जिस खेत से दहकां को ना हो रोजी मयस्सर
दो अक्टूबर गुजर गया। शायद किसी ने गौर नहीं किया होगा कि बड़ती हुई विडम्बनाओं के इस दौर में इस वर्ष का दो अक्टूबर अब तक की सबसे बड़ी विडम्बना का गवाह है। इस दिन राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गांधी का जन्म दिन था जिन्होंने दुनिया को सत्याग्रह और अहिंसा का नारा दिया था। यही नहीं इसी दिन देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का भली जन्म दिन था जिन्होंने देश को नाहरा दिया था " जय जवान - जय किसान। " ...और इससी दिन इस वर्ष दिल्ली के रास्ते गाजीपुर में हजारों किसानों पर दिल्ली पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स की बटालियनों ने जलतोपें और रबर की गोलियां दागीं। ये किसान प्रधानमंत्री जी कृषि नीति के विरोध में दिल्ली कूच कर रहे थे। यहां तारीख का संयोग बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन 30 साल पहले इसी तरह का किसानों एक आंदोलन हुआ था। 1988 में इसी दिन किसानों को सिंचाई के लिये सस्ती बिजली की मांग को लेकर 40 दिनों तक धरना दिया था और राजीव गांधी की ततकालीन सरकार हिल गयी थी। 30 साल के बाद इस दिन फिर किसानों ने कमर कसी थी। ये कर्जे माफ करने, निम्नतम समर्थन मूल्य , 15 साल पुराने ट्रैक्टर पर से पाबंदी हटाने इत्यादि की मांग लेकर दिल्ली कूच कर रहे थे और उनकी योजना थी कि गांधी जयंती के दिन दिल्ली के किसान घाट पहुंच कर वे अपनी रैली रद्द कर देंगे।
इस वर्ष जुलाई में भाजपा सरकार ने खरीफ का निम्नतम समर्थन मूल्य बढ़ाया था और उसका दावा था कि इस मामले में यह ऐतिहासिक निर्णय है। हालांकि यह वृदि्ध स्वामीनाथन कमिटी की सिफारिशों के अनुरूप नहीं है। वित्तमंत्री अरूण जेटली ने राज्य सभा में कहा था कि 2018 के बजट में आश्वासन दिया गया है कि किसानों की लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य रखा जायेगा। भाजपा सरकार ने 2014 में अपने चुनाव घेषणा पत्र में कहा था कि सभी छोटे किसाानों के कर्जे माफ कर दिये जायेंगे और आगे व्याज मुक्त कर्ज दिया जायेगा। नयी सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने की व्यवस्था करेगी। यही नहीं सरकार ने कहा था कि गन्ना किसानों को गन्ना बेचे जाने के 15 दिनों के भीतर उसका मूल्य दिये जाने की व्यवस्था की जायेगी और पहले का बकाया 120 दिनों में दिनोंमिें मिल जाय इसहके लिये भी सरकार मिलमालिकाणें तथा बैंकों से बात करेगी। लेकिन 24 जुलाई 2018 को वित्त मंत्री अरूण जेटली ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि कोई कर्ज माफ नहीं किया जायेगा। क्योंकि कर्ज नहीं चुकाने वालों को लाभ पहुंचाने से सरकार की साख पर आंच आती है। यही नहीं जो लोग ईमानदारी से कर्ज चुकाते आये हैं वे हतोत्साहित महसूस करेंगे।
ग्रामीण कर्ज और उसके कारण होने वाली मौतें बढ़ती जा रहीं हैं। अरूणजिेटली 2016 के अपने बजट भाषण में कहा था कि " हम किसानों के आभारी हैं क्योंकि वे हमारी खाद्य सुरक्षा की रीढ़ हैं। हमें खद्य सुरक्षा से आगे बड़ कर किसानों के बारे में सोचना चाहिये और उनमें आय सुरक्षा का भाव भरना चाहिये। सरकार ऐसी व्यवस्था करेगी कि 2022 तक उनकी आय दोगुनी हो जाय। " लेकिन अनिश्चित मौसम और किसानों द्वारा आत्म हत्या की बड़ती घटनाओं के यह दौर इस बार के चुनाव में मुख्य मुद्दा होगा। हालांकि औपचारिक कर्ज के बंदोबस्त बडझ् रहे हैं पर अभी तक उसकी पहुंच सबतक नहीं है लिहाजा गांव के किसान अभी भी महाजनों पर निर्भर हैं। किसानों की आत्म हत्या को कम करने की गरज से 2017 में उत्तरप्रदेश में 36 हजार 359 करोड़ रुपयों और महाराष्ट्र में 30 हजार करोड़ रुपयों के कर्ज माफ किये गये। लेकिन इसका कोई खास असर नहीं पड़ा। किनसानों द्वारा आत्महत्या की घटनाएं बड़ती जा रहीं हैं। उनकी पीड़ा कम नहीं हो रही है और सरकार कुछ सुन नहीं रही है। लिहाजा उनमें अवसाद बढ़ता जा रहा है। दारू की लत बढ़ रही है और साथ ही कई मनोवैज्ञानिक व्याधियां भी बढ़ती जा रहीं हैं। इसमें विडम्बना और है कि आत्महत्या के तरीके के वर्गीकरण के नये कानून बने हैं। अब उसी किसाान की मौत को आत्महत्या माना जायेगा जिसने बैंक का कर्जा नहीं दिया है और उसके या उसके परिवार नाम कोई जमीन है। बाकनी सारी मौतें दुर्घटना की ष्रेणी में आती हैं।
सेंटर फॉर स्टडीज ऑफ डेवेलपिंग सोसायटीज (सी एस डी एस ) के अध्ययन के मुताबिक 18 राज्यों के 76 प्रतिशत किसान खेती करने के इच्छुक नहीं हैं। 18 प्रतिशत किसान इससे इसलिये जुड़े हैं कि इसके लिये उनपर परिवार का दबाव है। आज शहरों में बासमती चावल और दाल के पैकेटों को हाथ में लेकर हम नहीं सोचते कि इसी समय देश में इसे उपजाने वाला कहीं ना कहीं , कोई ना कोई आत्म हत्या के लिये रस्सी या जहर की शीशी ढूंढ रहा होगा।
जिस खेत से दहकां को ना हो रोजी मयस्सर
उस खेत के हर खोसा - ए - गंदुम को जला दो
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