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Wednesday, September 26, 2018

भारत में गरीबी की दर घटी है

भारत में गरीबी की दर घटी है
एक तरफ तो रुपया लगातार कमजोर होता जा रहा है और तेल की कीमतें बढ़ती जा रही हैं इससे ऐसा लगता है कि देश का आर्थिक भविष्य अंधकारमय है, लेकिन इसी अंधेरे में उम्मीद की एक उजली किरण दिख रही है। राष्ट्र संघ विकास कार्यक्रम और ऑक्सफोर्ड गरीबी तथा मानव विकास पहल (ओ पी एच आई )द्वारा जारी वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एम पी आई) 2018 के मुताबिक भारत में 2005-  6 के दशक के बाद 271 मिलियन लोग गरीबी के दायरे से बाहर निकल आए हैं ।भारत के लिए यह सचमुच खुशखबरी है। बहुआयामी गरीबी सूचकांक वैश्विक गरीबी की पड़ताल के लिए एक शक्तिशाली आंकड़ा है । इसमें उपयोगी तथ्यों का प्रयोग किया जाता है। ओ पी एच आई के निर्देशक सबीना अलकायर के अनुसार इन आंकड़ों से केवल यही नहीं पता चलता है कि कौन सा देश गरीबी से कितना जूझ रहा है बल्कि यह भी पता चलता है की गरीब कौन है और वे कहां हैं और वह किस तरह गरीबी को झेल रहे हैं रहे हैं।
        एक तरफ तो यह रिपोर्ट हमें बताती है दुनिया के 104 देशों की  लगभग  एक चौथाई आबादी के 1.3 अरब लोग बहुआयामी गरीबी  में जी रहे हैं । जिसमें 46% लोग भयंकर गरीबी मे जी रहे हैं। यह एक ऐसी वास्तविकता है जिस पर दुनियाभर को सोचना चाहिए ।जहां तक भारत का सवाल है इसमें विगत 10 वर्षों में 28% लोग गरीबी के दायरे से बाहर निकल आए। अलकायर के मुताबिक यह एक ऐतिहासिक परिवर्तन है । अलकायर कहा कि हम इस समय के अंतर्गत इस परिवर्तन का आकलन कर सकते हैं और यह आश्चर्यजनक रूप से खुशखबरी है। यहां तक कि गरीबों की जनसंख्या वृद्धि में भी कमी आई है। इन की जनसंख्या 635 मिलीयन से घटकर 364 मिलीयन हो गई यानी 271 मिलियन लोग  गरीबी के दायरे से बाहर निकल आए। एक बहुत बड़ी बात है। रिपोर्ट में और भी कई बातें हैं जिससे खुशी हो सकती है। आरंभ के लिए यह कह सकते हैं कि10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में गरीबी बहुत तेजी से कम हुई है । अगर देखें की 2015 -16 में 364 मिलियन लोग बहुआयामी  गरीबी सूचकांक के नीचे थे।इनमें  156 मिलीयन बच्चे थे। यानी ,34.6% बच्चे थे। हर 4 में एक बच्चा इनमें 27.1% आबादी ऐसे बच्चों की थी जो 10 वर्ष की उम्र के भी नहीं हुए थे। अच्छी बात यह है 10 वर्ष के उम्र के नीचे के बच्चों की आबादी में गरीबी तेजी से घटी है।
      लेकिन सब कुछ अच्छा नहीं है। भारत में बच्चों का जीवन विकसित करने के लिए काम कर रही है एक गैर लाभकारी संस्था "सेव चिल्ड्रन इन इंडिया " की निदेशक विदिशा पिल्लई के मुताबिक गरीबी घटने का मतलब बच्चों के लिए अधिकारों और जीवन की गुणवत्ता की प्राप्ति गारंटी नहीं है । बहुत से लोग गरीबी के दायरे से बाहर निकल रहे हैं। लेकिन जब बच्चों की बात आती है तो कई जटिल मामलों का हल होता हुआ नहीं दिखता है। 
    बातें और भी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अभी 2016 में परंपरागत रूप से हाशिए में रह रहे लोग जैसे गांव के लोग ,नीची जाति के लोग, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय के बहुत से लोग अभी भी अत्यंत गरीब हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अनुसूचित जाति में आधे लोग गरीब हैं। इनके मुकाबले ऊंची जाति में गरीबी  15% है । वस्तुतः हर तीसरा मुसलमान और छठा क्रिश्चियन बहुआयामी तौर पर गरीब है। यकीनन, समाज के अन्य भाग सबके साथ आगे बढ़ रहे हैं । लेकिन ,भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि वह गरीब रह गए लोगों पर ध्यान दे। यदि 2015 -16 का यह सकारात्मक रुझान कायम रहा तो मानवीय दुखों को कम करने में भारत की यह अभूतपूर्व सफलता होगी। देश में पैदा होते समय बचने की उम्मीद ,स्कूल जाने की उम्र और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय का आकलन कर राष्ट्र संघ विकास परियोजना के मानव विकास सूचकांक को तैयार किया जाता है और इस सूचकांक में भारत का रैंक 130 है।जबकि गत वर्ष यह 129 था ।यानी, हमारी स्थिति थोड़ी खराब हुई है। कह सकते हैं कि हमारे लिए अच्छी और बुरी दोनों खबरें हैं।
      स्पष्ट रूप से रिपोर्ट जारी करने का यह समय दिलचस्प है । आम चुनाव होने वाले हैं और सत्तारूढ़ दल को असंतोष का सामना करना पड़ रहा है। यह रिपोर्ट भारतीय जनता पार्टी के लिए  उम्मीद को थोड़ा बढ़ाएगा । साथ ही चूंकि यह  10 वर्ष की अवधि की रिपोर्ट है और इसमें से 2 वर्ष ही यानी 14-16 बीच की अवधि भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल की है । बाकी कांग्रेस के  शासन काल की है। इससे कांग्रेस को भी थोड़ा लाभ मिल सकता है। लेकिन चुनाव का यह नजारा बहुत अस्थाई है। अगली बार जिसकी सरकार बनेगी उस पर इस स्थिति को कायम रखने और गरीबी को और कम करने का दवाब बना रहेगा।

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