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Friday, June 21, 2019

जीवन के लिए क्लाइमेट एक्शन जरूरी

जीवन के लिए क्लाइमेट एक्शन जरूरी

गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस सम्पन्न हुआ। उसका थीम था "क्लाइमेट एक्शन" यानी पर्यावरण के प्रति सचेतनता और उसे सुधारने का प्रयास। नरेंद्र मोदी की सरकार के पहले दौर में एक जुमला बहुत तेजी से फैला था  स्मार्ट सिटी का। यहां बहस इस बात पर नहीं है कि स्मार्ट सिटी हो या ना हो या कितनी बनी या  सरकार की यह परियोजना कितनी दूर तक सफल हुई । विचारणीय तथ्य है कि मौसम और पर्यावरण के संदर्भ में शहरों और जीवन की परिकल्पना क्या हो? अभी खबर पुरानी नहीं हुई है मुजफ्फरपुर के चमकी बुखार की। जिसके बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा और लू यानी ताप लहर के मिले-जुले प्रभाव से यह बीमारी हुई। इस बीमारी से मरने वाले बच्चों की खबर ने पूरे राष्ट्र को झकझोर दिया। किसी ने कहा  कि बारिश आते ही  यह सब ठीक हो जाएगा , लेकिन शायद  ऐसा नहीं होगा। मौसम के बीतने के बाद भी शहरों और गांवों में जीवन पर मौसम का प्रभाव कायम रहेगा। "साइंस ऑफ द टोटल एनवायरमेंट" नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक कम आय वर्ग जिन लोगों पर मौसम का प्रभाव ज्यादा पड़ता है। कम आय वर्ग के लोगों की रिहाईशों की बनावट ऐसी होती है कि वह गर्मियों में भी ताप लहर और उच्च तापमान को झेलते हैं।  गर्मियों के बाद जैसे ही मॉनसून आरंभ होता है उमस भरी गर्मी का प्रभाव जारी रहता है। गर्मी केवल उच्च तापमान नहीं है बल्कि उसके साथ अन्य गुणक भी जुड़े होते हैं, जैसे, आद्रता, हवा का प्रवाह, सूरज से प्रत्यक्ष या परोक्ष विकिरण इत्यादि।इन सबको यदि समन्वित रूप से देखा जाए तब पता चलता है कि गर्मी का एक व्यक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है। खासकर वह जो कुपोषित हो और उसके पास खुद को बचाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था न हो। गांव  के मुकाबले शहरों में ज्यादा गर्मी पड़ती है। शहरों की घनी बस्तियों में जहां अधिकांशत Rकम आय वर्ग के  लोग निवास करते हैं वे न केवल गर्मी को झेलते हैं  बल्कि आद्रता और सूरज से प्रत्यक्ष विकिरण के प्रभाव में भी रहते हैं । मुजफ्फरपुर का उदाहरण सबके सामने है। यह बच्चे लिचीयां तोड़कर टोकरियों में भरते हैं  वह  इस क्रम में दिन भर धूप में रहते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वहां तत्काल आपात  व्यवस्था के तहत कई कार्य करने के निर्देश दिए हैं । लेकिन यह स्थिति आपात नहीं है बल्कि यह स्थाई जोखिम है जिसे योजनाबद्ध ढंग से खत्म करना होगा।
         मौसम विभाग के अनुसार यदि किसी क्षेत्र में तापमान कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है तो ताप लहर की घोषणा कर दी जाती है। तटीय क्षेत्रों के लिए यह सीमा 37 डिग्री और पर्वतीय क्षेत्रों के लिए यह 30 डिग्री सेल्सियस है। मौसम विभाग के अनुसार विगत 15 वर्षों में पर्यावरण परिवर्तन और शहरीकरण के कारण बहुत तेजी से तापमान बढ़ रहा है  तथा शहर इससे बहुत बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने तापमान एक्शन प्लान तैयार किया है जिसमें कहा गया है कि अगर किसी क्षेत्र का तापमान 2 दिनों तक लगातार 45 डिग्री बना रहा तो वहां ताप लहर की स्थिति आ जाती है। इस वर्ष राजस्थान के चूरू में 3 दिनों तक 51 डिग्री सेल्सियस तापमान रहा। इसके अलावा गुजरात , हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा में भी ताप लहर की स्थिति उत्पन्न हुई। बिहार में बच्चों की मौत तो खैर एक उदाहरण है। सरकार के अधिकारियों का कहना है की मौजूदा घटना देश में ताप लहर के सबसे खराब उदाहरणों में से एक है। देश की लगभग दो तिहाई आबादी को इस वर्ष औसतन 40 डिग्री सेल्सियस तापमान को कई दिनों तक झेलना पड़ा।
       नासा और नेशनल ओसेनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार 2018 में पृथ्वी का वैश्विक तापमान 1880  के बाद  सबसे ज्यादा रहा और कहा जा सकता है की आधुनिक रिकॉर्ड में यह सबसे गर्म वर्ष था। पृथ्वी के तापमान में 2 डिग्री वृद्धि भी घातक हो सकती है भारत में तो यह इस वर्ष 2 डिग्री के मानक से ऊपर चली गई थी। अत्यधिक तापमान घातक हो सकता है और उसका शरीर पर बहुत गंभीर प्रभाव पड़ता है। आंकड़े बताते हैं इन 1992 से 2015 के बीच भारत में ताप लहर से 22,562 लोगों की मृत्यु हुई। ऐसे में विशेषज्ञों ने  " हीट वेव एक्शन प्लान" तैयार करने का सुझाव दिया है। इस मामले में अहमदाबाद प्रथम दक्षिण एशियाई शहर है जहां 2013 में इस तरह की योजना बनाई गई । विशेषज्ञ क्लाइमेट स्मार्ट सिटी बनाने का सुझाव दे रहे जहां तापमान बढ़ने असर को कम किया जा सकता है।  जब तक इस तरह की योजनाओं पर अमल नहीं किया जाता है या तापमान के प्रभाव को कम करने के लिए समन्वित रूप से प्रयास नहीं किया जाता है तब तक कुछ भी कारगर नहीं होगा। लोग इसी तरह मरते रहेंगे या फिर गर्मी के प्रभाव से बीमार होते रहेंगे। यदि दो-तिहाई आबादी गर्मी के प्रभाव से झेलती है तो यह आबादी साल के गर्मियों के दिनों में अपनी कार्यक्षमता भी खो देगी या उसकी कार्यक्षमता कम हो जाएगी। जिसका प्रभाव देश के विकास पर पड़ेगा। कुछ विशेषज्ञ कहते हैं जो कुछ भी हो रहा है वह विकास का दंड है। लेकिन आशाजनक तथ्य यह है कि इस स्थिति ने चुनौतियों का एक नया द्वार तो खोला है और मानवीय जिजीविषा चुनौती को स्वीकार करेगी ऐसी उम्मीद है।

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