पर्यावरण की परेशानी में पानी की चिंता
परसों विश्व पर्यावरण दिवस है और इसमें सबसे ज्यादा हवा और पानी की चिंता है। हवा के दूषण में घुटते और बूंद बूंद को तरसते लोग के संदर्भ में अगर इस धारा के भविष्य का आकलन करें तो एक भयावह तस्वीर बनेगी। इसी पानी के बूंद को समन्वित और समायोजित करने के लिये मोदी जी पहली बार देश में जलशक्ति मंत्रालय का गठन किया है। इस मंत्रालय को जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई योजना को मिला कर बनाया गया है। लेकिन क्या यह मंत्रालय जल की व्यापक समस्या को हल कर सकेगा। मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में गंगा सफाई का काम पर्यावरण मंत्रालय और वन विभाग मंत्रालय से हटा कर जल संसाधन मंत्रालय को सौंपा गया था। बाद नमामि गंगे परियोजना आरम्भ हुई। मोदी जी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान लोगों से वादा किया था कि पीने के लिए साफ पानी मुहैय्या कारण सरकार की पहली प्राथमिकता होगी। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 60 करोड़ भारतीय पानी की भीषण कमी से जूझ रहे हैं। 75 प्रतिशत घरों में पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। नीति आयोग ने चेतावनी दी है कि दिल्ली , बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद सहित देश के 21 ऐसे शहर हैं जहां अगले साल तक भूजल समाप्त हो जाएगा और लगभग 10 करोड़ लोग इससे प्रभावित होंगे। यहीं आकर सवाल उठता है कि पानी के लिए एक पृथक मंत्रालय की जरूरत क्यों पड़ी। एक कारण है कि एक अलग मंत्रालय कई मंत्रालयों से संयोजन कर काम कर सकता है। मसलन , पानी के कार्यों से जुड़े कई मंत्रालय है जैसे पेयजल और स्वच्छता,शहरी विकास , आवास और गरीबी उन्मूलन विभाग, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण परिषद इत्यादि। नया मंत्रालय इन सबसे संयोजन कर के काम करेगा। इससे का काम जल्दी और सहजता से होगा। अब जैसे 1997 में केंद्रीय भूमि जल बोर्ड का गठन हुआ। विगत 22 वर्षों में इस बोर्ड द्वारा भू जल के स्टार के संरक्षण के प्रायासों के बावजूद लगातार भूजल का स्तर गिरता गया। मैदानी भाग के ग्रामीण इलाकों में पचासी प्रतिशत पानी की आपूर्ति भूजल स्रोतों से होती है।दो तिहाई कृषि क्षेत्र भी इसी पर निर्भर है।सदियों से इसके नियंत्रण, संरक्षण, संवर्धन इत्यादि सारी जिम्मेदारी स्थानीय लोगों पर रही है लेकिन विगत कुछ दशकों से वह सामाजिक तंत्र छिन्न-भिन्न हो गया है। हालात यह हो गए कि विगत दो दशकों से भूजल का क्षरण बहुत तेजी से हुआ है।एक जमाने में जल सेवा पवित्र कार्य अब ऐसा नहीं रहा और वैज्ञानिकता के नाम पर सब समाप्त हो गया। जल अब प्राणरक्षक नहीं रहा बोतलों में भर कर तिजारत की वस्तु बन गया। पहले कुएं , पोखर इत्यादि वर्षा के जल का संरक्षण करते थे और उससे भूजल का स्तर मुकम्मल रहता था अब वे जल स्रोत नहीं रहे। पोखरों को पार कर मकान बन गए और कुएं समाप्त हो गए । हर गांव के सैकड़ों परिवार जो कुओं पर निर्भर थे अब हैंड पम्प का पानी पीने लगे। ये नहीं समझ सके कि इनके जीवन के स्रोत सूख गए। यही नहीं प्राकृतिक जल धाराओं का हल भी बदतर है। जल संरक्षण पर काम करने वाली विभिन्न संस्थाओं की एक संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार पूरे भारत में लगभग 50 लाख धाराएं हैं जिनमें 30 लाख अकेले भारतीय हिमालय क्षेत्र में हैं। रिपोर्ट के अनुसार इन 30 लाख में से आधी बारहमासी दहारायें सूख चुकी हैं य्या मौसमी धाराओं में बदल चुकी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक हिमालय क्षेत्र के छोटे छोटे गावों को जल प्रदान करने वाली 60 प्रतिशत दहारायें सूख चुकी हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट का इसलिए भी भयानक प्रभाव दिखता है कि धाराओं का सूखना खतनाक है। देश का हिमालयी क्षेत्र लगभग 2500 किलोमीटर लंबा और 300 किलोमीटर चौड़ा है। इसमें 60 हजार गाँव हैं जिसमें 5 करोड़ लोग रहते हैं। यहां की 60 प्रतिशत आबादी जल संबंधी अपनी जरूरतों के लिए धाराओं पर निर्भर है। इन धाराओं के सूखने से इंसानी आबादी ही नहीं वैन और पशु भी प्रभावित होंगे जिससे अंततोगत्वा पर्यावरण भी बिगड़ेगा।यहीं नहीं सूखती जलधारा से जल की गुणवत्ता भी कम होगी और जल में आर्सेनिक,फ्लोराइड, सल्फेट जैसे हानिकारक रसायन भी बढ़ते जाएंगे।
ऐसी स्थिति में जल शक्ति मंत्रालय का पहला काम होगा जल का संरक्षण और इसके वर्तमान उपलब्ध जल की रक्षा जरूरी है। इस उद्देश्य के लिए मंत्रालय का पहला काम होगा कि पाकिस्तान जाने वाले पानी को रखा जाय। सिंधु जल समझौते के अनुसार भारत को रावी , व्यास और सतलज के जल का सम्पूर्ण उपयोग करने का अधिकार है। साथ ही चेनाब, सिंधु और झेलम के जल का पाकिस्तान उपयोग कर सकता है। चूंकि दोनों देशों को इसकी आज़ादी है लेकिन भारत कभी भी रावी , व्यास औरत सतलज के पानी का पाकिस्तान की ओर प्रवाह अवरुद्ध नहीं किया। पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान को मिलने वाले पानी को रखने की बार बार मांग गयी थी। लेकिन यह सहज नहीं है क्योंकि भारत को वहां बांध बनाने होंगे और बांध रातोंरात नहीं बन सकते लेकि इसे बनाया जाएगा और जल शक्ति मंत्रालय इसका बंदोबस्त कर सकता है।
देश के हर भाग में बहुत ही खतरनाक तौर पर में भू जल का स्तर लगातार गिर रहा है।मंत्रालय का सबसे पहला कर्तव्य है कि वह भू जल के गिरते स्तर को ना केवल रोके बल्कि उसे ऊपर उठाने का भी उद्योग करे साथ ही, यह आश्वस्त करे कि सबको पीने का साफ पानी प्राप्त होगा। इसके बाद मंत्रालय को जल के लिए चल रहे राज्यों के विवाद को सुलझाना होगा। पानी नहीं होगा तो विकास नहीं होगा और विकासहीनता का सामाजिक और राजनीतिक असर क्या होगा यह सब जानते हैं।
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