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Sunday, September 16, 2018

भाजपा का बढ़ा आत्मविश्वास

भाजपा का बढ़ा आत्मविश्वास
2019 के लोकसभा चुनाव का चाहे जो हो या उसके बाद के चुनाव का भी चाहे जो लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने अपने आत्मविश्वास और अपनी अकड़ से यह जंग जीत ली है। उन्होंने 2022 की योजनाओं का भी खुलासा किया है जबकि अभी उसकी पहली पारी भी अभी खत्म नहीं हुई है । पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अध्यक्ष अमित शाह ने अगले 50 साल तक सत्ता में कायम रहना कि अपनी मंशा की घोषणा की है बेशक उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष को 2019 एक अवसर मिल सकता है। भाजपा की आंतरिक संरचना कुछ ऐसी है कि वह बुरे समय में भी विश्वास को कायम रख सके । लेकिन वर्तमान का जो जुझारू पना है जो लड़ने की क्षमता दिख रही है उसके कई कारण  हैं। भाजपा ने देश में ध्रुवीकरण की सियासत शुरू कर दी है। इससे पार्टी के समक्ष एक नई चुनौती उत्पन्न हो गई है। यहां मोदी सरकार के कामकाज की समीक्षा करना उद्देश्य नहीं है। लेकिन ,आम आदमी के नजरिए से तो यह लगता है कि सरकार ने कुछ किया नहीं । खासकर गरीबों और छोटे व्यापारियों के लिए। नोटबंदी , जीएसटी  , तेल की बढ़ती कीमत  और रुपए का घटता मूल्य  इत्यादि के रूप में  सरकार ने जो किया उससे हानि ही पहुंची है।
        इन सबसे अलग सामाजिक क्षेत्र में भी बहुत मुश्किलें  हैं और तीव्र हिंदुत्ववाद से समाज में कुछ ऐसा भी विघटन आ गया है कि शायद ही उसे खत्म किया जा सके। क्योंकि इस नई स्थिति से हिंसा का एक नया स्तर देखने को मिल रहा है । यहां अभी  और मिल पत्थर हैं जैसे सांप्रदायिक हिंसा। अब यह कभी कभार की बात नहीं रह गई बल्कि यह नहीं खत्म होने वाली अनवरतता हो गई है।  जब हिंसा शुरू होती है तो उसे हर कोण से फिल्माया जाता है। यहां जो सबसे विचित्र बात है वह कि यह अपराध गोपनीय नहीं रहता, इससे तमगे की तरह धारण करके अपराधी खुला घूमते हैं । यही नहीं,  इस हिंसा को न केवल सोशल मीडिया द्वारा समर्थन मिलता है बल्कि इसे मंत्रियों और सांसदों का भी समर्थन प्राप्त है। बेशक प्रधानमंत्री जी ने कभी-कभार इसकी आलोचना जरूर की है । लेकिन ,उस आलोचना से जयंत सिन्हा जैसे मंत्री को नहीं रोका जा सका है। यही नहीं पीट-पीटकर कर मार डालने घटना ने हमें झकझोरा तक नहीं उल्टे उस पर नई बहस शुरू हो गई। जैसे अखलाक की हत्या इस हत्या ने हमें विचलित नहीं किया बल्कि हम एक नई बहस मैं उलझ गए कि उसके घर में खाना बनाने के बर्तन में गौ मांस था या साधारण मांस। इसके बाद तो कई और घटनाएं घटीं। मानवाधिकारवादियों को नीचा दिखाना अब आम बात हो गई है । चूकि अपराधियों को आजादी मिल गई है तो अपराध एक नई ऊंचाई तक पहुंच गया है ऐसा नहीं की इस नए अंधेरे की भयावहता से लोग चिंतित नहीं है जो समझते हैं वह स्पष्ट कहते हैं कि भविष्य में भीड़ की तानाशाही का भय है। इसे खत्म किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी लिंचिंग के लिए कानून बनाने की सिफारिश की है और हैरत जाहिर किया है फिर क्या शाही अब सामान्य हो गई है ।भीड़ को कानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती। हाल में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी ने भीड़तंत्र को एक नया रूप दे दिया। बात यहां तक बिगड़ी कि सुप्रीम कोर्ट को भी हस्तक्षेप करना पड़ा।
अब आते हैं मूल बात पर कि भाजपा भरोसे से इतनी लबालब क्यों है? क्योंकि, पार्टी का आकलन है के जो विधि विहीनता दिख रही है वह उसकी उपलब्धि है। क्योंकि इसे हिंदू भारत के रूप में देखा जा रहा है और भारतीय मध्यवर्ग जो जन चेतना पैदा करने में मुख्य भूमिका निभाता है वह धीरे धीरे निष्क्रिय होता जा रहा है। क्योंकि मध्यवर्ग कई समस्याओं के कारण क्रमिक रूप से श्रमिक वर्ग में परिवर्तित होता जा रहा है । यही नहीं ,भाजपा यह भी फैला रही है कि सामाजिक न्याय के समर्थक असल में हिंदू अल्पसंख्यक वाद का विरोध कर रहे हैं। इससे भाजपा को अन्य पिछड़ा वर्ग में समर्थन मिलने लगा है ।विपक्ष  हिंदू वोट के डर से भाजपा की आक्रमकता का मुंहतोड़ जवाब नहीं दे पा रहा है। वह केवल तेल की कीमत को लेकर बैठा हुआ है। वह बता नहीं पा रहा है की एक दल और उसकी सरकार से लोकतंत्र को खतरा है। विपक्ष केवल राज्य स्तरीय गठबंधन बनाने तक ही रह गई है कोई वैचारिक चुनौती नहीं दे पा रहा है । भाजपा के लिए विपक्ष का एक ही नेता आंख की किरकिरी बना हुआ है वह है राहुल गांधी। राहुल गांधी की कैलाश मानसरोवर यात्रा से भाजपा में बेचैनी है। लेकिन ,वह चिंतित नहीं है।  क्योंकि राहुल गांधी का उद्देश्य यह बताना था कि वह एक अच्छे हिंदू हैं। यह एक ऐसा दांव है जो  नियंत्रण से बाहर भी हो सकता है। इसका मतलब यह भी तो हो सकता है कि कांग्रेस ब्राह्मणवाद की घोषणा करने जा रही हो और उसके भीतर भी गौ रक्षा यह वह भाव कायम है । भाजपा को यदि खतरा है तो अपने भीतर से ही है।  वह खतरा है दलितों के प्रति पार्टी के रुख का।

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