CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Sunday, September 30, 2018

शब्द प्रहारक भी होते हैं

शब्द प्रहारक भी होते हैं
पिछले हफ्ते भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री अमित शाह ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को घुन बताया और कहा कि सब के नाम मतदाता सूची में से काट दिए जाएंगे। उन्होंने  असम में जारी  नागरिकों की सूची के मसौदे का हवाला देते हुए कहा कि 40 लाख घुसपैठियों की शिनाख्त की गई है और बीजेपी सरकार एक-एक घुसपैठियों को चुन- चुन कर मतदाता सूची से हटाने का काम करेगी।
       अमित शाह के इस कथन पर बांग्लादेश के सूचना मंत्री हसन उल हक इनु ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि श्री शाह ने अवांछित टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि श्री शाह भारत-बांग्लादेश संबंध पर बोलने के अधिकारी नहीं हैं और गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने ढाका को आश्वासन दिया है कि जिन लोगों के नाम सूची में नहीं भी होंगे उन्हें बांग्लादेश भेजा नहीं जाएगा । इनु ने स्पष्ट कहा कि यहां हम ढाका में श्री शाह के बयान को कोई महत्व नहीं दे रहे हैं।  इसे सरकारी बयान की गंभीरता और उसका  दर्जा हासिल नहीं है। उन्होंने कहा कि हम मानते हैं कि यह सूची भारत के असमी और बांग्ला भाषी नागरिकों के कल्याण के लिए तैयार की गई है और यह भारत का आंतरिक मामला है। इनू  ने कहा कि भारत सरकार ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है और  गृहमंत्री राजनाथ सिंह द्वारा उसका विवरण भेजा भी जा चुका है।
     नागरिकों की मसौदा सूची पर आपत्ति जाहिर करने तथा दावे करने की तारीख मंगलवार से शुरू हुई है। जिन लोगों के नाम मसौदा सूची से बाहर हैं उन में भारी असंतोष और अनिश्चय है क्योंकि उन्हें डर है कि अंतिम सूची में उनका नाम शायद ही शामिल किया जा सके।
      30 जुलाई को जो मसौदा सूची जारी हुई थी उसमें 3. 29 करोड़ आवेदनों में से 40 लाख लोगों के नाम हटा दिए गए । यह बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि असम और भारत सरकार दोनों अत्यंत मानवता पूर्ण ढंग से यह सोच रही है कि आखरी सूची में जिनके नाम नहीं शामिल होंगे उनका क्या किया जायेगा। वैसे तो अपील के कई चरण हैं लेकिन भारत सरकार को चाहिए कि वह सरकारी तौर आश्वासन दे कि उन्हें वहां से निकाला नहीं जाएगा । दक्षिण एशिया के जटिल इतिहास में उन लोगों की हालत बहुत खराब है जो बाहर से आए हैं और उनका किसी सूची में नाम नहीं है। वह गरीबी के बदकिस्मत शिकार है । भारत की परंपरा रही है कि जिनके पास कोई शरण नहीं है उन्हें वह शरण देता है । यह परेशान कर देने वाली स्थिति है कि अभी अंतिम सूची तैयार नहीं हुई है और राजनीतिक नेता खासतौर पर उस पार्टी के नेता जिनकी  सरकार असम में है इस तरह के बयान दे रहे हैं।
       शुरू से ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजिद में अच्छे संबंध रहे हैं। बांग्लादेश और भारत ने गत जून 2015 में ऐतिहासिक भूमि सीमा समझौता हस्ताक्षरित किया। इस समझौते से 41 साल पुराना सीमा विवाद समाप्त हो गया और 4 हजार किलोमीटर लंबी भारत-बांग्लादेश सीमा को पहचान मिली। शाह को भारत बांग्लादेश संबंध पर बोलने का अधिकार नहीं है। वे एक दोस्त पड़ोसी को भड़का रहे हैं। चुनावी रणनीति विदेश नीति नहीं है।
     राफेल सौदा मूल्य वृद्धि आर्थिक विकास जैसे मसलों को लेकर मोदी सरकार खुद परेशान है। वैसे में इस तरह की अंध राष्ट्रीयता का उपयोग मतदाताओं का ध्यान भटकाने के लिए किया जाता है। विपक्षी दल सरकार पर लगातार घोर पूंजीवाद का आरोप लगा रहे हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री के मुख्य रणनीतिकार भारत का संबंध ढाका के साथ जोखिम में डाल रहे हैं। शाह के इस बयान की प्रतिध्वनि कई भाजपाई नेताओं में सुनी जा रही है । इसमें जो सबसे बड़ी बात है  वह है कि बहुत से नेता असम की नागरिकता सूची लेकर कंफ्यूज हैं। एक ही परिवार के कुछ लोग सूची में हैं और कुछ लोग नहीं हैं। इतनी बड़ी कार्रवाई के लिए जो तैयारी चाहिए उसके लिए बहुत बड़े संसाधन की जरूरत है इसके बारे में कोई नहीं  सोचता है  और सोचे भी क्यों जब कुछ भड़काऊ डायलॉग और नारे ही वोट लेने के लिए पर्याप्त हैं।

0 comments: