युद्ध घोष आरंभ हो चुका है
कैसी मशालें लेकर चले तीरगी में आप
जो रोशनी थी वह भी सलामत नहीं रही
चुनाव अभी कुछ दूर हैं। लेकिन चुनाव का युद्ध घोष आरंभ हो चुका है। कुछ दिनों के बाद हमारे सामने चुनावी दंगल होंगे। अलग-अलग रूप में राजनीतिक विश्लेषक हमें बताएंगे कि कौन कहाँ कितना भारी पड़ रहा है। यह स्थिति ठीक वैसे ही होगी जैसी महाभारत की थी । दृष्टिहीन कुरु श्रेष्ठ दिव्य दृष्टि प्राप्त संजय से पूछते हैं कि रण में किस पक्ष की स्थिति क्या है और संजय उन्हें बताते हैं । यही हालत जनता की होगी । राजनीतिक विश्लेषक जनता को बताएंगे किस-किस की क्या स्थिति है और वह किस पर कितना भारी पड़ेगा ।तरह-तरह आंकड़े पेश किए जाएंगे। लेकिन इस पर ध्यान कौन देता है? यह वक़्त भी निकल जाएगा। जो चीज कायम रहेगी वह है अर्थव्यवस्था तथा कानून की व्यवस्था को कायम रखने सरकार की नाकामी। निर्दोष नागरिक, यहां तक कि उच्च मध्यम वर्ग के भी लोग सुरक्षित नहीं हैं। हाल में उत्तर प्रदेश की दबंग पुलिस के हाथों एप्पल के एक अधिकारी की हत्या इसका स्पष्ट उदाहरण है । इसमें जो सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात है वह है कि सरकार अपराधी को बचाने की कोशिश करती दिखती है। इस मामले में जो पहला एफ आई आर दर्ज हुआ था वह किसी अज्ञात व्यक्ति के नाम था जिसका कोई पता भी नहीं था। यही नहीं, दोषी पुलिस वाले को बहुत दिनों के बाद निलंबित किया गया और उस दोषी पुलिसकर्मी के साथी उसे बचाने में लगे रहे। यह प्रक्रिया लगभग जनता के जख्म पर नमक छिड़कने जैसी थी । हो सकता है दोषी पुलिसकर्मी को बर्खास्त कर दिया जाए लेकिन जनता के मन में एक बात तो घर कर गई कि मामला शुरू में ही कमजोर कर दिया गया। एक तरफ तो हाल में "पुलिस कोमोमोरशन डे" के दिन एक नारा देखने को मिला कि "हम रोज अपराध से लड़ते हैं आज अपने आंसुओं से लड़ रहे हैं", दूसरी तरफ पुलिस दबंगई करती नजर आ रही है । यह केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं है । जिन लोगों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है या जिनके सिर पर राजनीतिज्ञों के हाथ हैं वह बिना खाकी में भी दबंगई करते दिखते हैं ,चाहे बात हरियाणा की हो, राजस्थान की हो ,पश्चिम बंगाल की हो या केरल की हो लेकिन लेकिन हर राज्य में ऐसा होता दिख रहा है । जम्मू कश्मीर में गुमराह नौजवान आतंकवादी बनते जा रहे हैं। खूनी असहिष्णुता समाज के अधिकार प्राप्त वर्ग में व्याप्त होती जा रही है और ऑनर किलिंग से मॉब लिंचिंग तक की घटनाएं हमें अक्सर सुनने को मिलती है। ऐसी घटनाएं एक तरह से छूत की बीमारी की तरह हैं एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक और इससे पूरे समाज तक फैलती जा रही हैं। जो लोग हम से दूसरी तरह से खाते पहनते हैं वह हमारे निशाने पर हैं।
पक गई है आदतें बातों से सर होंगी नहीं
कोई हंगामा करो ऐसे गुजर होगी नहीं
कांग्रेस पार्टी के विधि वेत्ता सर्वोच्च न्यायालय की मेधा पर उंगली उठाने में लगे हैं। खास करके तब जबकि सर्वोच्च न्यायालय का कोई फैसला उनके मनमाफिक नहीं आता है। वे इस बात की चिंता नहीं करते कि इसका क्या असर होगा । वे सोचते तक नहीं हैं कि चुनाव आयोग, महालेखा परीक्षक जैसी संस्थाओं की आलोचना का दूरगामी परिणाम क्या होगा? पार्टी अध्यक्ष अपनी बोलचाल की भाषा पर बेशक इतराते हों लेकिन शानदार फिल्मी डायलॉग मूल बात से दूर रहते हैं । "युवराज जोकर है" का जवाब बेशक "चौकीदार चोर है" से दिया जा सकता है ,लेकिन इससे समाज में जो लफ्फाजी फैल रही है उसका शमन कैसे होगा- इस पर कोई विचार नहीं कर रहा है। भा ज पा व कांग्रेस में खास किस्म का अभिमान बढ़ता जा रहा है । कांग्रेस अपनी लगातार पराजय से सबक नहीं सीख पा रही है। मायावती और अखिलेश अपनी अपनी डफली बजाते नजर आ रहे हैं । कहीं कोई सौम्यता यहां अनुशासन नहीं दिखता। हमारे देश में चुनाव की स्थिति एक दिवसीय क्रिकेट की तरह हो गई है जिसका कोई अर्थ नहीं सिर्फ दर्शक मजा लेता है। किसी को आदर्श की चिंता नहीं है । केवल सभी देखते हैं कहां कौन खड़ा है और किस की छवि कितनी बड़ी है । बिना यह जाने यह सब कठपुतली हैं जिसकी डोर ऐसे लोगों के हाथ में है जो अतीत के बंदी हैं । भविष्य की दृष्टि की बात तो भूल ही जाएं। जो अपने संगठन में सर्वोच्च माने जाते हैं वह वर्तमान के तक़ाज़ों से भी संबद्ध नहीं दिखते हैं।
आदमी होंठ चबाए तो समझ आता है
आदमी की छाल चबाने लगे यह तो हद है
जरा अर्थव्यवस्था की हालत देखिए हमारे वित्त मंत्री एक गलती को दूसरी से छिपाने की कोशिश में लगे हैं । किसी भी प्रश्न का उनका जवाब है मुस्कुराहट और तीखे शब्द। शिकायत क्यों ? सब जानते हैं कि अर्थव्यवस्था या अर्थशास्त्र एक विज्ञान है और इसके नियम बेहद बोझिल हैं । एक दिन पेट्रोल की कीमत बढ़ती है दूसरे दिन पलक झपकते इसे एडजस्ट कर दिया जाता है। बैंकों में घाटा बढ़ता जा रहा है और जनता को तरह तरह के आंकड़े से भरमाया जाता है। जनता मोदी जी के कैबिनेट में नवरत्नों के बारे में सवाल उठाने लगी है । यह तो आगे चलकर पता चलेगा कि ताज में नवरत्न कम हैं। प्रधानमंत्री अपने कंधे पर भारी बोझ लेकर चल रहे हैं । जो लोग कांग्रेस का मखौल उड़ाते हैं वे मोदी जी के करिश्मे पर विश्वास करते हैं । सब लोग चुनाव का इंतजार करते नजर आ रहे हैं उसके पहले दिसंबर के मध्य में कुछ राज्यों में विधानसभाओं के चुनाव के परिणाम आएंगे। उसे लेकर तरह तरह की गणना आरंभ हो जाएगी। इस शोर के बीच हम महत्वपूर्ण मसलों को भूल जाएंगे । हमारी पीड़ा ऐसे ही कायम रहेगी चाहे जिसकी भी सरकार बने।
जम्हूरियत वह तर्जे हुकूमत है
जहां बंदे गिने जाते हैं तौले नहीं जाते
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