पाकिस्तान से कूटनीतिक युद्ध जीतना होगा
कम्युनिस्ट चीन के पहले प्रमुख चाउ एन लाई का कहना था कि सभी कूटनीति अन्य तरीकों से युद्ध की निरंतरता है। यह बयान प्रशिया के सैन्य सिद्धांतकार कार्ल वॉन क्लॉसविज की प्रसिद्ध पंक्ति पर एक नाटक था: "युद्ध अन्य तरीकों से राजनीति की निरंतरता है।"
कई वर्षों से, भारत की पाकिस्तान नीति को दो बुरे विकल्पों में से एक विकल्प के रूप में देखा गया है। वे विकल्प थे वार्ता या बंदूकें, कूटनीति या युद्ध, शांति या शत्रुता। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया है, वे विशिष्ट रूप से दो विकल्प के सिद्धांत को तोड़ने के लिए प्रस्तुत हैं। इसमें या तो वार्ता या बंदूकें नहीं होनी चाहिए; वे एक दोनों को आजमा सकते हैं।
जब मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान जून में मिलेंगे, तो एक और आधे-अधूरे और कम सक्रिय द्विपक्षीय प्रक्रिया को शुरू करना आसान होगा। यह प्रक्रिया आसानी से एक और बड़े आतंकी हमले को रोक सकती है। भारत-पाकिस्तान शांति प्रयासों का एक ढांचे में बंधा सामान्य इतिहास रहा है। उस ढांचे को तोड़ने का समय आ गया है।
भारत-पाकिस्तान के संबंधों में वह डायनामिक्स आज नहीं है जो 2014 में था। मोदी ने पाकिस्तान के साथ एक नई सामान्य स्थिति गढ़ने की कोशिश की है। वह है बड़े आतंकी हमलों का जवाब देना । 2016 और 2019 में इन सैन्य प्रतिक्रियाओं ने कम से कम जनमत की समस्या को तो हल किया। अब यह नहीं कहा जा सकता है कि भारत सरकार आतंकी हमलों के संदर्भ में भारतीय जनता की नजरों में कमजोर दिख रही है।
इसलिए, यह स्पष्ट है कि “वार्ता और आतंक एक साथ नहीं चल सकता” का पुराना प्रतिमान अब व्यर्थ है। यह कहना सही नहीं है कि भारत सैनिक तौर पर जोर आजमा सकता है लेकिन राजनयिक रूप से नहीं। "वार्ता" को अब "आतंक" से नहीं जोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि "आतंक" का अब "सर्जिकल स्ट्राइक" द्वारा जवाब दिया जा रहा है।
गौर करें कि भारत की बेहतरी के लिए पाकिस्तान किस तरह से द्विपक्षीय कूटनीति का इस्तेमाल कर रहा है। बिना कश्मीर पर बयानबाजी के पाकिस्तान ने एकतरफा तौर पर करतारपुर साहिब गुरुद्वारा भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए बिना वीजा के खोलने की घोषणा की। इस फैसले से मोदी सरकार के पास कोई विकल्प नहीं बचा, क्योंकि पाकिस्तान के प्रस्ताव को ठुकराने से भारतीय सिख समुदाय के मन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा । पाकिस्तान ने सिख आबादी की भावनाओं का इस्तेमाल भारत को पाकिस्तान से वार्ता के लिए मजबूर करने के लिए किया। जो द्विपक्षीय वार्ता रोक दी गयी बताई गई स्थिति के विपरीत था।
जैसा कि पाकिस्तान ने भारतीय पायलट अभिनंदन को गिरफ्तार कर लिया था उसे बाद में रिहा कर दिया। तनाव खत्म करने के मामले में यह समझदारी थी। शायद यही एकमात्र विकल्प भी था। पाकिस्तान ने दोनों देशों पर तनाव को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव दिलवाया, लेकिन फिर भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इमरान खान को कुछ करतब दिखाने के अवसर दे दिए।
इस प्रकार भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह पाकिस्तान के साथ प्रत्यक्ष द्विपक्षीय जुड़ाव को रियायत या कमजोरी के रूप में न देखें। इसके विपरीत, भारत को पाकिस्तान से रियायत हासिल करने के अवसर के रूप में इसे प्रत्यक्ष द्विपक्षीय भागीदारी के रूप में देखना चाहिए।
यह सभी को मालूम है कि भारत-पाकिस्तान गतिरोध रातोंरात हल नहीं होने वाला है। पाकिस्तान की छद्म युद्ध की रणनीति एक अल्पकालिक रणनीति नहीं है, बल्कि दीर्घकालिक है। दोनों देशों की सशस्त्र सेनाओं ने एक दूसरे के खिलाफ दीर्घकालिक रणनीति के साथ अपने सैन्य दलों को समान रूप से तैयार किया और तैनात किया है। यदि आप सुरक्षा और रणनीतिक विशेषज्ञों की सुनते हैं, तो वे दशकों के संदर्भ में बात करते हैं। फिर, हफ्तों और महीनों के संदर्भ में द्विपक्षीय कूटनीतिक जुड़ाव के बारे में क्यों सोचा जाना चाहिए?
कई भारतीय अक्सर शिकायत करते हैं कि वार्ता से कुछ हासिल नहीं होने वाला।सवाल है कि वे क्या हासिल करना चाहते हैं? सैन्य तनाव, एलओसी की गोलीबारी, सर्जिकल स्ट्राइक हमें बेहतर या बदतर स्थिति में नहीं ले जाते हैं। भारत और पाकिस्तान ने यथास्थिति के ठीक संतुलन में महारत हासिल की है। दोनों पक्ष यथास्थिति बनाए रखने की गरज से रहस्योद्घाटन करने लगते हैं।
वे इसी तरह एक स्थायी वार्ता प्रक्रिया आरम्भ कर सकते हैं । कुछ लोग हैं जो दशकों के संदर्भ में सोचते हैं। वे कम उम्मीद रखते हैं कि यह तनाव दूर होगा। पाक की नापाक कार्रवाई को केवल एक आतंकी कार्रवाई नहीं कहा जाना चाहिए। वह भारत की ओर से सैन्य प्रतिक्रिया का आकलन करना चाहता है।यदि नई दिल्ली करतारपुर और बड़ी शांति प्रक्रिया को अलग करने में सक्षम थी, तो वार्ता और आतंक को भी अलग किया जा सकता है।
चीन-भारत सीमा विवाद को सुलझाने के लिए भारत और चीन के बीच 21 दौर की वार्ता हो चुकी है। अभी भी कोई संकल्प नजर नहीं आ रहा है। चीनी आक्रामकता और भारतीय क्षेत्र में घुस जाने के प्रयासों के बावजूद, बातचीत जारी है। शायद उन्होंने कुछ हासिल नहीं किया, लेकिन इससे उन्हें क्या नुकसान हुआ? बस यथास्थिति बनाए रखने में मदद मिली है।
यह समय है जब भारत और पाकिस्तान एक लंबी द्विपक्षीय प्रक्रिया आरम्भ कर सकते हैं। ऐसी प्रक्रिया जिसमें आतंकवाद और सुरक्षा, क्षेत्रीय विवादों, व्यापार, कैदियों, वीजा आदि पर अलग-अलग बातचीत होती रहती है। यदि भारत कोशिश भी नहीं करता है तो वह द्विपक्षीय वार्ता से कुछ हासिल कैसे करेगा? जिस तरह आतंकी हमलों की सूरत में सैन्य प्रतिक्रिया जरूरी है, उसी तरह कूटनीतिक जुड़ाव भी जरूरी है। जैसा कि कि चाउ एनलाई और क्लॉज़विट्ज़ का सुझाव है, "कूटनीति और युद्ध एक ही चीज है दोनों राष्ट्रीय स्वार्थ का अनुगमन करते हैं।"
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