लंगोटी वाले के नाम पर टोपी वाले की कमाई
अभी हाल में किसानों का भयानक आंदोलन हुआ और गांधी जयंती के दिन सरकार और भारत के किसान आमने-सामने आ गए। सरकार ने किसानों की पीड़ा को दूर करने के लिए कोई ऐसा कदम नहीं उठाया है जो लगे कि सचमुच कुछ हो रहा है। आज किसानों की जो पीड़ा है वह कई तरह की है। सरकार कहती है हम किसानों को खाद और बीज के लिए कृषि ऋण देते हैं । लेकिन रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि 2016 में सरकारी बैंकों द्वारा 78,322 खातों में 1लाख 23हज़ार करोड़ रुपए डाले गए। यह रुपए कुल कृषि ऋण के 18.10 प्रतिशत हैं जो कि कर्ज़ पाने के लिए दिए गए आवेदनों के महज 0.15% हैं। वहीं 2. 57% खातों में 31.57 प्रतिशत कृषि ऋण दिए गए। केंद्र सरकार ने 2014 -15 में 8.30 लाख करोड़ कृषि ऋण देने की घोषणा की थी और 2018 - 19 में इसे बढ़ाकर 11 लाख करोड़ कर दिया गया। लेकिन रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं इस ऋण का बड़ा हिस्सा कुछ चुनिंदा लोगों को दिया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह ऋण कृषि व्यापार में लगी कंपनियों और उद्योगों को दिया जा रहा है । 2016 में सरकारी बैंकों द्वारा 5 करोड़ से ज्यादा खातों में 6लाख 82हज़ार करोड रुपए कर्ज के रूप में दिए गए ।
किसानों का मानना है कि कर्ज देने और उसे लौटाने के लिए जो समय तय किया गया है वह सही नहीं है । दूसरी तरफ, सरकार बड़ी कंपनियों को किसान बना कर करोड़ों रुपए का लोन दे रही है। इस देश में किसान मजाक बनकर रह गए हैं ।आंकड़े बताते हैं हर साल खेती के नाम पर करोड़ों रुपए लोन दिया जा रहा है । उदाहरण के लिए देखें 2015 में 73हज़ार 262 खातों में 25हज़ार करोड़ से ऊपर कर्ज दिए गए जबकि 2016 में खातों की संख्या 78हज़ार 322 पहुंच गई दिन में 1लाख 23हज़ार 481 करोड़ रुपए डाले गए। यानी हर खाते में औसतन डेढ़ करोड़ रुपए बतौर कर्ज़ डाले गए । 2007 में कृषि ऋण पाने वाले खातों की संख्या 24हज़ार 729 थी और 9 साल में इनकी संख्या 3 गुना बढ़ गई। 2014 में इस तरह के सबसे ज्यादा कर्ज दिए गए । इस वर्ष 77हज़ार 795 खातों में 1लाख24हज़ार517 करोड़ रुपए बतौर कर्ज दिए गए । एक तरफ किसानों की दशा बिगड़ती जा रही है और दूसरी तरफ सरकार उनके कल्याण के नाम पर दूसरों को रुपए बांट रही है। किसानों के नाम पर पूंजीपतियों को फायदा मिल रहा है । हालात यह हैं 2-2 एकड़ वाले किसान बिना किसी मदद के कराह रहे हैं और बिना जमीन वाले सेठ करोड़ों रुपए के कर्ज उठाकर धंधा कर रहे हैं। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार 2016 में 615 खातों में 95 करोड़ से ज्यादा रुपए कर्ज के रूप में दिए गए। 5 करोड़ से लेकर 25 करोड़ तक के ऋण में भारी वृद्धि हुई है। 2016 में 2,396 खातों में 5 करोड़ से 25 करोड़ तक के कृषि ऋण डाले गए। अगर यह सारी रकम को जोड़ दिया जाए तो यह राशि 17,127 करोड़ होती है। इसका मतलब है कि 2396 खातों में औसतन 7 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम डाली गई। यानी देश के 2,396 किसानों को 77 करोड़ रुपए दिए गए । क्या इतने बड़े किसान हैं भारत में ?
बताते हैं कि नियम है कि बैंकों को कुल लोन का 18% हिस्सा कृषि ऋण के रूप में देना होता है ।इसे प्रायरिटी सेक्टर लेंडिंग कहते हैं। इसमें बड़ी कंपनियों को कर्ज़ देख कर बैंक अपना कोटा पूरा कर लेते हैं । जबकि नियम यह है कि छोटे छोटे और हाशिए पर खड़े किसानों को यह कर्ज मदद के रूप में दिया जाए।
कृषि ऋण के नियम अन्य कर्ज़ों के नियमों से सरल होते हैं । स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के बाद तो यहां तक छूट मिली कि जो किसान समय पर ऋण नहीं चुका पाता है उसे 3% की छूट मिलती है। फसल ऋण पर केवल 4% से ब्याज देना होता है। अन्य कई तरह के कर्ज़ हैं जिनके ब्याज दर भी अलग-अलग होते हैं। पहले डायरेक्ट और इनडायरेक्ट लोन का एक वर्गीकरण था। जिससे पता चलता था कि कितना रुपया किसानों को और कितना रुपया कृषि व्यापार में लगी कंपनियों को दिया जा रहा है। लेकिन मोदी जी के काल में इस वर्गीकरण को समाप्त कर दिया गया। बेशक कृषि व्यापार कंपनियों को भी लोन मिलना चाहिए लेकिन किसानों के नाम पर ऐसा करना उचित नहीं है।
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