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Sunday, September 23, 2018

पाकिस्तान से वार्ता ठुकराना बिल्कुल सही

पाकिस्तान से वार्ता ठुकराना बिल्कुल सही
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत से शांति वार्ता दोबारा आरंभ करने की पेशकश की थी लेकिन भारत में उसे स्पष्ट रूप से ठुकरा दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह बिल्कुल सही कदम था। क्योंकि, एक तरफ पाकिस्तान की सरकार शांति वार्ता की बात करती है तो दूसरी तरफ पाक समर्थित आतंकवादी घाटी में हमारे पुलिसकर्मियों का अपहरण कर कथित रूप से  वहां की फौज की शह पर हत्या कर देते हैं। हत्या के बाद घाटी के हिज्बुल मुजाहिदीन के प्रमुख अयाज अहमद नायकू  ने चेतावनी भी दी थी। अगर यह सही है तो घाटी के आतंकवादी और उस पार के उनके आकाओं  ने  मिलकर शांति प्रक्रिया को पटरी से उतार दिया, ताकि घाटी में किसी तरह अमन कायम नहीं हो सके।
      भारत ने वार्ता की पेशकश से इंकार "अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस " को किया। यह सुनने में थोड़ा विडंबनापूर्ण लगता है लेकिन वार्ता की मेज पर  ऐसा होता है। जम्मू कश्मीर में सत्तारूढ़ दल के पूर्व घटक को वार्ता की उम्मीद थी। क्योंकि, शांति की दिशा में आगे बढ़ने के लिए वार्ता के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था।  संभवत पीडीपी ने जो कहा वह सही था। पीडीपी का मानना था की वार्ता ही आगे बढ़ने के लिए सभ्य उपाय है। लेकिन मसला यह है कि वार्ता कैसे की जाए? क्योंकि, अगर वार्ता के बाद कोई बुनियादी समझौता होता भी है तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री उसे लागू करने की गारंटी नहीं दे सकते। वहां फौज सबको नचाती है और वो बातचीत के लिए मेज पर नहीं आती। प्रधानमंत्री इमरान खान की भारत से वार्ता और वाणिज्य की पेशकश भी सशर्त थी। उनका चुनाव प्रचार भारत विरोधी बातों से भरा हुआ था। 2018 के इमरान खान बिल्कुल वह नहीं हैं  जो 2013 में हुआ करते थे ,जब उन्होंने भारत और पाकिस्तान में बिजली की कमी को ठीक करने के लिए भारत पाक असैनिक परमाणु कार्यक्रम की व्यवस्था दी थी। वे हकीकतों के बीच पलकर बड़े हुए थे। उन्होंने फौज को भी पटाया था। पाकिस्तान की फौज की  फितरत है कि वह हर बार जाने पहचाने चेहरों को हटाकर नए चेहरों को लाने चक्कर में रहती है। इमरान खान खुद और पाकिस्तानी आर्मी ने बड़ी सावधानी से भ्रष्टाचार विरोधी के रूप में उनकी एक छवि तैयार की थी ।
         इमरान खान अकेले देश की विदेश नीति को तय करने  तथा सेना के एकाधिकार को खत्म करने की स्थिति में नहीं हैं। संसद में 342 सीटों के मुकाबले उनके 176 प्रतिनिधि हैं और उन्होंने यह आश्वस्त किया है वे फौजी जनरलों के प्रति विश्वस्त रहेंगे। नवाज शरीफ के पास ज्यादा बहुमत था फिर भी वह भारत भारत के साथ संबंध सुधारने में सफल नहीं हो सके । यहां तक कि वे भारत-पाकिस्तान के बीच संबंधों में कोई मामूली परिवर्तन भी नहीं ला सके । पाकिस्तान में सेना समर्थन के बदले बहुत बड़ा प्रतिदान मांगती है । एक जमाने के बेहतरीन गेंदबाज इमरान खान ने वार्ता की  पेशकश के शब्दों का बड़ी सावधानी पूर्वक चयन किया था। उन्होंने वार्ता शुरू करने का सारा जिम्मा भारत के सिर पर मढ़  दिया था और सारी गड़बड़ियों से पाकिस्तान को मुक्त कर दिया था। इस तरह से उन्होंने वार्ता नहीं होने के लिए भारत को ही दोषी बना दिया। जबकि भारत का रुख स्पष्ट था । उसका कहना था की पूर्व शर्त का पालन होना चाहिए। भारत का कहना था वार्ता और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते । जबकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री आतंकवाद के मामले में चुप थे । दरअसल जमीनी स्तर पर कुछ नहीं बदला है। पाकिस्तान में अगर कोई घाटी की स्थिति का आकलन करें तो वही सब कुछ चल रहा है जो पहले था। अपने पहले भाषण में उन्होंने पाकिस्तान का कश्मीर में हस्तक्षेप को उतना ही नकली बताया जितना भारत का बलूचिस्तान में हस्तक्षेप बताया जाता है। आतंकवादी कार्रवाइयों के लिए जिम्मेदारी के मामले में भारत से बराबरी के लिए पाकिस्तानी सरकार ने यह नया तरीका अपनाया है। जहां तक वार्ता में व्यापार की बात है तो वह संभवत पाकिस्तान द्वारा आर्थिक कठिनाइयों के प्रति चिंता का इजहार है या   अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा सशक्त माफी के कारण शायद यह हुआ हो या चीन के महंगे कर्ज के कारण हुआ हो। आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान की हर जनता पर 1 लाख दस हज़ार रुपये का कर्ज है और यही इस की बेचैनी का कारण है।
       भारत सरकार पाकिस्तान के प्रति अपनी ढुलमुल नीति का दंड पहले ही भोग चुकी है। अब चुनाव आने वाले हैं और ऐसे में पूर्व शर्त मानना उचित नहीं होगा। पाकिस्तान विदेश विभाग ने एक बयान जारी किया है जिसमें वार्ता रद्द होने पर दुख जाहिर किया गया है। उसकी भाषा वैसी ही है जैसे पहले हुआ करती थी । सारा दोष भारत पर है। वह तो एकदम दूध का धुला है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी ट्वीट किया है । उन्होंने ट्वीट में दुख जाहिर किया है। इसमें उन्होंने ऐसा लिखा है मानो बहुत ज्यादा दुखी हैं। इमरान खान द्वारा शब्दों का चयन कुछ इस प्रकार है कि भारत सदा से हमलावर रहा है और वह अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए भारत की इस छवि को दूर करना चाहते हैं।  लेकिन घाटी में जो ताजा स्थिति है उस आधार पर वार्ता की पेशकश को ठुकराना एकदम सही है।
        

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