सरकारी नीति पर कॉरपोरेट हमला है आधार
अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड पर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया । उसे खूब सराहा भी गया । लेकिन फैसले को ध्यान से देखें उसमें दोहरा मापदंड दिखाई पड़ता है । इसमें अमीरों के लिए कुछ नहीं है। देश का सबसे बड़ा वर्ग ,मध्यवर्ग बिल्कुल मुक्त है। उसे केवल पैन कार्ड में आधार को लिंक कराने के अलावा कोई बाध्यता नहीं है। बस गरीब वंचित रह गए हैं। क्योंकि आधार की पीड़ा और उसके चलते होने वाला दुख गरीबों के लिए अभी भी कायम है। क्योंकि, हर सरकारी लाभ के लिए चाहे वह कितना भी कम क्यों न हो, आधार की जरूरत पड़ती है। अधिकांश लोगों का विचार था कि आधार ने गरीबों को ताकत दी है। इस ताकत का मतलब जो हो, लेकिन उसे मुक्ति बहुत कम मिली है। उल्टे उसको बहुत क्षति उठानी पड़ रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो है कि आधार के बगैर उसे कोई सामाजिक लाभ नहीं मिलेगा। जब आधार के माध्यम से सुविधाएं दी जाएंगी ,खासकर नगद भुगतान किए जाएंगे तो सबसे जरूरी होगा कि पहले कदम के रूप में संबंधित लाभार्थी आधार नंबर से जुड़े यानी सभी लाभ प्राप्त कर्ताओं को जोड़ा जाए। मतलब अगर आधार से पेंशन मिलती है सबसे पहले जरूरी है कि पेंशन पाने वाला उसे अपने आधार नंबर से जोड़े। बहुधा आधार दो-दो बार जोड़ना पड़ता है। मसलन , पेंशन पाने वाला पहले तो अपने आधार नंबर को पेंशन से जोड़ने की परेशानी उठाता है और उसके बाद अपने बैंक खाते को भी आधार से जोड़ना उसकी मजबूरी हो जाती है। यही बात मनरेगा में काम करने वालों के लिए भी होती है। वह जॉब कार्ड से आधार नंबर जोड़ता है फिर बैंक खाते से भी जुड़वाता है। आधार नंबर को जोड़ना बढ़ा उबाऊ काम है। क्योंकि जब भी एक नई योजना लागू होती है तो इसे उस योजना से जोड़ना पड़ता है। इसमें सबसे कठिन स्थिति तब आती है जब अल्टीमेटम आता है कि एक निश्चित तारीख तक आधार नंबर को जुड़वा दिया जाए। अल्टीमेटम वाला तरीका सुविधा प्राप्त वर्ग के लिए बहुत ज्यादा कारगर नहीं होता। क्योंकि, यह वर्ग निश्चित तारीख का विरोध करता है या उसे नजरअंदाज कर देता है और उनकी सुविधा के लिए तारीख लगातार बढ़ती रहती है या उसे समाप्त कर दिया जाता है। यह उद्देश्य को व्यर्थ करना होता है । सरकार अल्टीमेटम देती है कि सिम कार्ड लेने के लिए या बैंक खाते से जोड़ने के लिए एक तारीख तय है । इसे लेकर मध्य वर्ग में गुस्सा भी उठता है। हाल के फैसले से यह मुश्किल खत्म हो गई।
जहां तक गरीबों का सवाल है तो उनके लिए अल्टीमेटम वाला तरीका अच्छी तरह काम करता है। जो लोग इस डेड लाइन को नहीं मानते या पिछड़ जाते हैं तो उनका नाम सूची से काट दिया जाता है। इस तरीके से आमतौर पर गरीब लोग खुद को वंचित महसूस करते हैं । वैसे भी पेंशन या राशन कार्ड या बैंक खाते को आधार कार्ड से जोड़ना सरल नहीं है। क्योंकि आमतौर पर लोग नहीं जानते यह क्या करना होता है और कैसे करना होता है। गरीबों को इसके लिए रिश्वत देनी पड़ती है और इसके बाद भी आमतौर पर डाटा एंट्री करते समय गलतियां भी हो जाती हैं। अगर गलती नहीं भी होती है तो आधार में दिए गए विवरण उसके जॉब कार्ड में या राशन कार्ड में दिए गए विवरण से मिलते नहीं है और फिर शुरू होती है मशक्कत। इस मुश्किल पर विचार किए बगैर सरकार ने घोषणा कर दी के जितने नाम हटाए गए हैं वह सब जाली थे। कारण है कि सभी राज्यों में बड़े पैमाने पर पेंशन, राशन कार्ड और जॉब कार्ड रद्द किए गए। छात्रवृत्ति जैसी अन्य सुविधाओं के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ । यहां तक की मातृत्व लाभ के सामने भी कठिनाई पैदा हो गई और वह अटका पड़ा रहता है।
इससे भी बड़ी कठिनाई तो उस समय आती है जब आधार बायोमेट्रिक प्रमाणित करना होता है। हर महीने राशन की दुकान पर आधार के साथ-साथ अंगूठा लगाना भी जरूरी होता है। इसके लिए हर दुकान पर उस मशीन का इंटरनेट से लगातार जुड़ा रहना और सही सही अंगूठे के निशान कायम रहना सबसे जरूरी है। यह तरीका बिल्कुल सही नहीं है । इस व्यवस्था में बहुत से गरीब राशन का लाभ प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। इधर सरकार अड़ी हुई है कि आधार को राशन से जोड़ना ही होगा । एक गरीब को पेट भरने के लिए भी आधार की अनिवार्यता है।
मिसाल और भी हैं, जैसे बैंकिंग व्यवस्था। इसके कई पक्ष हैं। जैसे एक हवा उठी थी कि आधार से जुड़े लोग मिनटों में बैंकों में जन धन योजना के खाता खोल सकते हैं। सच तो यह था कि इनमें से बहुत सारे खाते बायोमेट्रिक प्रमाणिकता के बगैर खोले गए थे। यहां तक कि अप्रामाणिक विवरणों के आधार पर भी खाते खोल दिए गए थे । जब के वाई सी लागू हुआ तो गरीबों के लिए एक नया दुख पैदा हो गया । के वाई सी के बगैर उन्हें भुगतान का लाभ नहीं मिलता और उनके खाते बंद हो गए या उनमें लेन-देन रोक दिए गए। इससे आम आदमी का बैंकिंग प्रणाली पर से भरोसा टूट गया।
फिर भी यह कहना गलत होगा कि आधार सभी तरह के लाभकारी योजनाओं के लिए व्यर्थ है। इस के कुछ सृजनात्मक उपयोग भी हैं। आधार को जारी हुए 10 वर्ष हो गए इस अवधि में बहुत कम देखने को मिला है कोई बहुत ज्यादा सुविधाएं गरीबों को मिलीं हैं लेकिन आधार से जुड़ी जो बचत व्यवस्था है उसमें जांच-पड़ताल नहीं होती है। यह एक लाभ है।
दुर्भाग्यवश यह कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आधार की व्यवस्था करने वाले बड़े लोगों की सांठगांठ से प्रभावित है। यह बड़े लोग सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री की औलाद हैं। भारत पर इनकी पकड़ बहुत ज्यादा है। इनकी महत्वाकांक्षा रही है कि आधार को एक बड़े प्लेटफार्म के रूप में तैयार किया जाए जिससे कई तरह के उपयोग जुड़े रहें। इनमें से अधिकांश उपयोगों का जनकल्याण से कोई लेना देना नहीं है । निसंदेह ऐसे लोगों का यकीन है कि आधार गरीबों को बल देता है। लेकिन अंततोगत्वा इसकी पृष्ठभूमि में लाभ कमाने की मंशा छिपी रहती है और कुछ नहीं। यह सरकारी नीति पर कारपोरेट हमला है।
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