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Monday, October 15, 2018

गुजरात से बिहारियों का पलायन

गुजरात से बिहारियों का पलायन 

गुजरात में प्रवासी बिहारियों पर लगातार हमले हो रहे हैं और वे गुजरात छोड़ कर भागने पर मजबूर हैं। यह हमले उत्तर भारतीयों पर महाराष्ट्र तथा कई  अन्य राज्यों में हमलों की याद दिलाते हैं । मौजूदा मामले में बिहारी अपनी जीविका के लिए गुजरात जाते हैं यानी वे जीविका उपार्जन के साथ - साथ गुजरात के आर्थिक विकास में भी योगदान करते हैं। कहते हैं कि एक बच्ची से बलात्कार की घटना ने यह स्थिति पैदा की।  उसके बाद बिहारियों में पर हमले होने लगे। बेशक बलात्कार की घटना एक घृणित अपराध है और अपराधी को जितनी जल्दी और जितनी कठोर सजा हो सके  दी जानी चाहिए। इस बात से किसी को इनकार नहीं है । लेकिन ,यह भी सच है बिहार के सभी  प्रवासी मजदूर अपराधी नहीं होते। वे सीधे-साधे लोग होते हैं और पेट की भूख से मजबूर हो या बेहतर जीवन की उम्मीद में अपना घर बार छोड़कर दूसरी जगह जाते हैं।
      यहां मुश्किल यह है कि मामले को राजनीतिक स्वरूप दे दिया जाता है और इसके बाद यह बहुत तेजी से फैलता है। आजकल सोशल मीडिया के प्रसार के कारण ऐसे मामले पलक झपकते ही विस्फोटक बन जाते हैं और चारों तरफ प्रतिक्रियाएं होने लगती हैं। गुजरात के मामले में पुलिस तथा प्रशासन बहुत तेजी से हरकत में आए और गड़बड़ी पैदा करने वाले जो असली लोग थे उनके खिलाफ कार्रवाई भी हुई। 340 लोग गिरफ्तार किए गए।  किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए जगह - जगह पुलिस बलों की तैनाती हुई।
       यहां और कई जगह  समस्या तो दो ऐसी संस्कृतियों की है जो एक दूसरे के साथ मिलकर सहअस्तित्व  की भावना से जीने का प्रयास कर रही हैं। कई स्थानों में यह बड़े आराम से होता रहा है। जैसे बंगाल में बिहारी मजदूर वहां की श्रम शक्ति का आधार हैं। वहां की संस्कृति और सभ्यता में घुलमिल गए हैं। लेकिन, कई जगह ऐसा होने में समय लगता है और इसका कोई सहज समाधान भी नहीं है।
        एक तरफ तो कई ऐसे राज्य हैं जहां बेरोजगारी बहुत ज्यादा है और इसके चलते वहां के बाशिंदे दूसरे राज्यों में कामकाज की तलाश में जाते हैं। दूसरी तरफ राज्य सरकारों को स्थानीय जनता की मांग पर भी जरूर विचार करना चाहिए आखिर वह भी तो मतदाता हैं और सरकार बनाने की प्रक्रिया के तहत वोट भी डालते हैं । गुजरात की घटना ने  सरकारी हलके में बहुत गंभीर बहस को जन्म दे दिया है।  कैसे 80% आबादी को रोजगार दिया जाए? इस स्थिति का एक पक्ष और भी है वह कि, प्रवासी मजदूर सस्ते  होते हैं और स्थानीय मजदूरों के मुकाबले आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। आंकड़े बताते हैं कि देश में 2011 से 2016 के बीच  हर वर्ष 90 लाख लोग एक राज्य से दूसरे राज्य में है यानी लगभग 4.50 करोड़ लोग काम की तलाश में  एक राज्य से दूसरे राज्य में गये हैं। जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि देश में एक राज्य से दूसरे राज्य या राज्य के भीतर ही एक जगह से दूसरी जगह 2011 में लगभग 13.9 करोड़ लोगों ने प्रवास किया। यह बड़ी संख्या यह भी बताती है कि देश के हर भाग में विकास की गति समान नहीं है ।इन प्रवासी लोगों का एक बहुत बड़ा हिस्सा बहुत गरीब लोगों का या मौसमी मजदूरों का होता है। ये मजदूर  असंगठित क्षेत्र में  या निर्माण क्षेत्र में  बहुत ही जोखिम भरा काम बहुत कम मजदूरी पर  करते हैं। इन मजदूरों को कोई भी कानूनी सुरक्षा उपलब्ध नहीं है। शहर के योजनाकार अपनी योजना बनाते समय इन मजदूरों के बारे में सोचते तक नहीं हैं।
  गुजरात में सत्तारूढ़ दल ने कांग्रेस के नेता अल्पेश ठाकोर के संगठन को वर्तमान हमले के लिए दोषी बताया है। कांग्रेस ने इससे इनकार किया है। लेकिन, पार्टी  से छोटी सी गलती हो गई। पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई ने इन हमलों के विरोध में राज्य में आंदोलन की धमकी दी है।
           ठाकोर ने खुद इस घटना को निपटाने की कोशिश शुरू कर दी है । लेकिन , आग तो लग चुकी है । उद्योगों में उत्पादन घट रहे हैं और दिवाली सिर पर है।  मामला जल्दी सुलझने का नाम नहीं ले रहा है। प्रवासी मजदूर महाराष्ट्र और गुजरात जैसे औद्योगिक राज्यों के विकास के महत्वपूर्ण अंग हैं। यही नहीं, पंजाब की कृषि के लिए प्रवासी मजदूर ही काम आते हैं। दिल्ली में ढांचा विकास कार्य में प्रवासी मजदूर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अगर इन मजदूरों और स्थानीय मजदूरों के बुनियादी हितों की सुरक्षा के लिए  कानून बने तो विकास का फल सभी पा सकते हैं।

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