CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Sunday, October 28, 2018

कांग्रेस के विचारों से भाजपा को मदद

कांग्रेस के विचारों से भाजपा को मदद

पिछले रविवार को नरेंद्र मोदी ने लाल किले पर तिरंगा फहराया। यह दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा  सिंगापुर में आजाद हिंद सरकार गठित करने के  दावे के  दिन का 75 वां वर्ष था। इस अवसर का राजनीतिक महत्व भी कम नहीं है। यही राष्ट्रीय पुलिस स्मरण दिवस भी है। लाल किले के समारोह के पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय पुलिस स्मारक राष्ट्र को समर्पित किया। इसी अवसर पर प्रधानमंत्री ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर एक पुरस्कार की घोषणा भी की। इस वर्ष यह  पुरस्कार राष्ट्रीय आपदा बल (एनडीआरएफ) को दिया गया है।
     दोनों आयोजन भावनाओं को उभारने वाले थे। लेकिन, इनके राजनीतिक महत्व से भी इनकार नहीं किया जा सकता। पुलिस स्मारक का उद्घाटन करते समय प्रधान मंत्री ने  एक प्रश्न पूछा कि  इस स्मारक को  बनाने में आजादी के बाद 70 वर्ष क्यों लगे? लाल किले से अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने तो और स्पष्ट कहा कि सुभाष चंद्र बोस, बीआर अंबेडकर और सरदार पटेल जैसे नेताओं के अवदान को प्रमुख राष्ट्रीय  बातचीत से मिटाया जा रहा है और केवल एक ही परिवार के बारे में बढ़ा चढ़ाकर बताया जा रहा है। इसके पहले भी उन्होंने घोषणा की कि स्वतंत्रता संग्राम  और राष्ट्र निर्माण  में  महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले  महान व्यक्तियों को  कांग्रेस  विस्मृत कर रही है। भाजपा उन महान व्यक्तियों का सम्मान करेगी। जैसी उम्मीद थी इस पर वैसी  ही प्रतिक्रिया हुई। देशभर में भाजपा समर्थकों ने  जमकर तालियां बजाई। दूसरी तरफ कांग्रेसी भाजपा और नरेंद्र मोदी की तीखी आलोचना करते देखे गए । इस ने आरोप लगाया कि भाजपा सुभाष बोस , सरदार पटेल और अंबेडकर जैसे राष्ट्रीय प्रतीकों के साथ खिलवाड़ कर रही है।
      यह केवल संयोग नहीं है कि पटेल की मूर्ति, अंबेडकर स्मारक, पुलिस स्मारक और अब लाल किले से नेताजी का स्मरण सब भाजपा ने किया और एक ही आदमी के शासन काल में  किया। यही नहीं, इस पर रक्षात्मक रुख अपनाकर कांग्रेस ने अपना ही बुरा किया। पहली बात, कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम के इन योद्धाओं  को सार्वजनिक निगाहों से धूमिल नहीं किया होता तो भा ज पा को यह अवसर नहीं मिला होता ।दूसरी बात की राष्ट्रीय महापुरुषों पर किसी का एकाधिकार नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्वतंत्रता संग्रताम में भूमिका पर बहस व्यर्थ है।भारतीय होने के नाते इस विरासत पर उनका भी उतना ही अधिकार है जितना कांग्रेस का है। इस प्रयास को रोकने में कांग्रेस ने नौसिखुआ जैसा आचरण किया । मसलन उन्होंने एकता प्रतिमा का " मेड इन चाइना"  कह कर खिल्ली उड़ाई। ऐसा करके कांग्रेस ने इन महान व्यक्तियों को छोटा करने का प्रयास किया। इससे जनता में यह संदेश गया कि जो लोग नेहरू- गांधी परिवार से अलग हैं उनसे कांग्रेस विमुख है। अंततः अपनी सुविधानुसार व्यक्तित्वों को आदर देने का कांग्रेस दोपशी हो गयी । वैशे भी वर्तमान कांग्रेस 1885 में गठित कांग्रेस की स्वाभाविक वारिस नहीं है । यह कांग्रेस तो इंदिरा गांधी द्वारा तैयार एक अलग हुआ गुट  है। यह अलग बहस का विषय है कि मूल कांग्रेस समय के साथ विनष्ट हो गयी। लेकिन इससे नई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस वैध वारिस नहीं हो गयी। भा ज पा सुभाष बाबू से नही जुड़ सकती इसपर बड़े अर्थहीन तर्क दिए जा रहे हैं। मसलन यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने आई इन ए के अभियुक्तों के बचाओ के लिए भूला भाई देसाई को खड़ा किया था। लेकिन जब भाजपा ने उन्हें " कोंगी वकील" कहा कि तो कांग्रेस ने दलील दी कि वे किसी पार्टी के नहीं बल्कि पेशेवर वकील थे। यकीनन सुभाष बाबू कार्यालयी कार्य के लिए उर्दू का इस्तेमाल करते थे लेकिन एकीकृत भारत ही वे चाहते थे। उन्होंने कभी भारत के बटवारे की बात नहीं कही और ना मानी। इस पर कोई बहस महीन है कि सुभाष बाबू या उनकी आई इन ए के साथ आज़ादी के पहले कैसा बर्ताव हुआ बल्कि बात तो यहां है कि सुभाष बाबू या पटेल या अम्बेडकर के बारे  में इतिहास में जो जिक्र है वह 1947 के बाद का लिखा गया इतिहास है।  कांग्रेस अभी भी इस मामले को भा ज पा और मोदी के कोण से देख रही है। भारत का जनजीवन " परिवार" से बहुत आगे चला गया है और वह किसी एक परिवार से घेरा नहीं जा सकता है। मोदी और भाजपा की कामयाबी यह है कि उसने अपने बंद दरवाजों को खोल दिया है। इसके साथ ही सोशल मीडिया ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बातें एकतरफा नहीं हो सकतीं। अब दिल्ली समाचारों को नियंत्रित नहीं कर सकती।
  समय आ गया है कि कांग्रेस हक़ीक़त को स्वीकार करे और खुद को भारत की जनता से बड़ा ना समझे।  

0 comments: