CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Sunday, October 7, 2018

मोदी जी ने राहुल को नेता बना दिया

मोदी जी ने राहुल को नेता बना दिया

भाजपा ने अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं। ऐसे में यह पूछना बड़ा मुफीद है कि मोदी सरकार की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है? ईवीएम का बटन दबाने से पहले उनकी किस बात को जनता याद रखेगी और उस आधार पर उन्हें वोट देने का फैसला करेगी? 2014 से भारत की जनता लगातार यह देखती आ रही है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अर्थशास्त्री नहीं हैं। समाजशास्त्री नहीं हैं, नौकरशाह भी नहीं रहे हैं। वर्ना, जनता अर्थशास्त्र के संदर्भ में उनके बारे में सोचती, समाज सुधार के बारे में उन पर सवाल उठाती या फिर प्रशासनिक सुधारों के बारे में बात होती।  हो सकता है इन तीनों को लेकर कर उनके अपने दावे भी हों। उनकी सरकार ने उनकी सफलताओं और उपलब्धियों की बहुत बड़ी फेहरिस्त पेश की है। उस फेहरिस्त पर बात  उचित नहीं है।
जो सबसे बड़ी बात है वह है कि विगत 25 वर्षों में नरेंद्र मोदी की सरकार सबसे ज्यादा यथास्थितिवादी और हर बात में दखल देने वाली सरकार है । बेशक ऐसी बात मोदी के भक्तों को नहीं पचेगी ,लेकिन अगर आप पिछले 2 दिनों में पेट्रोल डीजल पर सरकार की गलतियों को देखेंगे तो लगेगा कि यह बात सही है। मोदी जी ने बिना सोचे समझे एक झटके में जिस तरह नोट बंदी की थी उसी तरह एक ऐसे आर्थिक सुधार को खत्म कर दिया जिसे ठीक करने में कई वर्ष लगे थे। मोदी जी ने डीजल- पेट्रोल की कीमत में भारी वृद्धि के कारण जनता की नाराजगी से डरकर सहसा सेंट्रल एक्साइज में डेढ़ रुपए प्रति लीटर घटा दिए। इस कदम से सरकार को 31 मार्च 2019 तक कम से कम दस हजार करोड़ रुपए की आमदनी से हाथ धोना पड़ेगा। इसके बाद उन्होंने एक और फैसला किया। सरकारी तेल कंपनियों तेल की कीमत में एक रुपये प्रति लीटर कटौती करने का हुक्म दिया। सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दाम बाजार दर से किये जाने के एक बड़े आर्थिक सुधार को खत्म कर दिया। नतीजा क्या हुआ ? गुरुवार को शेयर बाजार लुढ़क गया और निवेशकों को 48 हजार करोड़ का झटका लगा। यही नहीं, सरकार को भी 55 हजार करोड़ की चोट पहुंची। यह एक बड़ी अर्थशास्त्रीय भूल थी। लेकिन मोदी जी अर्थशास्त्री तो हैं नहीं।
       मोदी जी दरअसल एक नेता हैं और नेता के मापदंड पर उनके बारे में बात होनी चाहिए। नेता के रूप में उनके दो दायित्व थे । पहला अपनी पार्टी को जिताना और दूसरा विपक्षी दल को ,खासकर मुख्य विपक्षी दल को, धूल चटाना। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी जी ने जो अभियान चलाया उसे देख कर तो लगता है कि नेता के रूप में उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया है और देश के प्रधानमंत्री भी बने। जैसे ही देश के प्रधानमंत्री बने उनकी जिम्मेदारियां बदल गयीं, खासकर राजनीतिक जिम्मेदारियां तो बिलकुल बदल गईं। जहां उनका दायित्व था ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना अब उनकी जिम्मेदारी बन गई है कि वह कम से सीट गवाएं और इसके फलस्वरूप उनकी बातों का राजनीति का असर भी बदल गया है। साथ ही जिस कांग्रेस को वे अक्सर निशाने पर उस में भी बदलाव आया है। अब उसके नेता अपरिपक्व समझे जाने वाले राहुल गांधी हैं। जिन्हें मोदी जी के समर्थक मजाक का पात्र बनाते हैं और खारिज करते रहते हैं। लेकिन गुजरात चुनाव में राहुल गांधी ने यह दिखा दिया कि उनमें  भी कुछ दम है और इसके बाद से ही लोगों की सोच उनके बारे में बदल गई । अब राहुल गांधी को हंसी में नहीं उड़ा सकते। मोदीजी  की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि राहुल गांधी जैसे आदमी को  नेता बना दिया और लोगों को राहुल की बात कभी-कभी ठीक भी लगने लगी। 2008 से 2014 के बीच मोदीजी के साथ इसके विपरीत हुआ था और उस विपरीत होने में जनसंपर्क अभियान ने भी बहुत मदद पहुंचाई थी। इस अभियान से ऐसा लग रहा था कि मोदी एक मसीहा हैं और देश में जो कुछ भी गलत हो रहा है उसे ठीक कर देंगे। दिलचस्प बात यह है कि जिस तरह उस समय मोदी जी को अपनी छवि बदलने का लाभ मिला था वही लाभ आज राहुल गांधी को मिल रहा है।  रूसो का का मानना कि विपक्षी दल की छवि तभी सुधरती है जब सत्ताधारी दल गलतियां करता है। मोदी जी से कई छोटी बड़ी गलतियां हुईं हैं और इसका लाभ राहुल के जनसंपर्क अभियान में लगे लोग उठा रहे हैं। लेकिन हकीकत यह है कि राहुल बदले नहीं है। वह वही राहुल हैं। फर्क बस इतना ही है कि जैसे 2014 के पहले हम यह नहीं जानते थे कि विभिन्न मसलों के बारे में मोदी जी क्या सोचते हैं उसी तरह हम यह भी नहीं जानते कि उन पर राहुल जी की क्या राय है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कभी इस पर बात ही नहीं की। राहुल ने अपने दिमाग में बैठा लिया है  कि उनके पीआर में लगे उनके लोग  इतना वोट दिला देंगे कि कांग्रेस भाजपा को चुनौती देने के काबिल हो जाएगी । 2013 -14 में अपने प्रचार अभियान के दौरान मोदी जी ने बड़ी सफाई से लोगों को छोटे-छोटे मसलों से निपटने की योजना बताई थी और  यह विश्वास दिलाया था बाकी के बारे में भी वे आगे बताएंगे ।  इसके अलावा उस समय यूपीए के खिलाफ एक लहर थी। लेकिन इस बार वह लहर नहीं दिख रही है। राहुल में जो सबसे बड़ी कमी है वह है उनमें  आक्रामकता की भारी कमी। उनके मनोविज्ञान को देख कर नहीं लगता कि वे चुनाव तक इस कमी को दूर कर सकेंगे।

0 comments: