नौजवानों में बढ़ती नाउम्मीदी खतरे की घंटी
कहां तो तय था चरागाँ हर घर के लिए
यहां रोशनी मयस्सर नहीं है शहर भर के लिए
2014 में जब मोदी जी चुनाव प्रचार कर रहे थे उन्होंने देश के नौजवानों में एक उम्मीद जगाई कि सबको काम मिलेगा। लेकिन काम मिलना तो दूर नौजवानों में इतनी ज्यादा नाउम्मीदी भरती जा रही है उनमें से अधिकांश लोगों ने काम खोजना ही बंद कर दिया है। नौकरी खोजने आ ही नहीं रहे हैं। लोगों के काम खोजने के लिए आने की दर को लेबर पार्टिसिपेशन रेट कहते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि नोटबंदी के बाद देश में लेबर पार्टिसिपेशन रेट बहुत गिर गई है और इसके सबसे ज्यादा शिकार महिलाएं हो रही हैं। एक आंकड़े के मुताबिक इस महीने रेलवे में एक लाख 20 हजार नौकरियां निकली थीं जिन के लिए 2 करोड़ 37 लाख लोग लाइन में थे। सोच सकते हैं कि नौकरी का संकट कितना बड़ा है। यह तो इसका एक पक्ष हुआ।
आंकड़े बताते हैं किस देश में इन दिनों लेबर पार्टिसिपेशन रेट 43 प्रतिशत है जबकि यह कम से कम 50 प्रतिशत के आसपास होना चाहिए। वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा 65% है। यानी, हमारे देश में यह 45% से भी कम है । इसके बाद होती है बेरोजगारी की बात । जो अभी लगभग 6.7% है। दोनों आंकड़ों की समीक्षा जरूरी है। हमारे यहां 43% लोग ही काम खोजने निकलते हैं इनमें केवल 7% लोगों को भी काम मिल पाता है। नोटबंदी के पहले लेबर पार्टिसिपेशन रेट 47 48% था । यानी, नोटबंदी के बाद यह दर 5% घटी है जो बहुत बड़ी बात है। जरा गौर करें 45 करोड़ लोगों में से 5 प्रतिशत नौजवानों ने नौकरी ढूंढना बंद कर दिया। उनकी निराशा का अंदाजा लगाया जा सकता है। इनमें जो लोग हटे हैं उनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा है। महिलाओं में कुंठा की पहचान "मी टू आंदोलन" के रोजाना बढ़ने से भी होती है। ऐसा पहले भी हुआ है। चूंकि महिलाएं बहुत कम पढ़ पाती थीं इसलिए बाहर उन्हें काम नहीं मिलता था और वह घर पर रहकर बच्चों की परवरिश कर उन्हें पढ़ाती थी। अभी हाल में जो देखा जा रहा है कि पुरुष समुदाय चाहता है कि महिलाएं घर पर ही रहें और पुरुष बाहर काम करें । क्या विडंबना है कि घर के बाहर पकौड़े बेचने का काम भी रोजगार में शामिल कर लिया गया है । अपने खेत में काम करने वाला भी किसी रोजगार में लगा माना जा रहा है । लेकिन जो लोग नौकरी खोजते ही नहीं तो कैसे मान लिया जाए कि वे जॉब मार्केट में हैं। भारत दुनिया का सबसे जवान देश है इसलिए यहां सबसे ज्यादा नौजवान बेरोजगार भी हैं। स्टेट ऑफ वर्क इन इंडिया 2018 की रिपोर्ट का कहना है कि बेरोजगारों में 16% जवान हैं और जिनके पास काम है वह बहुत कम कमाते हैं । 82% मर्द और 92% औरतें 10 हजार रुपए प्रतिमाह पर गुजारा करते हैं । हैरत है कि इस देश में विकास बिना रोजगार बढ़ाए हो रहा है। नौजवानों के पास नौकरी नहीं है इसलिए वह घर में बैठे हैं यह गंभीर चेतावनी का विषय है।
आईएलओ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 12 करोड़ लोग बेरोजगार हैं और विगत 3 सालों में इसमें जबरदस्त इजाफा हुआ है। अगर आईएलओ की ना माने तब भी भारत सरकार के श्रम मंत्रालय रिपोर्ट के मुताबिक बेरोजगारी की दर पिछले 5 साल में सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है । हर रोज 550 नौकरियां कम हुई है और स्वरोजगार के मौके भी घटे हैं। आईएलओ की रिपोर्ट में यह स्पष्ट हुआ है 2019 आते-आते देश के तीन चौथाई कर्मचारियों और पेशेवर लोगों की नौकरी पर खतरा मंडराने लगेगा। रिपोर्ट बताती है देश में 53.4 करोड लोग काम करने वाले हैं जिनमें 39.8 करोड़ लोगों को योग्यता के मुताबिक न काम मिलेगा ना नौकरी।
यह कैसी हकीकत है जिनसे हमारे नेता और खुद को मुल्क का नियंता समझने वाले लोगों ने आंखें मूंद रखी है। निराशा का आलम यह है कि 21वीं सदी में एक लाख 54 हजार 751 नौजवान खुदकुशी कर चुके हैं । इस तरह से निराश होने का बड़ा खतरनाक परिणाम होता है । बेरोजगारी को कम किए बगैर विकास का दावा झूठा होता है या अन्याय पूर्ण । पढ़े लिखे बेरोजगार युवा आज स्थाई रोजगार की तलाश में हैं। अगर किसी को किसी निजी संस्थान में काम मिल भी गया असुरक्षा हमेशा बनी रहती है ।सरकारी उद्यमों को पीपीपी के रूप में बदल देने से संदेह और बढ़ रहा है ।सरकार हल क्या कर रही है
कहीं वह अपनी जिम्मेदारी से कदम तो पीछे नहीं हटा रही है
क्या सवाल यह है आखिर यह बेरोजगार नौजवान जाएं कहां क्या करें ।योजनाएं कागजों पर ही बनती हैं। नौकरियों पर पहले से ही रोक थी अब खाली पदों को भरने पर रोक के कारण बढ़ती बेरोजगारी की आग और धड़कने लगी सरकार देश के विकास की बात करती है अगर इन नौजवानों को काम नहीं मिला यह खाली बैठे लोग किसी दिन भी विस्फोटक का काम कर सकते हैं। नाउम्मीदी बहुत खतरनाक होती है और यह विकास के लिए तो बहुत ही घातक है।
ना हो कमीज तो घुटनों से पेट ढक लेंगे
यह लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए
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