इसबार 2014 वाली बात नहीं है
अगले लोकसभा चुनाव में राम मंदिर को मुख्य मसला नहीं बनाये जाने के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है कि 1991 में जब रामजन्म भूमि आंदोलन चल रहा था तो देश के बहुत से नौजवान वोटर पैदा ही नहीं हुए थे अथवा होश नहीं संभाल पाये थे। यह भी कहा जा सकता है कि वे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं रखते तब भी उनके वोट की कीमत है। यह भी कह सकते हैं कि वोटरों का यह समूह बहुत उदारवादी है पर रोजगार को लेकर बेहद चिंतित है। जरूरी नहीं है कि यह वोटर समूह सत्ताधारी दल को वोट देगा। लेकिन इनके वोट महत्वपूर्ण हैं और गुमराह होने वाले हैं। भारत में 20 वर्ष से 34 वर्ष की उम्र वाले नौजवानों की आाबादी बढ़ कर 26 प्रतिशत हो गयी है, यह संख्या आजादी के बाद अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। राष्ट्रसंघ जनसंख्या विभाग के अनुसार भारत दुनिया में नौजवानों की संख्या के मामले में सबसे ज्यादा नौजवानों वाला देश है लेकिन 20 वर्ष से 34 वर्ष के आयुवर्ग वाले इस देश में 2015 से इस आबादी की संख्या घटने लगी है जो 21 वीं सदी बाकी अवधि में बी जारी रहेगी।
2014 के ल7ोकसभा चुनाव में नौजवान मतदाताओं की संख्या ऐतिहासिक थी और उनका मतदान भी ऐतिहासिक था। सेंटर फॉर स्टडीज ऑफ डेवेलपिंग सोसायटीज के एक सर्वेक्षण के अनुसार 2014 में पहली बार जितने नौजवान मतदाताओं ने वोट डाले वह अन्य उम्र के मतदाताओं से बहुत ज्यादा थी और ऐसा पहली बार हुआा था। यानी, मोदी जी को विजयी बनाने में नौजवानों का समर्थन बहुत ज्यादा था। पिछले चुनावों में भाजपा के समर्थन में इतनी बड़ी संख्या में नौजवानों ने वोट नहीं डाले थे। 2014 में जो ज्यादा उम्र के लोग थे उनमें से अधिकांश मतदाताओं ने कांग्रेस को वोट डाले थे। लेकिन सवाल है कि ये नौजवान राजनीति राजनीतिक दलों से अलग चाहते क्या हैं? 2017 के एक सर्वे में पाया गया है कि 15 वर्ष से 34 वर्ष की आयु वाले लोगों में राजनीति के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं है। इस उम्र के अधिकांश मतदाताओं में सनसनीखेज सियासत को लेकर कोई लगाव नहीं है। नौजवान रूढ़िवादी नजर आ रहे हैं। जिन लोगों से सर्वेक्षण के दौरान बात हुई उनमें ज्यादातर का मानना है कि साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काने वाली फिल्मों पर रोक लगायी जाय और आधे लोगों का मत है कि गोमांस पर पाबंदी लगे। सेंटर फॉर स्टडीज ऑफ डेवेलपिंग सोसायटीज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक सर्वेक्षण के मुताबिक नौजवान मतदाता खानदानी सियासत के थोड़े विरोध में हैं पर अपराधी राजनीतिज्ञों के मामले में ज्यादा उम्र के मतदाताओं के मुकाबले नरम हैं पर वे भी चाहते हैं कि उनका स्थानीय उममीदवार उनहीं की जाति का हो। 2014 के चुनाव के बाद जब उनसे पूछा गया कि नयी सरकार से क्या चाहते हैं तो अदिाकांश नौजवानों ने कहा कि रोजगार के अवसर बढ़ने चाहिये और हिंदू समुदाय की सुरक्षा होनी चाहिये। इन मतदाताओं को रोजगार के अवसर के संकट जितना प्रभावित करते हैं उतना कोई मसला नहीं करता। भारत में आज जितनी बेरोजगारी है वह पिछले 20 वर्षें में सबसे ज्यादा है यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि मतदाता सार्वजनित हितों के लिये सीधे वोट डालते हैं या फिर इसके अभाव के कारण दलों को दंडित करते हैं। नौजवान मतदाता थोड़े धैर्यहीन महसूस होते हैं। लोक फाउंडेशन के सर्वे के अनुसार जब इनसे पूछा गया कि देश की आर्थिक स्थिति कैसी है तो अधिकांश का उत्रर था कोई बदलाव नहीं हुआ है और सरकार कानून और व्यवस्था बनाये रखने में असफल है।
जिन मतदाताओं ने पहली बार वोट डाले थे वे उसी पार्टी के प्रति सजग दिखते थे जिसे उन्होंने वोट दिया था। नौजवान मतदाता 2014 में भाजपा और विशेषकर नरेंद्र मोदी के भारी समर्थक थे लेकिन ऐसा लग रहा है कि उनका मोहभंग हो रहा है। 2014 के बाद और 2019 के चुनाव के पहले सेंटर फॉर स्टडीज ऑफ डेवेलपिंग सोसायटीज के सर्वे के अनुसार कुल मिलाकर नौजवान मतदाताओं में भाजपा के प्रति दिलचस्पी मामूली तौर पर बढ़ी है लेकिन जो पहली बार वोट देने की उम्र में पहुंचे हैं उनमें ऐसा नहीं है। उनमें कांग्रेस के प्रति समर्थन बढ़ा है। नौजवान मतदाता भाजपा के पक्ष में फिर वोट डाल सकते हैं लेकिन वैसा कत्तई नहीं होगा जैसा 2014 में हुआ था।
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