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Tuesday, June 4, 2019

भयानक हो सकते हैं परिणाम

भयानक हो सकते हैं परिणाम

आज विश्व पर्यावरण दिवस है। औपचारिक तौर पर लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं पर्यावरण की हिफाजत की और फिर सबकुछ वैसे ही हो जाता है जिस पहले था। दुनिया भर में क्या हो रहा है यह तो नहीं मालूम लेकिन भारत में कुछ ऐसा ही चल रहा है। 
    हमारे भारत में प्राचीन काल से प्रकृति संरक्षण के उद्देश्य से प्रकृति पूजन की परंपरा शुरू की गई थी जिसमें पेड़ ,पौधे, अग्नि ,वायु, नदी-पर्वत सभी की पूजा होती थी और देव-मानव संबंध थे। पेड़ की तुलना संतान से की गई थी और नदी मां थी।हमारे देश में प्रकृति रक्षा और संतुलन की महान परंपरा थी।लेकिन पश्चिम का अंधानुकरण कर हैम भौतिक विकास की अंधी दौड़ में शामिल हो गए।पूरी प्रकृति को रौंदने लगे। अब हैम प्रकृति के कोप का शिकार होने जा रहे हैं।
यह जानकर हैरत होगी कि दुनिया के 22 सबसे प्रदूषित शहरों में से 20 भारत में हैं। ग्रीनपीस और एअर विजुअल रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया के 99 प्रतिशत शहरों की हवा की गुणवत्ता खराब है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में सबसे प्रदूषित शहर गुरुग्राम है और कोलकाता का स्थान 10 वां है। अध्ययन में पाया गाया है कि 2017 में भारत प्रदूषण के कारण 12 लाख लोगों की मृत्यु हुई। हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीच्यूट की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में मृत 12 लाख लोगों में अधिकांश वे थे जो सड़कों पर ज्यादा रहते हैं और कुपोषण के शिकार हैं। अब अगर कुपोषण के आंकड़ों के बरक्स प्रदूषण का आकलन किया जाय तो जो तस्वीर बनेगी वह बेहद डरावनी होगी। हालांकि भारत सरकार ने प्रदूषण के स्रोतों को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं जैसे प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना , मोटर गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए मानदंड तैयार करना इत्यादि। लेकिन ये उपाय अत्यंत न्यून स्तर पर हैं और इससे कुछ ज्यादा बात नहीं बनेगी। यही नहीं शोध से पता चला है कि प्रदूषण के कारण जीवन की अवधि भी कम हो गयी है। जीवन की अवधि में 20 महीने की कमी आ गयी है। यानी, आज जो बच्चा जन्म लेता है तो उसकी जिंदगी 20 महीने छोटी हो जाएगी। सोचिए हमारे देश आशीर्वाद दिया जाता था युग युग जियो और और आशीष पाने आने वाले कि उम्र कम हो गयी सिर्फ उसके सांस नहीं लेने लायक हवा के कारण। यह चिंतनीय विषय है कि मानवता को प्रकृति कितना बड़ा दंड दे रही है। 
      यही नहीं, धरती बहुत तेजी से गर्म हो रही है। गोडार्ड इंस्टिट्यूट फ़ॉर स्पेस स्टडीज के अनुसार 137 वर्ष के इतिहास 2017 में जनवरी का नहींआ सबसे गर्म रहा।इसके खतरनाक नतीजे हो सकते हैं और उसका उदाहरण हैं दक्षिणी सूडान में स्पष्ट है जहां कुछ ही साल पहले आजादी मिली अब वहां भयंकर अकाल पड़ा है। यह मिसाल बिगड़ते पर्यावरण का है। हमारे देश में भी प्राकृतिक संपदा खत्म होती जा रही है। विकास के नाम पर जंगल काटे जा रहे हैं , नदियों को गटर और समुद्रों को तेल का कुप्पा बनाया जा रहा है। यह हालत उस देश की है जिसकी 25 से 30 करोड़ आबादी प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर है। लोग जंगलों, झीलों , समुद्रों, नदियों , घास के मैदानों और पहाड़-पहाड़ियों पर निर्भर हैं।कालिदास ने कुमारसम्भवम में कहा है- 'अस्तुस्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराज:। '  
ये सभी भारी पारिस्थिक दबाव में हैं। यह हालात भारत में हो ऐसी बात नहीं है।  पूरी दुनिया का तापमान बढ़ता  जा रहा है। इससे कई वानस्पतिक और जैविक प्रजातियों को खतरा पैदा हो रहै है, उनके लुप्त हो जाने का संकट खड़ा हो सकता है।तापमान बढ़ने से होने खतरे अभी से ही दिखने से ही दिखने लगे हैं। कनाडा के बर्फीले मैदान के ध्रुवीय भालू धीरे- धीरे लापता हो रहे हैं। आर्कटिक में बर्फ 9 प्रतिशत की दर से पिघल रही है। भारत में विशेषज्ञों का मनाना है कि सुंदरवन का मैंग्रोव तेजी से घट रहा है इससे समुद्र जमीन को निगलता जा रहा है , रॉयल बंगाल टाइगर के जीवन को खतरा पैदा हो गया है। यही नहीं मानव प्रजाति पर भी खतरे बढ़ रहे हैं। 
यह शाश्वत सत्य है कि एक प्रजाति का सर्वनाश दूसरे के अस्तित्व को खतरा पहुंचाता है। घटते संसाधन और बढ़ती मांग ने इस खतरे को और बढ़ा दिया है। वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि देश का तापमान तेजी से बढ़ रहा है और आने वाले कुछ वर्षों में इसका घातक असर साफ दिखने लगेगा। अगले चार वर्षों में न्यूनतम तापमान 0.9 डिग्री सेल्शियस तक बढ़  सकता है। यह चुनौती साधारण नहीं है। इससे प्रकृति का चक्र बिगड़ जाएगा और मौसम अनियंत्रित होने लगेंगे जो कि प्रकृति के विनाश का कारण भी बन सकता है। इसलिए अगर हम सचेत नहीं रहे तो आने वाले वर्षों में पर्यावरण बहुत खतरा बनकर हमारे सामने खड़ा हो सकता है।
 
'दशकूप समावापी: दशवापी समोहृद:।
दशहृद सम:पुत्रो दशपत्र समोद्रुम:।। '

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