गठबंधन की सरकारों से अर्थव्यवस्था को हानि
इन दिनों कई जनमत संग्रह सामने आए हैं जिसमें यह बताया गया है की देश में व्यवस्था विरोधी भावनाएं उभर रही हैं और यह स्थिति भारतीय जनता पार्टी इस सरकार के लिए हानिकारक हो सकती है। हाल में एक सर्वे के अनुसार 2019 में भाजपा को 30% वोट मिल सकते हैं और वह 245 सीटों को हासिल कर सकती है यानी, संसद में बहुमत के लिए उसके पास 27 सीटें कम रहेंगी। इसके पहले एक सर्वेक्षण में पाया गया था कि भाजपा की लोकप्रियता घट रही है फिर भी यह देश की सबसे लोकप्रिय पार्टी बनी रहेगी। सर्वेक्षणों से ऐसा लग रहा है कि एक बड़ा गठबंधन आने वाले दिनों में बन सकता है। जब तक यह बन नहीं जाता और इसके बनने के बाद जन भावनाओं के नतीजे सामने नहीं आ जाते तब तक इसके बारे में कुछ भी कहना सही नहीं है। अगर गठबंधन की सरकार बनती है इसका मतलब है कि उसकी आलोचनाएं भी होंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो पहले ही कहा है सर्दी है के कांग्रेस का प्रस्तावित महागठबंधन एक नाकाम विचार है। आलोचकों का मत है कि गठबंधन अस्थाई होते हैं और नीतिगत तौर पर अवरोधक पैदा करते हैं जिससे विकास धीमा हो जाता है।
लेकिन क्या यह सही है? गठबंधन की सरकार सरकारें भारत या और भी कहीं अर्थव्यवस्था को हानि नहीं पहुंचाती हैं। 1980 के दशक में गठबंधन की सरकार बनी थी। इस से भारत के विकास को कोई हानि नहीं पहुंची उल्टे आर्थिक सुधार की गति तीव्र हो गई। क्योंकि 1980 के दशक के आखिरी दिनों में देश की राजनीति विभाजित हो चुकी थी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन( यूपीए )और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) दोनों के शासनकाल में भारत के इतिहास में सबसे ज्यादा विकास हुआ। जबकि आरंभ से पांच लोकसभा सभाओं में जब कांग्रेस का वर्चस्व था उस समय विकास दर बहुत कम थी। विकास ही नहीं गठबंधन की सरकारों के शासनकाल में अर्थव्यवस्था में भी स्थायित्व देखा गया था। विकास में स्तरीय विचलन 1989 से 2014 के बीच कम पाया गया। अन्य आर्थिक सूचकांकों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं था। मसलन गठबंधन की सरकारों के काल में चालू खाता घाटा उतना ही था जितना पहले हुआ करता था।
दुनिया में जहां भी गठबंधन की सरकार बनी है वहां विकास को आघात के बहुत कम सबूत मिलते हैं। अमीर देशों में, खासकर यूरोप में जहां आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली
समाज में विखंडन पैदा करती है , वहां विकास को बल मिला है। बर्न विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किए गए आंकड़ों के अनुसार जर्मनी, स्विट्ज़रलैंड ,ऑस्ट्रिया और फिनलैंड में विगत 20 वर्षों से गठबंधन की सरकारें हैं। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन में शामिल देशों में से आधे देशों में और यूरोपीय देशों में 2016 में गठबंधन की सरकार बनी थी और 1996 से 2016 के बीच गठबंधन की सरकारें हैं और बिना गठबंधन वाली सरकारों के शासनकाल में अर्थव्यवस्था के विकास में कोई एक पैटर्न नहीं था। परंतु जो तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है वहां गठबंधन की सरकारों के काल में विकास काफी फूला - फूला।
कुछ राजनीति विज्ञानियों का तर्क है गठबंधन के साल में विकास के दर में वृद्धि हुई है। क्योंकि , गठबंधन की सरकारों में कई समूह और समुदाय शामिल होते हैं। राजनीतिशास्त्री इरफान नूरुद्दीन ने बताया है कि गठबंधन की सरकारों में कई समूह होते हैं जो सरकार को अचानक या मर्जी के अनुरूप नीतियां बदल दे से रोकते हैं। इससे नीतियों में स्थायित्व आता है और निवेशकों बढ़ावा मिलता है। लेकिन, साथ ही गठबंधन सरकारों के समय संसद में बहुत रुकावटें पैदा होती हैं। उदाहरणस्वरूप ,1952 से 57 के बीच पहली लोकसभा में 360 विधेयक पास हुए जबकि 2009 से 2014 के बीच जब यूपीए सरकार की दूसरी पारी थी तो संसद मे केवल 179 विधेयक पारित हो सके। आर्थिक प्रबंधन में गठबंधन की सरकारों के बड़े ठोस रिकॉर्ड रहे हैं।
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