जलवायु नियंत्रण नहीं हुआ तो देश में हिंसा बढ़ेगी
एक अभूतपूर्व घटना है यह। हॉलैंड की एक अदालत ने इस महीने के दूसरे हफ्ते में देश की सरकार को आदेश दिया है जिन गैसों से तापमान बढ़ता है उनमें बड़े पैमाने पर कटौती करें और यह कटौती 2020 तक यानी अगले 2 साल में पूरी हो जानी चाहिए । यही नहीं 2015 में भी एक निचली अदालत ने इसी तरह का एक फैसला सुनाया था। अदालत ने यह भी कहा था कि, सरकार इस दिशा में जो काम कर रही है उससे ज्यादा काम करने की जरूरत है । यह दोनों मुकदमे वहां के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने किए थे और पर्यावरण को लेकर सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया था। ऐसे किसी मामले में सरकार का पराजित होना पहली घटना है । यही नहीं यूरोपीय संघ के अलग-अलग देशों के 10 परिवारों ने संघ को अदालत में घसीटा है। आरोप लगाया है कि संघ जलवायु परिवर्तन के रोकथाम के लिए समुचित प्रयास नहीं कर रहा है। याचिकाकर्ता कुछ ऐसे काम से जुड़े हैं जिनका मौसम और जलवायु से सीधा संबंध है। इनमें एक किसान है जिसकी जमीन बंजर हो गई है। एक मधुमक्खी पालक है। इसकी शिकायत है की मधुमक्खियां पहले की तरह शहद नहीं देती।
अगले महीने के अंत में दुनिया भर के शासनाध्यक्ष जलवायु रक्षा के संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन के लिए पेरिस में मिलेंगे। इस तरह का पिछला शिखर सम्मेलन 2015 में हुआ था। उसमें जो लक्ष्य तय किए गए थे उन्हें पूरा नहीं किया जा सका है । हालात इतने गंभीर हैं कि संयुक्त राष्ट्र के अंतर शासकीय पैनल के वैज्ञानिकों ने गत 8 अक्टूबर को नया आकलन प्रस्तुत किया है। जिसके अनुसार 21वीं सदी के अंत तक तापमान मैं 1.5 डिग्री से ज्यादा वृद्धि नहीं होनी चाहिए । जबकि बीसवीं सदी के आखिर तक औसत वैश्विक तापमान लगभग 1 डिग्री बढ़कर 15 डिग्री हो चुका है। इस आकलन के मुताबिक वर्तमान दौर में हर सदी में औसत वैश्विक तापमान 0. 17 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रहा है। अगर यही औसत जारी रहा तो 21वीं सदी के अंत तक तापमान एक 1. 36 डिग्री बढ़ चुका रहेगा। 21वीं सदी खत्म होने में महज आठ दशक बाकी हैं और बीसवीं सदी के दौरान तापमान लगभग 1 डिग्री बढ़ चुका है। अब हमारे पास केवल 0.5 डिग्री सेल्सियस की गुंजाइश बची है । पैनल का आकलन है कि अगर इस स्थिति पर लगाम नहीं लगाई गई तो वैश्विक सदी के अंत तक 3 से 4 डिग्री तक बढ़ जाएगा, जिसके भयंकर परिणाम होंगे।
स्टॉकहोम अंतरराष्ट्रीय शांति अनुसंधान संस्थान (सीपरी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन से भारत में नक्सलवाद तेजी से फैल सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में जलवायु परिवर्तन बेहद हिंसक परिणाम हो सकते हैं। ऐसे में भारत ,पाकिस्तान ,बांग्लादेश ,म्यांमार और अफगानिस्तान में अति हिंसक ताकतें सिर उठा सकती हैं । रिपोर्ट में भारत के बारे में कहा गया है कि इन परिस्थितियों में नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में हथियारबंद विद्रोह को बढ़ावा मिलेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि संसाधनों में कमी के कारण सभी क्षेत्रों में विषम परिस्थितियां बन सकती हैं ।जलवायु परिवर्तन अगर इसी तरह होता रहा तो कुछ समय के बाद संसाधन सीमित हो जाएंगे। उन पर वर्चस्व के लिए और उनके बंटवारे के लिए हिंसा आरंभ हो जाएगी। ऐसे में विकासशील देशों में कई विद्रोही गुट अपने फायदे के लिए इसका उपयोग करेंगे। आशंका उन देशों में ज्यादा है जहां अधिकतर आबादी कृषि पर निर्भर है। विद्रोही गिरोह ऐसे समय में हिंसा का सहारा लेकर किसानों को उनके खेतों से बेदखल कर सकते हैं ताकि अपने लिए भोजन की व्यवस्था सुनिश्चित कर सकें। दूरदराज के गांवों में ऐसी आशंका ज्यादा है। ऐसी स्थिति में लड़ाकों को भर्ती करना भी सरल हो जाएगा।
यही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में हालत खराब होने से लोग शहरों की और पलायन करेंगे और वहां भी संसाधन का अभाव हो जाएगा। भीड़ बढ़ती जाएगी जिससे सामाजिक असमानता बढ़ेगी। गरीबों और जरूरतमंद लोगों का शोषण बढ़ेगा। इसके परिणाम स्वरूप राजनीतिक अस्थिरता घटेगी। लोगों में विद्रोहियों के प्रति समर्थन बढ़ेगा। हालात तेजी से बेकाबू हो जाएंगे।
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