कीमतें काबू करने की बेलगाम लालच
हुक्म जारी कर के कीमतें तय करने का यह मौसम है । किसानों को 23 फसलों की निम्नतम कीमत करने का सरकार ने आश्वासन दिया है । यहाँ यह प्रश्न नहीं है कि बाज़ार कि कीमतें कितनी गिरेंगी। दोनों का अंतर सरकार के खजाने से दिया जाएगा। महाराष्ट्र सरकार ने यहाँ एक नयी व्यवस्था दी है। सरकार ने कहा था कि यदि कोई व्यापारी किसी किसान को निम्नतम समर्थन मूल्य से कम भुगतान करता हुआ पकड़ा जाएगा तो उसे एक साल कि सजा होगी। यह एक नया विचार है क्योंकि इससे निम्नतम समर्थन मूल्य का भार सरकारी खजाने से हट कर थोक और खुदरा खरीदारों पर आ गया। यह चालाकी भरा कदम है लेकिन क्यों नहीं इस नियम के दायरे में खुदरा उपभोक्ताओं सहित सभी खरीदारों को लाया जा रहा है। कोई आदमी जो चावल और गेहूं ऊंची कीमत नहीं अदा करेगा वह राष्ट्र विरोधी है और उसे जेल कि हवा खानी पड़ेगी। शुक्र है कि यह विचार नियम नहीं बना। सरकार ने इस आदेश को वापस ले लिया जाएगा। यह इसलिए नहीं लागू हो सका क्योंकि डर था कि इसके बाद व्यापारी अनाज खरीदना ही बंद कर देंगे। अब यदि वे खरेंगे ही नहीं तो कीमत भी नहीं चुकायेंगे क़ानून चाहे जो हो। अब इससे निम्नतम समर्थन मूल्य कि व्यवस्था ही चौपट हो जायेगी। अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि केंद्र सरकार इसे किस तरह लागू करेगी और समर्थन मूल्य तथा बाजार मूल्य के बीच के फर्क का हर्जाना कैसे भरेगी? गन्ना किसान ऊंची कीमत के लिए पहले से ही आन्दोलन कर रहे हैं। एथेनोल कि ऊंची कीमत कि गारंटी और उसे पेट्रोल डीजल में मिलाये जाने के चलन के बढ़ने के साथ ही चीनी कि कीमतें बढ़ जायेंगी और इससे गन्ना किसानो को परोक्ष लाभ होगा। निम्नतम मूल्य का यह पैराडाइम का निर्यात पर भी असर पडेगा। अब चूंकि रूपए का मूल्य गिर रहा है और चालू खाते का घाटा बढ़ता जा रहह है वैसे में सरकार ने फैसला किया है कि गैर ज़रूरी आयातों में कटौती की जायेगी। सबसे ज्यादा आयात मोबाईल फोन और अन्य इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं का होता है। क्या फोन गैरज़रूरी हैं? कुछ दिन पहले एन डी ए सरकार के एक मंत्री ने नारा दीरा था कि रोटी , कपड़ा , मकान और मोबाइल, अतएव हम कह सकते हैं कि बेसिक फोन ज़रूरी हैं स्मार्ट फोन नहीं, या 16 जीबी मेमोरी वाला फोन ज़रूरी है बाकी सब गैर ज़रूरी। लेकिन हमारे देश में सबसे ज्यादा आयात कोयले का होता है जिससे बिजली बनती है और यह गैरज़रूरी नहीं हो सकता।
एक तीसरा क्षेत्र और है जहां निम्नतम मूल्य लागू है वे हैं ऑनलाइन कॉमर्स कम्पनियां। उन कंपनियों द्वारा दी जा रही छूट हमें रास नहीं आती। ई कॉमर्स के लिए बनाए गए मसौदा क़ानून में ऑन लाइन कंपनियों के कारोबार को प्रतियोगिता विरोधी कहा गया है। अब अगर उपभोक्ताओं को सुपरडील प्राप्त होती है तो अर्थशास्त्री उसे क्या कहेंगे, यह प्रतियोगिताविरोधी कैसे है? मूल्यन और लागत दोनों दो स्थितियां हैं। लागत उत्पादन से जुडी होती है और मूल्यन मांग से नियंत्रित होता है। कोई कंपनी लागत से कम मूल्य पर माल बेच कर ज्यादा दिनिं तक टिकी नहीं रह सकती है। आमतौर पर उत्पादन परिवर्तनीय मूल्य को तय करना कठिन है। अतएव , छूट दी जाय अथवा नहीं इसके लिए मूल्य निरीक्षक को भेजना सही नहीं है। यह जानना दिलचस्प होगा कि छूट को लेकर सरकार कि भृकुटी टेलीकॉम कंपनियों पर नहीं तनती। हमारी मूल्यनीति चीन से आयात पर लागू नहीं होती। इस मामले में अगर कोई आरोप लगाता है तो आरोप को प्रमाणित करने का जिम्मा भी उसी पर होता है कि कोई वस्तु उत्पादन लागत से कम मूल्य पर बेचीं जा रही है। एंटीडंपिंग डियूटी एक तरह की सज़ा है केवल संरक्षण वाद का औज़ार नहीं है। विश्व व्यापार संगठन के नियमों में भी है। हालांकि कई उदारवादी अर्थशास्त्री नहीं स्पष्ट कर पाते कि सस्ती वस्तुएं कैसे उपभोक्ताओं के हितों को चोट पहुंचाती हैं।
मूल्य नियंत्रण नीति निर्माताओं का लोभ है और सदा से यह उनके फैशन में रहा है।
Friday, September 21, 2018
कीमतें काबू करने की बेलगाम लालच
Posted by pandeyhariram at 7:24 PM
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