बात निकली है तो दूर तलक जाएगी
अब से लगभग तीन दशक पहले भाजपा ने जो किया वही आज उसे प्राप्त हो रहा है। हम में से बहुतों को याद होगा बोफोर्स तोप के सौदे मैं दलाली को लेकर चलाया गया वह आंदोलन। राजीव गांधी को चोर कह कर नारेबाजी हुई थी और संघ इसके प्रचार में बढ़-चढ़कर भाग ले रहा था। कारण था कि उसे राजनीतिक रूप में अपना वर्चस्व कायम करना था। हालांकि उस सौदे का कुछ नहीं हुआ लेकिन जब यह सब जब चल रहा था तो वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संघ के प्रचारक हुआ करते थे और बोफोर्स के सौदे को लेकर चलाए गए आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। आज फिर वही रक्षा सौदा एक मुद्दा बना हुआ है और इसमें एक कॉरपोरेट हाउस को लाभ दिलाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका को लेकर उन्हें भी कांग्रेस की ओर से वही सब कहा जा रहा है जो कभी संघ ने कांग्रेस के लिए कहा था। राजनीतिक सरगर्मी बढ़ती जा रही है और राफेल विमान सौदे को लेकर तरह तरह की बातें उठ रही हैं। अभी 2 दिन पहले भारतीय अखबारों में कहा गया था कि फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद अपनी बात से मुकर गए हैं। शनिवार को राष्ट्रपति ओलांद ने कहा कि वह अपनी बात पर अभी भी कायम हैं। दरअसल बात यह हुई थी कि राफेल सौदे में रिलायंस ग्रुप के अनिल अंबानी को भागीदार बनाने के लिए भारत सरकार ने प्रस्ताव दिया था। ऐसा फ्रांस के राष्ट्रपति द्वारा बयान दिया गया।इसे लेकर भारत में भारी विभ्रम पैदा हो गया। पक्ष और विपक्ष की तरफ से हमले और बचाव शुरू हो गए । अचानक खबर आई कि राष्ट्रपति ओलांद अपनी बात से मुकर गए हैं और उन्होंने कहा है कि भारत के प्रस्ताव से वे वाकिफ नहीं हैं। सरकार के समर्थकों ने इसे ओलांद के इंकार के रूप में प्रचारित करना आरंभ कर दिया। लेकिन क्या यह सच था? क्या ओलांद ने ऐसा कहा था?
थोड़ा पीछे लौटें। नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने से पहले फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट से सौदा हुआ था 126 राफेल विमान खरीदने और भारत में उनका आंशिक उत्पादन करने का। 2015 में मोदी सरकार ने इस सौदे को रद्द कर दिया और इसकी जगह 36 राफेल लड़ाकू जेट आयात करने का सौदा किया। इसके साथ ही यह समझौता हुआ कि वह इसकी कीमत का आधा भारतीय कंपनियों के साथ निवेश करेगा। उत्पादक ने घोषणा की कि अनिल अंबानी के रिलायंस डिफेंस इसका मुख्य पार्टनर होगा। विपक्ष को यह मसाला मिल गया और उसने प्रचारित करना शुरू कर दिया कि अनिल अंबानी के लाभ के लिए मोदी जी ने यह सौदा तय किया है। जबकि सरकार ने दावा किया की डसॉल्ट कंपनी पार्टनर चुनने के लिए स्वतंत्र है। पिछले हफ्ते के आखिरी दिनों में खबर आई कि राष्ट्रपति ओलांद ने कहा है कि भारत सरकार ने डसॉल्ट पार्टनर के रूप में अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप का नाम प्रस्तावित किया था। इस बयान ने विस्फोटक का काम किया। क्योंकि इससे भारत सरकार के बयान का खंडन होता है। इसके बाद दूसरे ही दिन खबर आई है ओलांद ने अपने बयान से पलटी मार दी है और कहा है कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं था। इसके फिर बाद मांट्रियल में ओलांद ने अपने बयान की फिर पुष्टि कर दी और फिर बवाल होने लगा। इस खंडन- मंडन हकीकत समझ में नहीं आ रही है कि दरअसल ओलांद ने कहा क्या? क्या वे सचमुच अपने बयान से पलट गए थे? सच तो यह था कि ओलांद ने कहा था कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद जब राफेल सौदे पर नया फार्मूला तय हुआ तब रिलायंस ग्रुप नए पार्टनर के रूप में सामने आया। जब यह उनसे पूछा गया कि क्या इसके लिए भारत सरकार ने दबाव दिया था तो ओलांद ने कहा कि वह इससे अनभिज्ञ हैं और डसॉल्ट इसका उत्तर दे सकती है। साथही, उन्होंने यह भी कहा कि वे नहीं चाहते हैं कि भारतीय विवाद में उनका नाम घसीटा जाए।
कुल मिलाकर ओलांद ने वही कहा जो उन्होंने पहले कहा था कि "भारत सरकार ने अनिल अंबानी का नाम राफेल सौदे में डिफॉल्ट की पार्टनर के रूप में प्रस्तावित किया था और इसमें उनकी सरकार को कुछ नहीं करना था।" उन्होंने कहा था कि अंबानी का रिलायंस ग्रुप नए फार्मूले का एक हिस्सा था। ओलांद का यह वाक्य कि रिलायंस से हाथ मिलाने के डिफॉल्ट के फैसले पर उनकी सरकार को कुछ नहीं करना था। इसी बात पर विवाद पैदा हो गया। हालांकि ओलांद का यह कहना नहीं था भारत सरकार ने डिसॉल्ट पर रिलायंस के लिए दबाब दिया था? उन्होंने केवल इतना कहा था कि रिलायंस सरकार के प्रस्ताव के "नए फार्मूले " का हिस्सा था। सरकार ने बड़ी चालाकी से इसका खंडन किया। भारत सरकार ने यह कहा कि प्रस्तावित पार्टनर के रूप में रिलायंस के चयन में सरकार की कोई भूमिका नहीं थी। लेकिन उसने यह नहीं कहा कि प्रस्तावित पार्टनर के रूप में अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप का नाम अग्रसारित किया था या नहीं।
लेकिन बात यहीं खत्म होने वाली नहीं है। रविवार भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राष्ट्रपति ओलांद पर भी थोड़ी कालिख डाल दी। उन्होंने कहा है कि राहुल गांधी और ओलांद की टिप्पणी "गुप्त रूप से आयोजित" है। लेकिन फ्रांस में ओलांद से अभी और सवाल पूछे जाएंगे। बात निकली है तो दूर तलक जाएगी । क्योंकि, कुछ ही महीनों के बाद लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और जिस तरह बोफोर्स सौदे में दलाली के मामले को तत्कालीन विपक्ष ने हवा दी थी वैसा ही शायद आगे भी होने वाला है।
Monday, September 24, 2018
बात निकली है तो दूर तलक जाएगी
Posted by pandeyhariram at 6:52 PM
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