के तहत 1 करोड़ 76 लाख लोगों ने घर पाने के लिए नाम दर्ज कराए थे केवल 89 लाख घरों की ही मंजूरी मिल सकी है बाकी 87 लाख लोगों की उम्मीदें पूरी नहीं हो सकीं।
तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
देश में स्वास्थ्य उप केंद्र की 19% कमी है और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 22% तथा 30% सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों का अभाव है। सरकार के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में एक उप स्वास्थ्य केंद्र से लगभग 5000 लोगों को इलाज इलाज की सुविधा मिलती है जबकि एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 30,000 और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 1,20,000 लोगों को उपचार की सुविधा मुहैया कराता है। प्राथमिक उपचार केंद्र गांव की आबादी और एक डॉक्टर के संपर्क का पहला आधार है। इनमें 46% महिला स्वास्थ्य और 60% पुरुष स्वास्थ्य सहायकों का अभाव है । डॉक्टरों की कमी के कारण प्राथमिक उपचार केंद्र में से 12% में कोई डॉक्टर नहीं है। सरकारी ऑडिटर की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में उपचार का संकट पैदा हो रहा है और दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए आवंटित धन बिना खर्च हुए लौट जा रहा है। 21 अगस्त 2018 को सीएजी की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है की 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 34 से 38 प्रतिशत प्राथमिक उपचार केंद्रों में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी है । रिपोर्ट में यह भी पाया गया 75% उप केंद्र सबसे दूरदराज के गांव से 3 किलोमीटर दूर है और इनमें 28% तो ऐसे हैं जहां सार्वजनिक वाहन से पहुंचा ही नहीं जा सकता और 17% केंद्र बेहद गंदे हैं।
शिक्षा की वार्षिक स्थिति के रिपोर्ट के मुताबिक गांव के 14 से 18 वर्ष के लगभग 25% किशोर अपनी भाषा में लिखी बातें भी ठीक से नहीं पढ़ सकते। 86 प्रतिशत से ज्यादा 14 से 18 वर्ष के किशोर स्कूल -कॉलेज की औपचारिक शिक्षा से दूर हैं । यह केवल इसलिए स्कूल -कॉलेज नहीं जा सके। प्राइमरी कक्षाओं में ही इनकी उम्र ज्यादा हो गयी। जब से सरकार ने प्राइमरी कक्षाओं में सबका नामांकन करना अनिवार्य कर दिया है और किसी को फेल नहीं करने की योजना शुरू की है तब से ज्यादा से ज्यादा बच्चे प्राइमरी शिक्षा पा रहे हैं लेकिन इनकी स्थिति यह है 3 अंकों को एक अंक से भाग नहीं दे पाते हैं ।ऐसे बच्चे पढ़ कर भी क्या करेंगे ?
जो बदल सकती है इस पुलिया के मौसम का मिजाज
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिए
प्राथमिक शिक्षा देश की मेधा का आधार है। लेकिन क्या इस तरह की व्यवस्था से हमारे बच्चे मेधावी हो सकेंगे और रोजगार पा सकेंगे। नतीजा होगा बीतते दिनों के साथ ही बेरोजगारों फौज खड़ी होती जाएगी जो आगे चलकर देश के लिए एक भारी समस्या बन सकती है। क्योंकि अधपढ़े लोग अनपढ़ों से ज्यादा खतरनाक होते हैं।
भुखमरी की जद में है या दार के साए में है अहले हिंदुस्तान अब तलवार के साए में है
कल्पना करें की सुविधाओं से वंचित अधपढ़े लोगों की संख्या अगर बहुत ज्यादा बढ़ गई और उनकी महत्वाकांक्षाएं बढ़ा दी गयीं तो उनका कोई भी गलत उपयोग कर सकता है।
कहां तो तय था चरागां हर घर के लिए कहां रोशनी मयस्सर नहीं है शहर भर के लिए
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